13 अगस्त 2024// श्रावण शुक्ल अष्टमी//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/प्रवीन कुमार जैन /
मोक्ष सप्तमी, रविवार 11 अगस्त, पिछली रात तक झमाझम बारिश हो रही थी, पहाड़ से तलहटी तक, स्पष्ट लग रहा था कि इन्द्र देवता आज मनुष्यों से बाजी मार लेंगे, तलहटी में दो बजे तक झमाझम फुहारों में बदल गई, तो पहाड़ पर ढाई घंटा और लिया। सान्ध्य महालक्ष्मी की टीम ने तीन बजे इस बार यात्रा की शुरूआत की, जबकि हर बार डेढ़-दो बजे शुरू करते रहे हैं। इस बार कारण था कि 7-8 के बीच स्वर्णभद्र कूट पहुंचना था, भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रात: 8 बजे के बाद पहुंचनी थी।
पवन जैन गोधा – विजय जैन चांदी वाले
मुकेश जैन पटौदी इंदौर का जागा सौभाग्य
हां, पांच बजे साधु-संत के सान्निध्य में बीसपंथी कोठी से श्रीजी गाजे-बाजे के साथ वंदना पथ की ओर सैकड़ों अनुयायियों के साथ बढ़े। दिल्ली से पवन जैन गोधा, विजय जैन चांदी वाले, इन्दौर से श्री मुकेश जैन पटौदी भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा को लेकर स्वर्ण भद्र कूट की ओर चले।
डोलियों के रेट दो से तीन गुने, बाइकों के 5 गुना
नहीं था कोई रोकने-टोकने वाला
वंदना मार्ग पर रात में भी बाइकें दौड़ना शुरू हो गई थी। अंधेरे में, फिसलन में कई गिरे बाइकों से, कोई गिनती नहीं, कोई रिकॉर्ड नहीं, ऐसे कुछ सान्ध्य महालक्ष्मी को मिले। स्वर्णभद्र कूट पर लगे कैम्प में तो कुछ अपने घुटने-शरीर को सहेजते रास्ते में दिखाई दिये। बाइक वालों को कोई टोकने-रोकने वाला नहीं था। पता चला कि आज ऊपर के लिये डेढ़ सौ- दो सौ डोलियां बढ़ीं जबकि पिछले वर्ष इनकी संख्या 300 से 400 के बीच रही होगी। डोलियों का रेट 6000 से 8 से 12 हजार भी बोला गया, वही 500 से 800 रुपये में चंद दिन पहले मिलने वाली बाइक तीन हजार में पहुंच गई। गजब, जाने वाले सभी युवा थे, जो शायद पैदल वंदना कर सकते थे, पर आज कूट पर चरण छूना ही पुण्यार्जन समझते हैं, जबकि पुण्यार्जन तो वहीं से शुरू हो जाता है, जब वह वदंना का पहला कदम बढ़ाता है।
कुत्ते जैसे आपके लिये रक्षक बन जाते हैं
गंधर्व नाला तक पहुंचने से पहले ही एक कुत्ता मिला, जो आगे-आगे चल रहा था, ज्यादा आगे हो जाता, तो रुक जाता, बैठ जाता, शरीर खुजलाता, 7-8 कदम पीछे होने पर फिर आगे बढ़ जाता, ऐसा उसने लगभग 400 मीटर तक किया। आधा किमी बाद एक दूसरा कुत्ता मिला और इस प्रकार वंदना में हमें चार कुत्ते मिले। जैसे वो हमें दिशा बता रहे थे। गजब बात यह है कि गांव-शहर के कुत्तों की तरह भौंकते नहीं कभी, न कभी किसी के पीछे भागते या काटते। हां, जब तक वो आगे-पीछे चल रहे थे, तब तक क्या मजाल कोई बंदर भी आगे फटक जाये। शायद तीर्थयात्रियों के प्रति ये कुत्ते अपना फर्ज निभा रहे हैं। आप भी अगली बार जरूर नोट करना।
