सान्ध्य महालक्ष्मी / 02 अप्रैल 2021
श्री धर्मनगर क्षेत्र (महाराष्ट्र)। आचार्य रत्न श्री बाहुबली सागरजी महाराज के शिष्य मुनि श्री शांति सेन जी महाराज की 29 मार्च 2021 को सायं 3.45 पर सल्लेखनापूर्वक समाधिमरण हो गया। इस अवसर पर गणिनी प्रमुख आर्यिका जिनदेवी माताजी ने कहा कि मंदिर की पूर्णता शिखर पर सुवर्ण कलशारोहण से होती है, तद्त जीवन मंदिर सन्तों की साधना की पूर्णता सल्लेखना रूप सुवर्ण कलशारोहण से होती है। मुनि श्री शान्तिसेन जी की यम सल्लेखना के पांचवें दिन 29 मार्च को दोपहर में सम्बोधन, स्वाध्याय सुन रहे थे। अचानक उठकर बैठ गये। गुरुओं के पाद मूल में 25 साधु-सन्तों, आर्यिकागण, महामंत्र का स्मरण, जय घोषणाओं के साथ शान्ति से समाधिमरण हो गया। उन्हें आचार्य श्री धर्मसेन जी महाराज, आचार्य श्री देवसेन जी महाराज, आचार्य श्री जिनसेन जी महाराज, गणिनी आर्यिका प्रमुख जिनदेवी माताजी (सभी ससंघ) 25 पिच्छियों का सान्निध्य था।
मुनि श्री का पूर्व आश्रम का नाम वालीशा गतारे जैन था। उनका जन्म शिरडी (कोल्हापुर) में हुआ था तथा कृषि व्यवसाय व खेती से जुड़े थे। उन्होंने मंदिर निर्माण के लिये 10 गुंटा जमीन दान में दी थी। 1988 में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा करायी। मंदिर की व्यवस्था भी देखते थे।
मुनि श्री ने आचार्य श्री बाहुबली सागरजी महाराज से 1999 में करवीन कोप (कर्नाटक) मेें क्षुल्लक दीक्षा धारण की। उनकी गृह आश्रम की धर्मप्तनी सौ. सोना बाई ने भी दीक्षा लेकर आर्यिका गुणश्री माताजी के रूप में सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण हुआ है। मुनि श्री ने 12 साल की सल्लेखना ली थी तथा 14 फरवरी 2021 को आ. श्री धर्मसेनजी से मुनि दीक्षा धारण की।
अन्तिम संस्कार – विमान डोला उठाना, पीठ पंचामृत अभिषेक शिरडी गांव के श्रावकगण पंकज बम्बई तथा अग्नि संस्कार श्रीकान्त आदिनाथ उपाध्ये, जयसिंगपूर ने धर्मलाभ लिया। क्षेत्र पर विराजमान सभी आचार्यों, साधु-सन्तों व आर्यिका माताओं के आहार दान, वैय्यावृत्ति की व्यवस्था धर्मनगर, शिरदोण, इंचलकरंजी, गणेशवाडी, भोज, शिरडी, कुरुंदवाड, कई भजले, आदि आसपास के गांव वालों ने करके पुण्य लाभ लिया।
उनकी आत्मा को सद्गति प्राप्त हो।
दुक्खखओ, कम्मक्खओ, सुगइमगमणं
समाधिमरणं, जिनगुण सम्पत्ति होउ।
यहां 22 मार्च से 29 मार्च तक इन्द्रध्वज महामंडल का आयोजन भी किया गया। समापन पर विश्वशांति महायज्ञ व पालकी यात्रा निकाली गयी।
– पवन कुमार जैन, शास्त्री नगर।