अभिषेक शान्तिधारा को पूर्णत कमर्शल/व्यापारिक किया जा रहा है- रूपये देकर दुसरे व्यक्ति से करवाने पर क्या पुण्य मिलता है ?

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विचारणीय और चिंतन हेतु

मैं प्रतिदिन सवेरे व शाम पारस व जिनवाणी चैनल देखता हूँ । सवेरे कई मन्दिरों की शान्तिधारा दिखाई जाती है। कितना दुखद है कि 5 मिनट की शान्तिधारा 30 मिनट में की जाती है क्योंकि 25 मिनट तो शान्तिधारा करवाने वालो के नाम बोले जाते हैं। क्या यह उचित है कि भगवान पर सिर्फ रूपयों की बजह से अनावश्यक अत्यधिक अधिक जल चढाया जाता है ।जैन आमना के अनुसार पानी की एक बूंद में असंख्यात जीव होते हैं और जीव वैज्ञानिकों के अनुसार पानी की एक बूँद में 36450 जीव होते हैं।

भगवान के शान्तिधारा के समय मंत्रो का उच्चारण कम होता है व दान दाताओं के नाम का ही उच्चारण होता रहता है जिससे शान्तिधारा को देखने की एकाग्रता बन ही नही पाती व धर्म लाभ से वंचित होते हैं।

क्या यह जैन धर्म के सिद्धांत के विरूद्ध नही है।
अभिषेक शान्तिधारा को पूर्णत कमर्शल/व्यापारिक किया जा रहा है।अब तो घर बैठे बिना धर्म किए केवल 1100/ 2100 रूपयों मे विधान व शांतिधारा का पुन्यार्जन की स्कीमें आ गई है। चैनल पर बताया जाता है कि घर बैठे पैसे देकर अभिषेक, शांतिधारा का पुन्यार्जन किया जा सकता है जबकि जैन धर्म मे उस व्यक्ति को पुन्य मिलता है जो स्वयं धर्म करता है।दुसरे धर्म मे दुसरे व्यक्ति द्वारा किये धर्म का लाभ ट्रांसफरेबल है परन्तु जैन धर्म इसको नही मानता। फिर पैसे देकर विभिन्न मन्दिर मे अपने नाम से कराई अभिषेक या शान्तिधारा ( जिसमें आप स्वयं उपस्थित भी नही हैं ) का पुन्य मिलता है या पाप यह आप निर्णय करे।

दोनो चैनल देखकर ऐसा लगता है कि कौन सवेरे सवेरे मन्दिर जाकर अभिषेक व शान्तिधारा करे जब रूपये देकर इस का पुन्यार्जन किया जा सकता है। दो तीन मन्दिरों मे पैसे भेज दो तो एक ही दिन मे दो तीन अभिषेक शान्तिधारा का पुन्यार्जन मिल जाएगा। इसलिए मन्दिरों मे अभिषेक शांतिधारा करने वालों का अभाव हो गया है। जब ये स्कीम्स नहीं आई थी उस समय जैन स्वयं अभिषेक करना चाहता था वह मन्दिरों मे अभिषेक करने वालो की लाईन होती थी। मन्दिरों मे अभिषेक करने वाले समाप्त होते जा रहे है व आरती में केवल कुछ महिलाए रह गई हैं।। धन्टे मशीनो से बजाऐ जा रहे हैं।
पूजा-प्रक्षाल भक्ति-भाव से नहीं पैसों से होने लगी है। शांतिधारा, पहला अभिषेक, पहली आरती कौन करेगा, कलश उसकी भी बोली। शायद आने वाले समय में सबसे पहले दर्शन करने वाले की भी बोली लगने लगे। लॉटरी भी चालू हो गयी । पुरस्कार का प्रलोभन देकर धार्मिक कार्य किए जा रहे हैं ! चित्र-अनावरण, दीप -प्रज्वलन,आरती, झंडारोहण,पुस्तक विमोचन, चातुर्मास कलश स्थापना की बोली होती है। यह सब करना अब केवल पैसे वालों को नसीब होता है गरीब परिवार के भाग्य में यह नही रहा चाहे वह कितना धार्मिक हो या जैन सिद्धांतों को मानने वाला हो ।

क्या यही जैन धर्म का सच्चा स्वरुप है ?
सच तो यह है कि हम सिर्फ मंदिर जी मे जाकर पूजा,विधान करने को ही धर्म समझ बैठे हैं। जैन धर्म के 5 मूल सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य भूल गए हैं। अनजाने में हम स्वयं को धार्मिक समझ रहे हैं। और अपने कर्मो पर किसी का भी ध्यान नही है । यही हमारी अधोगति का कारण है।
आप सभी साधर्मी जनों से निवेदन है कि धर्म को पैसों से नही, जैन सिद्धांतानुसार करें।
– सोशल मीडिया पर आई एक पोस्ट