पेड़ों की सनसनाहट अलग ही संगीत की धुन बजा रही थी और चार-साढ़े चार बजे पक्षियों की चहचहाट ने तो इसमें चार चांद लगा दिये थे।
बच्चे कर रहे थे नंगे पैर यात्रा
गजब का जोश देखा
रात तक की झमाझम, अब कभी-कभी रिमझिम में बदल गई थी, हल्की फुहार जब बदन पर लगती, तो शरीर में एक सुरसुरी सी पैदा करती। कुछ भजनों के साथ, तो कोई जयकारों के साथ बढ़ रहे थे, तो कोई एक-दूसरे से पूछ रहे थे, कितना और है अभी। गजब तो उन बच्चों को देख कर होता, जो 4-5-6-7-8 साल के बालक-बालिका जोश के साथ बढ़ रहे थे। सान्ध्य महालक्ष्मी ने ऐसे 20-25 बच्चो से बातचीत भी की। मन में विचार कौंध रहे थे कि एक तरफ समाज के युवा बाइकों पर भाग रहे, वहीं 4-8 साल के बच्चे कैसे अपने पैरों से वदंना कर रहे थे। हमने हर बच्चे को आशीर्वाद दिया, उत्साह बढ़ाया। सभी ने संकल्प किया कि पहाड़ पर न खरीदेंगे, न ही कोई कूड़ा डालेंगे। धन्य है, ऐसे संस्कारी मां-बाप।
1996 से चल रही है अनवरत श्रीजी की
शोभायात्रा बीसपंथी से स्वर्णभद्र कूट
बीसपंथी से पारस टोंक तक श्रीजी को ले जाने का हमारा पुराना नाता रहा है। आप को बताकर गौरवान्वित होते हैं कि सान्ध्य महालक्ष्मी के संस्थापक हमारे पिताश्री श्री किशोर जैन, वो शख्सियत थी, जिन्होंने 1996 में पहली बार डोल में श्रीजी को लेकर पारस टोंक तक जाने का साहस किया था। तब क्षेत्र में नक्सली जोर था। साधु-संतों – कमेटियां – श्रेष्ठियों ने बहुत रोका, ‘किशोर’ मत जाओ, प्रतिमा जी इधर घाटी में और तुम उधर घाटी में गिरा दिये जाओगे। आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की। पर वे कहते पारस के प्रति भक्ति और आचार्य श्री विद्यानंद जी से लिया आशीर्वाद – अब नहीं डरना और रुकना। और वो दिन था और आज का दिन 31 सालों से लगातार श्रीजी को ले जाया जा रहा है। पहले 12 साल लगातार पिता श्री ले जाते रहे, फिर 5 साल भाई प्रवीन जैन को ले जाने का सौभाग्य मिला। तब और आज में बहुत फर्क आ गा है। तब सैकड़ों लोग पूरे जोश, नाचते-कूदते 9 किमी तक लेकर जाते थे, पर अब बीस पंथी से एक किमी के बाद से टोंक के 250 मीटर पहले तक श्री जी के साथ चलते 10-15 भी नहीं होते। भक्ति बढ़ी या घटी, चिंतन की बात है।
स्वर्णभद्र कूट पर बैरिकेडिंग कर
भीड़ को नियंत्रित किया
खैर, हर वर्ष की तरह पहुंची श्रीजी की शोभायात्रा गाजे बाजे के साथ। पारस टोंक सीढ़ियों को दो मार्गों में बांट गया। एक तरफ पारस टोंक पर दर्शन करने वालों की लंबी कतार लग रही थी, दूसरी तरफ से उतरने वाले थे। श्रीजी उतरने वालों के बीच से ऊपर पहुंचे। वहां बनाई गई पांडुकशिला पर विराजमान किया और दिल्ली तथा इन्दौर वालें जिन्होंने ध्वजारोहण, अभिषेक, शांतिधारा, पूजन, निर्वाण लाडू समर्पण, आरती का सौभाग्य प्राप्त किया, उन्होंने सभी मांगलिक क्रियाओं को पूर्ण किया। तीन लाडू समर्पित किये गये जिनमें प्रथम निर्वाण लाडू 51 किलो का था।
