कोरोना को परिवार से भगाया, NON-STOP 108 108 वंदना के जनून का जज्बा

0
1072

॰ मुम्बई के युवा की चल रही अकेली यात्रा
॰ इमोशनली-मेन्टली शक्ति का केन्द्र है शिखरजी, नामुकिन हो रहा मुमकिन
॰ सवा सौ दिनों में 2700 किमी पहाड़ों पर यात्रा कोई हंसी-मजाक नहीं

सान्ध्य महालक्ष्मी / 02 मई 2021
कोरोना काल, जिसमें कोई घर से बाहर चाहकर भी नहीं निकल पा रहा। जो निकल गया, वो लौट रहा है, ऐसे में मुम्बई के युवा दीप शाह में इतना जुनून है कि वे अपना कारोबार छोड़ 25 जनवरी 2021 से शिखरजी में हैं और लगातार 27 किमी वंदना कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से जब पहाड़ पर कोई तीर्थयात्री नहीं दिखता, ये अकेले ही वंदना कर रहे हैं।

मुम्बई के हीरो के व्यापारी का पुत्र जो पिता से हटकर पुण्डचेरी के पास ओरोवेली में फिटनेस कंसलटेशन एवं ट्रेनिंग सेन्टर चलाते हैं, वही दीप शाह पहली बार माता-पिता के साथ 2010 में वंदना करने आये, दूसरी बार 10 बरस बाद जनवरी 2020 में आये तो दो वंदना की और फिर लाकडाउन लगने से पहले मार्च 2020 में आकर नौ वंदना की। पर उसके बाद मन में एक जनून सवार हो गया कि क्यों न यहां लगातार 108 वंदना की जायें। इसके लिये फिटनेस बहुत जरूरी है।

मुम्बई जैसा शहर, जहां न ज्यादा ठण्ड पड़ती है और ना ज्यादा गर्मी, उससे उलट मौसम है शिखरजी में और पहाड़ों पर बिन मौसम वहां बरसात इसको और कठिन बना देती है। इसके लिये फिजीकल फिटनेस जरूरी है, बस इसी को पाने के लिये रोजाना 40-50 किमी दौड़ना, दस हजार रस्सी कूदना, योगा करके अपने को फिजीकली फिट किया।

सान्ध्य महालक्ष्मी से EXCLUSIVE बातचीत में दीप ने बताया कि मैंने अपने को फिजीकली फिट तो कर लिया था, पर मेन्टली और इमोशनली सुपर पावर तो तीर्थ की ऊर्जा से ही मिल सकती है और उसकी ऊर्जा शिखरजी वंदना के अलावा कहीं और नहीं मिल सकती। बस इसी सपने को संजोये हुए यहां आया।
उन्होंने बताया कि 02 मई 2021 को उनकी 90वीं यात्रा पूरी हुई, 10-11 यात्राओं के बाद एक दिन का ब्रेक लेते हैं। ये यात्रा काफी उतार-चढ़ाव वाली रहती है। पिछले 7-8 दिनों से पहाड़ों पर एक भी व्यक्ति दिखाई नहीं देता। अकले ही मानों पूरे मार्ग में चढ़ते-उतरते हैं।

दीप शाह ने सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि वे 25 मूल टोंकों के साथ श्वेताम्बर टोंकेों की भी वंदना करते हैं। 66वीं वंदना के समय एक बार जरूर मन में गहरी चोट लगी, जब पता चला कि मुम्बई में परिजन कोरोना पॉजीटिव हो गये। तब जरूर मुझे इस पावन धरा से खूब ऊर्जा मिली, जो मानो मेरे से प्रवाहित होते हुए, मुम्बई तक परिजनों तक पहुंची और उन्हें पूरी तरह ठीक कर दिया।

युवा होते हुये, पाश्चात्य सभ्यता की ओर झुके होने के बावजूद, शिखरजी से प्राप्त हो रही पॉजीटिव ऊर्जा से अचंभित हैं। कहते हैं कि यहां मेरी इम्यूनिटी बहुत बढ़ गई है। अब छोटे-मोटे दर्द-चोट का तो बिल्कुल पता नहीं चलता।

अपनी 108 वंदना के जुनून से बहुत खुश हैं, बहुत आनंद आ रहा है। जनवरी-फरवरी की ठण्ड और अप्रैल की गर्मी, कोई बाधा नहीं बनती। लगभग सवा सौ दिन में 2700 किमी पहाड़ों की चढ़ाई-उतराई कोई हंसी खेल नहीं, पर दीप शाह इस नामुकिन को मुमकिन करने के लिये बढ़ते जा रहे हैं और इसके पीछे छिपी ताकत है, करोड़ों महामुनिराजों की तपस्या की यहां संरक्षित ऊर्जा, जो आज भी यहां होने का अहसास दिलाती है।