02 अक्टूबर 2024/ अश्विन कृष्णा अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
झारखण्ड उच्च न्यायालय, रांची की पूर्ण पीठ के अंतिम निर्णय और आदेश दिनांक 24 अगस्त 2004 के विरुद्ध कुल मिलाकर 21 अपील भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई हैं। इसका मूल विषय सम्मेद शिखरजी (पारसनाथ हिल) पर स्थित मंदिरों, टोंको, दार्शनिक स्थलों, धर्मशालाओं आदि के कब्जे, नियंत्रण और प्रबंधन से सम्बंधित है।
सुप्रीम कोर्ट में सन् 2005 से इन समाहित केस में तारीख पर तारीख ही लगती आ रही है और 31 जुलाई 2024 को डबल बेंच न्यायमूर्ति श्री रवि कुमार जी और न्यायमूर्ति श्री संजय करोल जी ने कहा कि इस पर अब नियमित सुनवाई करेंगे और इसके लिए विवादी पक्ष (श्वेताम्बर मूर्ति पूजक) को हम 4-5 दिन बहस के लिए देते हैं तथा प्रतिवादी पक्ष (दिगम्बर जैन समाज) को 3-4 दिन देते हैं। फिर बुधवार 07 अगस्त 2024 से कोर्ट में डबल बेंच में सुनवाई शुरू हो गई।
प्रथम वादी पक्ष आनंद जी कल्याण जी ट्रस्ट की ओर से उनके वरिष्ठ वकील श्री लफाडे जी, श्री श्याम दीवान जी, श्री मुकुल रोहित जी और श्री गुरुकृपा आदि वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बहस शुरू की। अब तक यह सुनवाई 7, 8, 21, 22, 28, 29 अगस्त तथा 4, 5, 11, 12 व 19 सितम्बर यानि 11 दिन हो चुकी है, इसमें कुछ दिन दो घंटे भी सीमित रही।
4-5 दिन शुरू में कहे जाने के बावजूद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक अधिवक्ताओं ने 9 दिन तक बहस जारी रखी। साथ ही दो घंटे बिहार सरकार तथा एक डेढ़ घंटा दिगम्बर समुदाय को मिला।
अंतिम बार, गुरुवार 19 सितम्बर को 2024 को भी, जब प्रथम वादी पक्ष आनंद जी कल्याण जी ट्रस्ट की बहस समाप्त नहीं हुई, उस पर न्यायमूर्ति महोदय ने कहा कि हमारे पास सुनवाई के लिये केवल 4-5 दिन शेष हैं, फिर 10-15 दिन निर्णय की तैयारी और दिसम्बर में इस केस का निर्णय सुना देना चाहते हैं। इसलिए दोनों पक्षों को इन्हीं 4-5 दिनों में बहस को खत्म कर देना चाहिए। इस पर अपने पक्ष की बहस की शुरूआत से 9 दिन के बाद भी आनंदजी कल्याणजी ट्रस्ट एवं जैन श्वेताम्बर सोसायटी के अधिवक्ताओं ने माननीय अदालत को कहा कि अभी तो हमें 4-5 दिन और चाहिए।
वहीं दिगम्बर समुदाय के वकीलों की मानें तो उनका कहना था कि हम अपनी तरफ से सुनवाई दो दिन में समाप्त कर देंगे, जिससे इस लंबे समय से चल रही विवाद का निर्णय हो तथा सर्वोच्च तीर्थ का समुचित विकास हो।
तब दोनों न्यायमूर्तियों ने परस्पर विचार-विमर्श करके कहा कि हमारे पास इतना समय नहीं है और आगे की सुनवाई के लिए इस केस को मुख्य न्यायमूर्ति महोदय के यहां भेज देते हैं। इतना कहने के पश्चात् उन्होंने इस केस को मुख्य न्यायमूर्ति महोदय को प्रेषित कर दिया। अब निकट भविष्य में मुख्य न्यायधीश महोदय के आदेश की प्रतीक्षा है कि वो इस केस में क्या आदेश देते हैं।
दिगम्बर समुदाय की ओर से भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी केस में प्रतिनिधित्व कर रही है और वरिष्ठ वकील श्री वैद्यनाथन जी और श्री मनोज गोयलजी ने एक डेढ़ घण्टे के मिले सीमित समय ही बहस की। सभी तारीखों पर तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन, महामंत्री श्री संतोष पेंढारी, श्री वीरेश सेठ तथा उ.प्र. – उत्तराखंड अंचल के अध्यक्ष श्री जवाहर लाल जैन पूरे समय उपस्थित रहे तथा साथ ही प्रत्येक तिथि से पहले केस की चर्चा भी की, जिसमें श्री सुनील जैन जी जैसे कई वरिष्ठ वकील भी उपस्थित रहे।
ऐसा प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर मूर्ति पूजक धन बल और राजनीतिक प्रभाव के चलते केस को जानबूझकर लम्बा खींचना चाहते हैं। पर जहां एक तरफ आर्थिक स्तर पर दानराशि का तीर्थ के संवर्धन-विकास में उपयोग की बजाय वकीलों में खर्च हो रहा है, दूसरी तरफ सम्मेदशिखर में व्यवस्थाओं के लिये एक र्इंट को निर्माण कार्य में नहीं लगाया जा सकता। विकास न होने से साधुओं और यात्रियों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
ध्यान रहे, झारखण्ड हाइकोर्ट ने पवित्र पहाड़ पर दिगम्बर साधुओं की सुविधा-व्यवस्था के लिये 5 एकड़ जगह उपलब्ध कराने के लिये कहा था, पर वो भी इस अपील से 20 वर्षों से रुका हुआ है।
आशा है 15 अक्टूबर तक मुख्य न्यायमूर्ति महोदय आगे कोर्ट का निर्धारण कर देंगे और वहां दोबारा, फिर से सुनवाई-बहस शुरू होगी और वह शुरूआत कब, कितने समय बाद होगी, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, यानि अब तक बहुत बड़ी राशि जो केस में खर्च हुई, उसका कोई सार्थक विकास में उपयोग हुआ होता, तो आज श्री सम्मेद शिखर पर साधुओं और यात्रियों के लिये कितनी सुविधायें सुलभ हो पाती।
अब समय की यही पुकार है, जब दूसरा पक्ष जल्द उचित निर्णय की बजाय अपने प्रभाव से इस केस को लम्बा खींचने में लगा है, ऐसे में दिगम्बर जैन समुदाय को अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करते हुए तीर्थक्षेत्र कमेटी का आर्थिक रूप से पूरा सहयोग करना होगा तथा अपने को अधिक प्रभावी बनाना होगा। यह भी प्रयास किया जाना चाहिए कि दोनों समुदाय अदालत से बाहर बैठकर इसका कोई आपसी हल निकालें, जो पूरे जैन समाज के हित में हो तथा अनावश्यक बड़े खर्च को यहां से रोक कर, विकास और संवर्धन में लगाया जा सके। मिली जानकारी के अनुसार तीर्थक्षेत्र केटी इस पर पूरी तरह प्रयासरत है।
(श्री जवाहलाल जैन, अध्यक्ष, उ.प्र.-उत्तराखंड अंचल, तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा दिये गये इनपुट के आधार पर चैनल महालक्ष्मी द्वारा समाज हित में जारी)