साधु-संतों की वंदना 11 अगस्त को कम, 12 को ज्यादा देखने को मिली। चोपड़ा कुंड पर बटती ओकाली की संख्या से तीर्थक्षेत्र कमेटी अधिकारी ने बताया कि 10 को 12 हजार ने वंदना की तो 11 को 35 हजार से ज्यादा लोगों ने वंदना की। लंबी लाइनें पारस टोंक के साथ चंद्रप्रभ टोंक पर देखने को मिली, जहां सामान्यत: यात्री 10 घंटे में वंदना करके लौट आता है, वहीं मोक्ष सप्तमी को उसे 14 से 15 घंटे लगे। हर टोंक पर, वंदना पथ पर तीर्थयात्रियों का उत्साह देखते ही बनता था।
श्रीजी को कार्यक्रम के बाद जब वापस लाया गया, तो तीर्थक्षेत्र कमेटी कार्यालय के आगे अध्यक्ष जंबू प्रसाद जैन, उ.प्र. उत्तराखंड अंचल अध्यक्ष जवाहर लाल जैन, शाश्वत ट्रस्ट के महामंत्री राजकुमार जैन अजमेरा, प्रभात सेठी, महेन्द्र कुमार जैन सीए आदि ने जोरदार नृत्य के साथ स्वागत किया।
मितेश जैन ने लगाये 3 मेडिकल कैम्प
सेवायतन का कार्य भी काबिले तारीफ
तीर्थक्षेत्र कमेटी के सहयोग से हर वर्ष की तरह मितेश जैन गांधी नगर दिल्ली की अगुवाई में 52 जनों का प्रतिनिधि मंडल ने कमेटी कार्यालय, पारस टोंक व गणधर टोंक पर मेडिकल कैम्प लगायें, जिसमें हजारों लोगों ने लाभ उठाया। नीचे सेवायतन ने भी स्वास्थ्य चैक-अप कैम्प लगाया। सान्ध्य महालक्ष्मी टीम ने सभी कैम्पों का दौरा कर हाल जाना। मितेश जैन के कैम्पों में डॉक्टर टीम यात्रियों की चिकित्सा संबंधी मदद कर रही थी। किसी को चोट, तो किसी को दर्द या बुखार की शिकायत ज्यादा थी। इसके साथ ही यह समूह पानी, ओकाली और लाडू वितरण की व्यवस्था भी बखूबी संभाल रहा था।
इसी तरह तलहटी में सेवयातन पिछले कई वर्षों से स्थानीय लोगों के अलावा यात्रियों को नि:शुल्क सेवा प्रदान कर रहा है। सेवायतन के अध्यक्ष श्री राजकुमार जैन अजमेरा ने बताया कि यहां कुशल डॉक्टरों की टीम उपलब्ध है जो सुबह और शाम दो समय ओपीडी तथा इलाज उपलब्ध कराती है। एक्सरे के लिये नवीनतम मशीन लगाई गई है, पैथोलोजी लैब के कारण ब्लड सैम्पल की जांच के लिये कहीं नहीं दौड़ना पड़ता। उसकी दो एम्बुलेंस भी हर समय रोगियों के लिये तैयार रहती हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि ये सभी सुविधायें एकदम नि:शुल्क प्रदान की जाती हैं।
वंदना मार्ग पर ही अखिल भारतीय दिगम्बर जैसवाल उपरोंचिया सेवा न्यास द्वारा स्वल्पाहार वितरण, श्री पवन जैन गोधा (आदिनाथ चैनल) एवं विजय जैन चांदी वाले (पीतमपुरा दिल्ली) के सौजन्य से श्री शिखरजी स्वच्छता समिति मधुबन द्वारा द्वितीय सेवार्थ शिविर, डाकबंगले के पास तथा उसके बाद पारसनाथ टोक से 3 किमी नीचे डिब्बाबंद भोजन का प्रबंध संस्थानों द्वारा किया गया। कोलकाता युवा संघ द्वारा वंदना मार्ग से लौट रहे यात्रियों के लिये पैरों पर बाम लगाकर दर्द से निजात दिला रहे थे, वहीं पीने के लिये जल, शिकंजी आदि का अच्छा प्रबंध था। साथ ही एक दिन पूर्व उनके द्वारा आर्यिका माताजी के सान्निध्य में 108 फीट लंबे पंचरंगे जैन ध्वज को शोभायात्रा के रूप में तलहटी में निकाली गई तथा उस ध्वज को वंदना मार्ग पर भी प्रदर्शित किया गया।
