माघ कृष्ण द्वादशी (इस वर्ष 29 जनवरी को है), पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में महारानी सुनंदा देवी के गर्भ से आपका इधर जन्म हुआ, उधर स्वर्ग सौधर्मेन्द्र, शची के साथ स्वर्ग से धरा पर आ पहुंचा मेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक के लिए।
आपकी आयु एक लाख पूर्व वर्ष थी, तपे सोने जैसा रंग, 540 फुट ऊंचा कद। 25 हजार पूर्व वर्ष का कुमार काल और फिर 25 हजार पूर्व वर्ष राजपाट संभाला।
10वे तीर्थंकर शीतलनाथ जिनेन्द्र परिचय
गर्भकल्याणक तिथि:चैत्र कृष्ण 8,
गर्भ नक्षत्र:पूर्वाषाढा,
गर्भावास:अंतिम रात्रि,
जन्मभूमि – भद्रपुरी, मलय देश का भद्रपुरनगर/भद्दीलपुर(भद्रिकापुरी, इटखोरी, जि. चतरा-झारखंड राज्य),
पिता – महाराजा दृढ़रथ
माता – महारानी सुनन्दा
वर्ण – क्षत्रिय
वंश – इक्ष्वाकु
देहवर्ण – तप्त स्वर्ण सदृश
चिन्ह – श्रीवृक्ष (कल्पवृक्ष)
आयु – एक लाख पूर्व वर्ष
शरीरकी अवगाहना:–90धनुष,/ तीन सौ साठ हाथ
जन्म – माघ कृ. १२
फिर एक दिन हिम का नाश देखकर इसी माघ कृष्ण द्वादशी को मन में वैराग्य की भावना बलवती हो गई। बस शुक्रप्रभा पालकी से सहेतुक वन पहुंचे, उनके तप की ओर बढ़ते कदमों को देख एक हजार और राजाओं ने दीक्षा ली।
तप – माघ कृ. १२
दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं वृक्ष – सहेतुक वन एवं बेलवृक्ष
प्रथम आहार – अरिष्ट नगर के राजा पुनर्वसु द्वारा (खीर)
केवलज्ञान – पौष कृ. १४
मोक्ष – आश्विन शु. ८
मोक्षस्थल-सम्मेद शिखर पर्वत
समवसरण में गणधर श्री अनगार आदि 87
मुख्य गणधर:कुन्थु,
सर्वऋषि:100000
आर्यिका संख्या:380000,
मुख्य आर्यिका:धरणा,
श्राविका संख्या:400000,
श्रावक संख्या:200000,
मुख्य श्रोता:सीमंधर,
यक्ष:ब्रह्मेश्वर,
यक्षिणी:मानवी देवी
योग निवृत्ति काल:1 मास पूर्व,
चिन्ह:कल्पवृक्ष,
भगवान शीतलनाथ वर्तमान वीर नि.सं. 2548 से 39480 वर्ष कम एक करोड़ सागर पहले मोक्ष गए हैं।
शीतलनाथ भगवान
पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरू पर्वत के पूर्व विदेह में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का एक देश है, उसके सुसीमा नगर में पद्मगुल्म नाम का राजा रहता था। किसी समय बसन्त ऋतु की शोभा समाप्त होने के बाद राजा को वैराग्य हो गया और आनन्द नामक मुनिराज के पास दीक्षा लेकर विपाकसूत्र तक अंगों का अध्ययन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके आरण नामक स्वर्ग में इन्द्र हो गया।
गर्भ और जन्म
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर का स्वामी दृढ़रथ राज्य करता था, उसकी महारानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान शीतलनाथ को जन्म दिया।
तप कल्याणक
भगवान ने किसी समय वन विहार करते हुए क्षणभर में पाले के समूह (कुहरा) को नष्ट हुआ देखकर राज्यभार अपने पुत्र को सौंपकर देवों द्वारा लाई गई ‘शुक्रप्रभा’ नाम की पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे और माघ कृष्ण द्वादशी के दिन स्वयं दीक्षित हो गये। अरिष्ट नगर के पुनर्वसु राजा ने उन्हें प्रथम खीर का आहार दिया था।
केवलज्ञान और मोक्ष
अनन्तर छद्मस्थ अवस्था के तीन वर्ष बिताकर पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन बेल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर एक माह का योग निरोध कर आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन कर्म शत्रुओं को नष्ट कर मुक्तिपद को प्राप्त हुए।
निर्वाण तिथि: आश्विन शुक्ल 8, मोक्षकाल: पूर्वान्ह, मोक्षनक्षत्र:पूर्वाषाढा,सहमुक्त:1000 मुनि मुक्तिस्थान:विद्युतवर कूट श्रीसम्मेदशिखरजी.
10वे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान के चरणों में कोटी कोटी नमन।