तीर्थंकर श्री शांतिनाथजी, जिनका जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक है, कभी सोचा है, क्यों शांतिधारा केवल शांतिनाथ भगवान जी के नाम पर ही होती है

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28 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जेष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, जो इस वर्ष 29 मई को है। यही वह पावन दिन है , जब उन तीर्थंकर का जन्म होता है, जिनका जन्म , तप और मोक्ष कल्याणक, एक ही दिन आते हैं। सबसे पहले तीर्थंकर है जो 16 नंबर पर आते हैं, पर साथ में कामदेव और चक्रवर्ती भी होते हैं। हस्तिनापुर में जन्म लेने वाले, पहले तीर्थंकर और यहीं पर क्रम से लगातार, तीन तीर्थंकरों का जन्म होता है और उन सब के, चार चार कल्याणक हस्तिनापुर में होते हैं ।

कभी इस बात पर चिंतन किया है कि हम मंदिरों में शांति धारा रोज करते हैं, भगवान शांतिनाथ जी के ही नाम पर होती है शांति धारा , क्यों , किसी और के नाम पर नहीं होती शांति धारा । हमने दिन भी बांट लिए और पूजा भी बांट रखी हैं अलग भगवानों की, पर शांतिधारा शांतिनाथ भगवान जी के नाम पर होती है, क्यों ।

आज यह जानकारी लेते हैं, 16वें तीर्थंकर से पूर्व, सात बार धर्म का विच्छेदन होता है , यानी धर्म समाप्त हो जाता है कुछ समय बीच में और जब हमारे 16 तीर्थंकर बनते हैं। उसके बाद यह धर्म की धारा, अविरल चलती आ रही है , बिना टूटे बिना रुके , यानी अभी यह पंचम काल के अंत तक चलेगी यानि, अभी 18452 वर्ष और , यह अविरल धारा लगातार चलती रहेगी । बस इसी कारण , शांतिधारा तीनो लोक में, शांति के लिए, भगवान शांतिनाथ जी के नाम से करते हैं।

15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी के 3 सागर, 250000 वर्ष के लगभग बीत जाने के बाद , हस्तिनापुर में महाराजा श्री विश्वसेन जी की, महारानी एरा देवी के गर्भ से जन्म होता है ,उस जीव का, जो उससे पूर्व सर्वार्थसिद्धि विमान में थे ।जन्म तक लगातार 15 महीनों तक कुबेर रत्नों की बरसात करता रहता है । आपकी आयु 100000 वर्ष की थी और कथा 240 फुट। आपका कुमार काल 25000 वर्ष रहा और फिर आपने 50000 वर्ष तक राजपाट किया। आप पांचवे चक्रवर्ती और बारहवे कामदेव थे। जाति स्मरण से आपके अंदर वैराग्य की भावना बलवती हो गई। जब आपने दर्पण में अपने मुख के , दो प्रतिबिंब देखें, बस तभी आप दीक्षा के लिए तैयार हो गए। चल दिए आप वहां से सर्वार्थसिद्धि पालकी में और हजार राजा आपको देखा देखी, उन्होंने भी दीक्षा ले ली। 16 वर्ष तक, कठोर तप किया, फिर केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई।

फिर जब आयु कर्म का मात्र एक माह रह गया, तो आप श्री सम्मेद शिखरजी की कुंदप्रभ कूट पर पहुंच गए। वही कूट जहां से, आप सिद्धालय की ओर एक समय में चल दिए। आपके साथ 900 महामुनिराजों ने भी मोक्ष प्राप्त किया । इस कूट से एक कोड़ा कोड़ी 9 लाख 9हजार 999 महामुनिराज भी मोक्ष गए हैं।

कहा जाता है कि इसकी निर्मल भावों से वंदना करने से एक करोड़ प्रोषध उपवास का फल मिलता है। चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी के साथ, बोलिए 16वे तीर्थंकर, पांचवे चक्रवर्ती और बारहवें कामदेव के जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक की जय जय जय।