गत वर्ष वंदना पथ पर जगह-जगह चैकिंग की जा रही थी, पर इस बार ऐसा नहीं था। वंदना प्रवेश गेट पर 4 अर्द्धसैनिक बल के जवान बैठे जरूर थे, पर उन्होंने किसी आते-जाते को रोका-टोका नहीं। ऊपर पारस टोंक पर भी सीआरपीएफ के जवान थे। तीर्थक्षेत्र कमेटी ने बताया कि नीचे कैम्प से पता चला कि सबकी ड्यूटी अमरनाथ यात्रा में लगी थी, इसलिये यहां की व्यवस्था के लिये अधिक उपलब्ध नहीं थे। एम्बुलेंस की भी चौकस वय्वस्था थी। सबसे अच्छी बात यह रही कि कोई बड़ी अप्रिय घटना नहीं घटी।
जूते-चप्पल – अभक्ष्य पर
सान्ध्य महालक्ष्मी की कड़ी नजर थी
पूरे वंदना पथ में मांस आदि अभक्ष्य की कोई जानकारी नहीं मिली। सुबह जिन लोगों ने वंदना की, उनमें से किसी के पैरों में जूते-चप्पल नहीं थे। पर दोपहर बाद कई जूते-चप्पल पहने ऊपर जाते नजर आये। जैन ही नहीं अजैनों ने भी नंगे पैर यात्रा की। उनमें से कई पहली बार यात्रा कर रहे थे। कुछ को सान्ध्य महालक्ष्मी ने टोका भी, तो एक मां-बेटी ने चप्पलें उतारकर हाथ में लेकर बढ़ी, कहा गलती हो गई, इन्हें एक तरफ रख कर आगे वंदना करेंगी। लगा अभी जागरूकता की थोड़ी कमी है।
तीन दिन रहा मधुबन फुल
नौ तारीख से मधुबन हाउस फुल होने लगा था और 13 की दोपहर तक वहां 35 हजार से वापस 500-600 यात्री रह गये। सभी कोठी-धर्मशालाओं में बड़ी संख्या में यात्री बरामदों, अहातो में दिखाई दिये। सान्ध्य महालक्ष्मी की टीम विशेष रूप से अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन जी, उ.प्र. अंचल अध्यक्ष जवाहर लाल जैन जी आदि के साथ पारसनाथ गई थी। प्रशासन द्वारा बिजली की सुचारु व्यवस्था नहीं की गई। 24 में से 16-18 घंटे बिजली गायब रही, इस महान पर्व के अवसर पर।
तीर्थक्षेत्र कमेटी ने की प्रेस कांफ्रेंस पत्रकारों ने दिये अच्छे सुझाव
तीर्थक्षेत्र कमेटी के द्वारा कुछ अनोखी शुरूआत की गई। मोक्ष सप्तमी से दो दिन पहले प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर सभी स्थानीय अखबारों को जानकारी दी गई, वही उनसे क्षेत्र की पावनता-पवित्रता के लिये सुझाव भी मांगे गये। विचारों का लाभकारी आदान-प्रदान, भविष्य में योजनाओं को बनाने में सहायक बनेगा।
तीर्थक्षेत्र कमेटी कार्यालय के बाहर
संतों ने विशेष मंच से दिये उद्बोधन
