16 वे तीर्थंकर, 5 वे चक्रवर्ती और 12 वे कामदेव ऐसे तीन पद के धारी देवाधिदेव शांतिनाथ का बुधवार, पौष शुक्ल दशमी, वी. सं.2548,दि., 2022 को केवलज्ञान कल्याणक पर्व है ।
केवलज्ञान अर्घ्य:-
“केवलज्ञान विकास पौष सुदीदशमी के।
समवसरण में नाथ विराजे अधर कमल पे।।
इंद्र करें बहु भक्ति, बारह सभा बनी हैं।
सभी भव्य जन आय सुनते दिव्य ध्वनी हैं।।
ॐ ह्रीं पौषशुक्लदशम्यां श्रीशांतिनाथजिनकेवलज्ञान–कल्याणकाय नमः अर्घ्यं…
जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातः काल शुभ भरणी नक्षत्रों के योग में हुआ था। उनके इक्ष्वाकुवंशी पिता का नाम विश्वसेन था, जो हस्तिनापुर के राजा थे। उनकी माता का नाम महारानी ऐरादेवी था।
बचपन में ही शिशु शांतिनाथ कामदेव के समान सुंदर थे। कहा जाता है उनका मनोहारी रूप देखने के लिए देवराज इन्द्र-इन्द्राणी सहित उपस्थित हुए थे। शांतिनाथ के शरीरकी आभा स्वर्ण के समान दिखाई देती थी। उनके शरीरपर सूर्य, चन्द्र, ध्वजा, शंख, चक्र और तोरण के शुभ मंगल चिह्न अंकित थे। जन्म से ही उनकी जिह्वा पर मां सरस्वती देवी विराजमान थीं।
जब शांतिनाथ युवावस्था में पहुंचे तो राजा विश्वसेन ने उनका विवाह कराया एवं राजा विश्वसेन ने मुनि-दीक्षा ले ली। राजा बने शांतिनाथ के शरीर पर जन्म से ही शुभ चिह्न थे।उनके प्रताप से वे शीघ्र ही चक्रवर्ती राजा बन गए।उनकी 96 हजार रानियां थीं। उनके पास 18 करोड़ घोड़े,84 लाख हाथी, 360 रसोइए, 84 करोड़ सैनिक, 28 हजार वन,18 हजार मंडलिक राज्य, 360 राजवैद्य, 32 हजार अंगरक्षक देव, 32 चमर ढोलने वाले यक्ष, 32 हजार मुकुटबध्द राजा, तीन करोड़ उत्तम वीर,अनेकों करोड़ विद्याधर,88000 म्लेच्छ राजा, 96 करोड़ ग्राम, 1 करोड़ हंडे, 3 करोड़ गायें, 3 करोड़ 50 लाख बंधु-बांधव, 10 प्रकार के दिव्य भोग, 9 निधियां और 14 रत्न, 3 करोड़ थालियां आदि संपदा थीं। उनके 75 हजार नगर,16000 खेट, 24000 कर्वट, 4000 मटम्ब, 48000 पत्तन आदि अनेकों वैभव थे।
इस अकूत संपदा के मालिक रहे राजा शांतिनाथ ने सैकड़ों वर्षों तक पूरी पृथ्वी पर न्यायपूर्वक शासन किया। एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे।तभी उनकी किशोरावस्था का एक और मुख दर्पण में दिखाई पड़ने लगा, मानो वह उन्हें कुछ संकेत कर रहा था।
उस संकेत देख वे समझ गए कि वे पहले किशोर थे फिर युवा हुए और अब प्रौढ़। इसी प्रकार सारा जीवन बीत जाएगा। लेकिन उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा पाना है। यही उनके जीवन का उद्देश्य भी है। …और उसी पल उन्होंनेअपने पुत्र नारायण का राज्याभिषेक किया और
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को भरणी नक्षत्र में बेला का नियम लेकर स्वयं दीक्षा लेकर दिगंबर मुनि का वेष धारण कर लिया। मुनि बनने के बाद लगातार सोलह वर्षों तक विभिन्न वनों में रहकर घोर तप करने के पश्चात अंतत: पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई और वे अरिहंत कहलाएं।
.”भगवान शांतिनाथ – संक्षिप्त परिचय
16. शांतिनाथ स्वामी
चिन्ह: हिरण
ऊंचाई : 40 धनुष (120 मीटर)
700,000 वर्ष से अधिक आयु
रंग सुनहरा
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म ज्येष्ठ कृष्ण 14
हस्तिनापुर
मोक्ष ज्येष्ठ कृष्ण 14
शिखरजी
माता – पिता
विश्वसेना (पिता)
ऐरावती (माँ)
जन्मस्थान हस्तिनापुर (यूपी)
पिता राजा विश्वसेन
माता रानी ऐरावती
जाति (वर्ण) क्षत्रिय
राजवंश कुरु
शरीर का रंग सुनहरा
प्रतीक हिरण
आयु 1 लाख वर्ष
बॉडी ऑक्यूपेंसी 160 हाथ
अवतार (गर्भ में) भाद्रपद कृष्ण 7
जन्म ज्येष्ठ कृष्ण 14
दीक्षा ज्येष्ठ कृष्ण 14
दीक्षा सर्वज्ञ वन और वृक्ष-सहस्राम वन और नंद्यावर्त वृक्ष
मंदिरपुर के राजा सुमित्रा द्वारा दिया गया पहला भोजन (खीर)
केवलज्ञान कल्याणक स्थान:हस्तिनापुर, पौष शुक्ल 10
केवलवृक्ष:नन्दी
केवलनक्षत्र:भरणी, केवलोत्पत्ति काल:अपराह्न
समवसरण भूमि:४.५ योजन, केवलस्थान:आम्रवन
केवलीकाल:२४९८४ वर्ष
गणधर संख्या: ३६, मुख्य गणधर:चक्रायुध
मोक्ष ज्येष्ठ कृष्ण 14
मोक्ष स्थल सम्मेदशिखर पर्वत
मुख्य शिष्य (गंधार) 36 (श्री चक्रयुध आदि)
ऋषि : 62 हजार
प्रमुख आर्यिका (गणिनी) आर्यिका हरिषेणा
महिला संत (आर्यिका) 60 हजार 3 सौ
श्रावक:2 लाख
श्राविका: 4 लाख
यक्ष:गरुड़,
यक्षिणी:मानसी.