सान्ध्य महालक्ष्मी / 22 दिसंबर 2021
वह दिन ज्यादा दूर नहीं होगा, अगर जैन समाज एकजुट नहीं होगा, आपसी झगड़े, मनमुटाव छोड़कर एक होना होगा। अदालत की हर तारीख के लिए दोनों भाई करोड़ के लगभग खर्च कर देते हैं, पर एक नहीं होते। सूत्र कहते हैं, दोनों जल्द ही दूरियां मिटा लेंगे, पर यह सुनते-सुनते भी एक अरसा हो गया है। चैनल महालक्ष्मी ने गत सोमवार 20 दिसंबर को शिखरजी में अवैध निर्माण की जानकारी दी, जिससे हमारी कमेटियां, नेता भी अनभिज्ञ थे।
कोई सबूत भी हमारी कमेटियों के पास नहीं
गिरनार का केस किसी से छिपा नहीं है, 60-70 साल पहले दूसरे समाज ने अपने नाम से पंजीकरण करा लिया, जैन संस्थाओं की लापरवाही के चलते। आंख मूंदे बैठी रही और फिर पिछले दो दशक में वहां पर नियमित निर्माण कर जैन समाज का सिद्धक्षेत्र उन्होंने छीन लिया, जैन कमेटियों की लापरवाही से उन्हें जैसे गिरनार गिफ्ट में मिल गया। अदालती लड़ाई जारी है, (जिसके लिये कोई सबूत भी हमारी कमेटियों के पास नहीं है) जिसमें जीत भी गये। उस जीत के बाद भी यह तीर्थ नहीं मिल पाएगा, क्योंकि पैसे वाला समाज दल-बल के सामने कुछ नहीं कर पाएगा।
सोमवार 14 दिसंबर को जैनों के शाश्वत तीर्थ वदंना मार्ग पर क्षेत्रपाल मंदिर से लगभग एक फर्लांग ऊपर यानि वहां से दो चक्कर पूरे कर, वहां पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के नेता बाबूलाल मरांडी व अन्य नेताओं ने दिशोम मांझी थान के गर्भगृह के निर्माण की आधारशिला रखी। शिलापूजन किया गया। यहां तीन दिन का भाजपा पारसनाथ कमेटी का तीन दिन का प्रशिक्षण वर्ग सम्पन्न हुआ और उसी के अंतिम दिन बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में यह कार्यक्रम हुआ।
जगह बीसपंथी कोठी की
जानते हैं ये जगह किसकी है, बीसपंथी कोठी की। वैसे इस पर सुप्रीम कोर्ट में मल्कीयत का विवाद चल रहा है, राज्य सरकार ने उसका दरवाजा खटखटाया है। सिविल कोर्ट से हाईकोर्ट तक केस बीसपंथी कोठी जीतती रही है और यह प्लाट नं. 248 पर निर्माण हो रहा है। चैनल महालक्ष्मी ने 20पंथी के कोठी के अध्यक्ष अजय जैन व तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष शिखरचंद पहाड़िया जी से सम्पर्क करने की बहुत कोशिश की, पर किसी का फोन नहीं उठा, न पलट कर फोन आया।
थाने में शिकायत
चैनल महालक्ष्मी ने जब अपना एपिसोड जारी किया तब बीसपंथी कोठी हरकत में आई और थाने में शिकायत की कि प्लाट 248 (कुल 134.84 एकड़) जमीन बीसपंथी कोठी की थी, जिसमें से 54.39 एकड़ जमीन भू-हदबंदी में स्वेच्छा से बिहार सरकार को दी। कुछ अज्ञात लोगों ने वहां निर्माण की आधारशिला रखी है, जो उच्च न्यायालय, रांची के आदेश एलपीए 553/ 2013 दिनांक 30.10.2017 के खिलाफ व गैरकानूनी है।
आपको जानकर हैरानगी होगी कि इस जंगल झाड़ में कोई भी कोई खुदाई नहीं कर सकता, चाहे जैन हो, या कोई यहां तक कि राज्य सरकार हो या फिर केन्द्र सरकार – यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरा उल्लंघन है। किसने -किसने की, कौन – कौन भागीदार था। दस दिन बाद भी राज्य सरकार द्वारा नियमों का उल्लंघन पर एफआईआर दर्ज ना करना, हैरानगी का कारण है, यहां कोई खुदाई नहीं कर सकता, इन पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए, यह वन विभाग की जिम्मेदारी है।
ये प्रकृति की पूजा करते हैं, साल के पेड़ की पूजा करते हैं
खुदाई कैसे हो गई? अपनी वोटों की राजनीति के चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और एक राज की बात और बता दें कि इनके यहां मंदिर बनाने की कोई प्रथा ही नहीं है, ये प्रकृति की पूजा करते हैं। साल के पेड़ की पूजा करते हैं। पर इन छपी खबरों में लिखा है कि गर्भगृह के निर्माण की आधारशिला रखी। इनके यहां गर्भगृह की प्रथा नहीं है, तो फिर यह क्या है? समझ से बाहर है।
2015 और 2017 में भी इस तरह की कोशिशें
नियमों का उल्लंघन और हमारी कमेटियों को कुछ जानकारी नहीं, कोई प्रतिक्रिया नहीं, फोन उठाने तक की फुर्सत नहीं। 2015 और 2017 में भी इस तरह की कोशिशें मरांडी द्वारा की जा चुकी हैं, कहीं भाजपा यह तो नहीं सोच रही कि सत्ता में आते ही, कब्जे के मंसूबों को अंजाम दिया जा सके। चंदाप्रभु टोंक के साथ नीचे पहाड़ी पर भी इनका स्थल है, बिल्कुल खुला जहां साल में एक बार कुछ हजार इकट्ठे होते हैं। जहां एक तरफ जैन समाज कोई निर्माण खुदाई नहीं कर सकता, वहां वोटों की राजनीति के लिये जैनों के शाश्वत तीर्थ पर दखलांदाजी भविष्य में अगला गिरनार बनाने की साजिश तो नहीं, क्योंकि गिरनार में भी शायद राजनीतिक शतरंजी बिसात कुछ ऐसे ही बैठाई गई थी।
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