साथ ही पहली बार तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष जंबू प्रसाद जैन, जवाहर लाल जैन, राजकुमार जैन अजमेरा, प्रभात जैन सेठी, देवेन्द्र जैन के साथ सान्ध्य महालक्ष्मी की टीम मधुबन में विराजमान सभी साधु-संतों से मिलने गई तथा उन सभी से सम्मेद शिखरजी की सुरक्षा-संवर्धन में तीर्थक्षेत्र कमेटी के कार्यों के बारे में बताया। सबसे चर्चा में एक बात स्पष्ट सामने आई कि इससे पूर्व तीर्थक्षेत्र कमेटी ने कभी सभी साधु-संतों से मिलकर इस तरह की कोई पहल नहीं की। पहली बार तीर्थक्षेत्र कमेटी कार्यालय के बाहर विशेष मंच बनाकर सुबह आर्यिकाओं तथा सायं आचार्य संतों के सम्मेदशिखरजी के बारे में उद्बोधन का लाभ भी वंदना के लिये आते-जाते यात्रियों को धर्मलाभ भी सुलभ कराया।
स्वर्ण भद्र कूट पर लाडू की विशेष व्यवस्था
हमेशा की तरह तीर्थयात्रियों को पारस टोंक पर अर्पित करने के लिए वहीं सीढ़ियों के पास कार्यालय से नि:शुल्क लाडू की अच्छी व्यवस्था कराई गई। वंदना पूर्ण करने के बाद जगह-जगह ओकाली, चाय, बच्चों के लिये दूध, भोजन, अल्पाहार आदि की व्यवस्थायें विभिन्न संस्थायें- संगठनों ने अच्छी तरह संभाल रखी थी, जिसका लगभग सभी तीर्थयात्रियों ने लाभ लिया। इस बार पिछली बार की तरह अन्य सम्प्रदायों के अनर्गल स्टाल नहीं लगने देना अच्छी बात रही। वन्य प्राणी प्रमण्डल, हजारीबाग द्वारा जगह-जगह लकड़ी के आकर्षक कूड़ेदान व ठहराव स्थल भी बनाये गये हैं।
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्वागत करते तोरण द्वार, चमाचम करती झालरें, स्वर्णभद्र कूट के साथ तलहटी में हर कोठी पर लाइटिंग व जगमगाता पथ अनादिनिधन तीर्थ को चौदहवीं का चांद के रूप में रोशन कर रहा था। बिजली व्यवस्था सुचारू न होने से जनरेटरों की आवाज हर जगह आ रही थी। स्वर्णभद्र कूट के प्रवेश द्वार पर फूलों की आकर्षक सजावट देखते ही बनती थी।
पिछले 15 दिनों से लगातार बरसात ने गंधर्व नाले व शीतल नाले पर झरने का आकर्षण पैदा कर दिया था। चारों तरफ हरियाली से प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता था। आकाश में सूरज और बादलों की आंख मिचौनी देखते ही बनती थी। टोंको के नीचे से तैरते बादलों ने हर दृश्य को आनंदित कर दिया था, लग रहा था, जैसे आज बादलों के साथ आकाश मार्ग से देव भी हर टोंक के चरण को छूने में अभिभूत हो रहे थे।
कुछ तीर्थयात्रियों ने टोंको के भीतर कपूर – दीपक जलाकर तथा कई ने खाने के बाद कूड़ा बिखेर जरूर गंदगी के दृश्य देखने को मजबूर किये। पहाड़ पर दुकानों पर उमड़ते यात्रियों ने अपनी जिह्वा पर नियंत्रण नहीं किया। फिर भी 35 हजार से ज्यादा तीर्थयात्रियों को सुविधाजनक वंदना करने के लिये तीर्थक्षेत्र कमेटी व अन्य संस्थाओं का प्रयास सराहनीय रहे।
तलहटी में नि:शुल्क भोजनशाला
तलहटी में दिल्ली की श्री प्रमाणिक संघ ने 9 से 11 अगस्त तक गुणायतन परिसर में नि:शुल्क भोजन की अच्छी व्यवस्था थी जो प्रात: 11 बजे से सूर्यास्त तक चली और हजारों यात्रियों ने इसका लाभ उठाया। इसी तरह जैन लाईफ द्वारा 9 से 11 अगस्त तक प्रात: चाय नाश्ता तथा 10 से सूर्यास्त तक वात्सल्य भोजन की व्यवस्था बीसपंथी कोटी के सामने मध्यलोक मंदिर हॉल में की।
(प्रवीन कुमार जैन/ सान्ध्य महालक्ष्मी)