श्री शीतलनाथजी तीर्थंकरके मोक्ष कल्याणक की जय हो
“शीतलता का स्रोत आत्मा, आज दृष्टि में आया है।
मिथ्या तपन मिटी सब प्रभुवर,मुक्ति मार्ग प्रगटाया है।।”
अनादि निधन तीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी की विद्युत वर कूट से, इसी पावन दिन आश्विन शुक्ल अष्टमी को 1000 महामुनिराजों के साथ पूर्वाहन काल में एक समय में तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी सिद्धालय पहुंच गए । आपका तीर्थ प्रवर्तन काल एक करोड़ सागर से कुछ कम रहा ।इस विद्युतवर कूट से 18 कोड़ा कोड़ी 42 करोड़ 32 लाख 42 हजार 905 महामुनिराज सिद्ध भए हैं। इस टोक की भाव सहित वंदना करने से एक करोड़ उपवास का फल मिलता है।
10वे तीर्थंकर शीतलनाथ जिनेन्द्र परिचय
जन्मभूमि – भद्रपुरी, मलय देश का भद्रपुरनगर/भद्दीलपुर(भद्रिकापुरी, इटखोरी, जि. चतरा-झारखंड राज्य),
पिता – महाराजा दृढ़रथ
माता – महारानी सुनन्दा
वर्ण – क्षत्रिय
वंश – इक्ष्वाकु
देहवर्ण – तप्त स्वर्ण सदृश
चिन्ह – श्रीवृक्ष (कल्पवृक्ष)
आयु – एक लाख पूर्व वर्ष
शरीरकी अवगाहना:–90धनुष,/ तीन सौ साठ हाथ
गर्भ – चैत्र कृ. ८
जन्म – माघ कृ. १२
तप – माघ कृ. १२
दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं वृक्ष – सहेतुक वन एवं बेलवृक्ष
प्रथम आहार – अरिष्ट नगर के राजा पुनर्वसु द्वारा (खीर)
केवलज्ञान – पौष कृ. १४
मोक्ष – आश्विन शु. ८
मोक्षस्थल-सम्मेद शिखर पर्वत
समवसरण में गणधर श्री अनगार आदि 87
मुख्य गणधर:कुन्थु,
सर्वऋषि:100000
आर्यिका संख्या:380000,
मुख्य आर्यिका:धरणा,
श्राविका संख्या:400000,
श्रावक संख्या:200000,
मुख्य श्रोता:सीमंधर,
यक्ष:ब्रह्मेश्वर,
यक्षिणी:मानवी देवी
योग निवृत्ति काल:1 मास पूर्व,
चिन्ह:कल्पवृक्ष,
भगवान शीतलनाथ वर्तमान वीर नि.सं. 2547 से 39481 वर्ष कम एक करोड़ सागर पहले मोक्ष गए हैं।
शीतलनाथ भगवान
पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरू पर्वत के पूर्व विदेह में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का एक देश है, उसके सुसीमा नगर में पद्मगुल्म नाम का राजा रहता था। किसी समय बसन्त ऋतु की शोभा समाप्त होने के बाद राजा को वैराग्य हो गया और आनन्द नामक मुनिराज के पास दीक्षा लेकर विपाकसूत्र तक अंगों का अध्ययन किया, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके आरण नामक स्वर्ग में इन्द्र हो गया।
गर्भ और जन्म
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर का स्वामी दृढ़रथ राज्य करता था, उसकी महारानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान शीतलनाथ को जन्म दिया।
तप कल्याणक
भगवान ने किसी समय वन विहार करते हुए क्षणभर में पाले के समूह (कुहरा) को नष्ट हुआ देखकर राज्यभार अपने पुत्र को सौंपकर देवों द्वारा लाई गई ‘शुक्रप्रभा’ नाम की पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे और माघ कृष्ण द्वादशी के दिन स्वयं दीक्षित हो गये। अरिष्ट नगर के पुनर्वसु राजा ने उन्हें प्रथम खीर का आहार दिया था।
केवलज्ञान और मोक्ष
अनन्तर छद्मस्थ अवस्था के तीन वर्ष बिताकर पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन बेल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर एक माह का योग निरोध कर आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन कर्म शत्रुओं को नष्ट कर मुक्तिपद को प्राप्त हुए।
पिता: इक्ष्वाकुवंशी महाराजा दृढ़रथ,
माता:महारानी नंदा,जन्मस्थान:मलय देश का भद्रपुरनगर/भद्दीलपुर(भद्रिकापुरी, इटखोरी, जि. चतरा-झारखंड राज्य),
आरण स्वर्ग के इंद्र महारानी नंदा के गर्भ में अवतीर्ण हुए
गर्भकल्याणक तिथि:चैत्र कृष्ण 8,
गर्भ नक्षत्र:पूर्वाषाढा,
गर्भावास:अंतिम रात्रि,
जन्मतिथि : माघ कृष्ण 12,जन्मनक्षत्र:पूर्वाषाढा,
वैराग्य कारण:हिम नाश,
दीक्षातिथि :माघ कृष्ण 12,दीक्षा नक्षत्र:मूल,दीक्षावन:सहेतुक
दिक्षोपवास: 2 (बेला),दीक्षाकाल:अपराह्न,
दीक्षा पालकी:शुक्रप्रभा, दीक्षास्थान:भद्दीलपुर
प्रथम आहार दाता:पुनर्वसु राजा, आहार वस्तु:गायके दूधकी खीर
प्रथम आहार स्थान:अरिष्टपुर, सहदीक्षित:1000, छद्मस्थकाल:3 वर्ष,
केवलज्ञानतिथि: पौष कृष्ण 14,
केवलज्ञान नक्षत्र:पूर्वाषाढा, केवलोत्पत्ति काल:अपराह्न,
गणधर संख्या: 87,मुख्य गणधर:कुन्थु,सर्वऋषि:100000
आर्यिका संख्या:380000,मुख्य आर्यिका:धरणा,
श्राविका संख्या:400000, श्रावक संख्या:200000,
मुख्य श्रोता:सीमंधर,यक्ष:ब्रह्मेश्वर,यक्षिणी:ज्वालामालिनी,
योग निवृत्ति काल:1 मास पूर्व,चिन्ह:कल्पवृक्ष,
आयु:1 लाख पूर्व वर्ष,शरीरकी अवगाहना:90धनुष,
निर्वाण तिथि: आश्विन शुक्ल 8, मोक्षकाल: पूर्वान्ह, मोक्षनक्षत्र:पूर्वाषाढा,सहमुक्त:1000मुनि मुक्तिस्थान:विद्युतवर कूट श्रीसम्मेदशिखरजी.
10वे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान के चरणों में कोटी कोटी नमन।
संकलनकर्ता नन्दन जैन ,9479521008 9303901008