सम्मेद शिखर जी पर मांसाहार , पकड़े क्यों नहीं गये ? बस हम सोशल मीडिया पर छाती कूटा कर रहे हैं, #बचाओ_पवित्र_तीर्थ_शिखरजी

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पिछले दिनों से एक समाचार सोशल मीडिया पर चल रहा है । खासकर जैन ग्रुपों में ।
जैन समाज के सबसे बड़े और पवित्र तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखरजी पर कतिपय अराजक तत्वों द्वारा मांसाहार किया गया ।
सबूत के तौर पर इस घ्रणित क्रत्य को करने वालों की फोटो भी खींची गई , और वीडियोग्राफी भी की गई ।
और समाज के वाट्स एप वीरों ने सभी ग्रुपों में इसके खिलाफ जंग छेड़ दी ।
बाद में ये समाचार भी आया , कि ये लोग बंगाल के थे ।और वहां मांस पका रहे थे ।

जो कि बाद में वहां से भाग गये और अभी तक पकड़े ही नहीं गये ।
खैर ये तो थी उस तथाकथित घटना की जानकारी ।

अब प्रश्न यह उठता है कि जिन लोगों ने फोटो और वीडियो बनाये , और वायरल किये , वो लोग कौन थे ?
और उन्होंने उन मांस पकाने वालों को पकड़ा क्यों नहीं ? उनको रोका क्यों नहीं ? तत्काल पुलिस या प्रशासन को सूचना क्यों नहीं दी ?

फोटो से लग रहा है कि वो लोग गिनती के 5 / 7 ही थे , और वो दिन का समय था । यानि उस समय पहाड़ पर हजारों नहीं , तो सैकड़ों यात्री तो रहे होंगे । और फोटोग्राफी करने वाले के साथ भी ग्रुप तो रहा होगा ।
अगर एक आवाज लगाते , तो वहां सारे यात्री , जो आसपास रहे होंगे , वो सभी उस स्थान पर शीघ्र पहुंच सकते थे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।

और जब वो लोग ( मांस पकाने वाले ) पहचान लिए गये थे , तो पकड़े क्यों नहीं गये ?
और सबसे बड़ी बात , कि वर्तमान में शिखर जी में कई साधु विराजमान हैं , दिगंबर भी और श्वेतांबर भी । और ये घ्रणित क्रत्य तुरत फुरत पूरे देश में वायरल हो गया । तो देश के विभिन्न क्षेत्रों में विराजमान साधु संतों ने अभी तक क्या किया ?
अब तक तो पूरे देश और झारखंड की सरकार हिल जानी चाहिए थी ।

बस हम आज भी सोशल मीडिया पर छाती कूटा कर रहे हैं । अब तक किसी न्यूज चैनल पर कोई छोटी-मोटी खबर तक नहीं बनी । क्यों ?
ध्यान देने लायक है कि सिख समुदाय हमारी ही तरह अतिअल्पसंख्यक है , लेकिन उनकी सामाजिक एकता इस कदर है कि उन्होंने भारत तो ठीक है , पाकिस्तान में भी अपने धार्मिक स्थलों को भारत की सरकार और पाकिस्तान की सरकार पर दबाव बना कर सुरक्षित कर लिया ।

अगर ऐसा कोई क्रत्य इनके धार्मिक स्थल पर हो जाता का , तो पूरा देश हिल जाता ।
और हम ??

वहां तो अपने अतिप्राचीन , कलात्मक मंदिरों को लावारिस छोड़ कर भाग ही आये , यहां भी अपने तीर्थों की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं । आखिर किस बात से हम डरते हैं ।

या फिर , वही पंथों और संतों की आपसी लड़ाई । जिसमें आज नहीं तो कल हमें बहुत बड़ा नुक़सान उठाना ही पड़ेगा ।
जैसा कि मैं अपनी पिछली पोस्ट में कहा चुका हूं , कि जैन समाज को एक बड़े संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए । यह न सोचें कि हम अल्प संख्या में हैं , हम क्या कर सकते हैं । हमारे पास बहुत बड़ी ताकत है । आज भी कुछ नहीं बिगड़ा । हम इन परिस्थितियों का मुकाबला कर सकते हैं ।

अगर पूरा जैन समाज एकजुट हो जाऐ । अगर सभी संत सिर्फ एक मुद्दे पर एकमत हो कर आव्हान कर दें ।
तो किसी भी सरकार को झुकाना कोई मुश्किल नहीं । जब देशद्रोहियों के आगे सरकार नतमस्तक हो सकती है , तो हम तो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रहे हैं ।
पर —-

क्या ऐसा होगा ? अभी ” इति ” नहीं ।

महावीर काला झालरापाटन