कल (29 जनवरी) है माघ कृष्ण द्वादशी – सौ सागर बाद फिर जन्म हुआ तीर्थंकर का, इस बार भद्रिलपुर में

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9वें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी को मोक्ष गये सौ सागर का समय बीत चुका था और दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी के आने की शुभ सूचना मिल चुकी थी, क्योंकि भद्रिलपुर में महाराजा दृणरथ जी के राजमहल पर 15 माह से सुबह-दोपहर-शाम स्वर्ग से साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा लगातार हो रही थी।

और अब वह दिन आ भी गया। माघ कृष्ण द्वादशी (इस वर्ष 29 जनवरी को है), पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में महारानी सुनंदा देवी के गर्भ से आपका इधर जन्म हुआ, उधर स्वर्ग सौधर्मेन्द्र, शची के साथ स्वर्ग से धरा पर आ पहुंचा मेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक के लिए।

आपकी आयु एक लाख पूर्व वर्ष थी, तपे सोने जैसा रंग, 540 फुट ऊंचा कद। 25 हजार पूर्व वर्ष का कुमार काल और फिर 25 हजार पूर्व वर्ष राजपाट संभाला।

फिर एक दिन हिम का नाश देखकर इसी माघ कृष्ण द्वादशी को मन में वैराग्य की भावना बलवती हो गई। बस शुक्रप्रभा पालकी से सहेतुक वन पहुंचे, उनके तप की ओर बढ़ते कदमों को देख एक हजार और राजाओं ने दीक्षा ली।

बोलिये 10वें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी के जन्म-तप कल्याणक की जय-जय-जय।
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