6 मार्च 2023/ फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन
बीसवीं सदी के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती गुरु नाम गुरु प्रातः स्मरणीय आचार्य श्री शान्तिसागर जी महामुनि के 103 वे मुनि दीक्षा दिवस मिति अनुसार फागुन शुक्ला 14 चतुर्दशी सोमवार सन 1920 से वर्ष 2023 मुनि दीक्षा दिवस पर कोटिशः नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु ।
सन 1918 में चारित्र चक्रवर्ती श्री शांति सागर जी महाराज ने ऐलक दीक्षा गिरनार जी में पांचवी टोंक पर ली थी, यह ऐतिहासिक महत्व रखता है । तब यहां तीर्थंकर श्रीनेमिनाथ जी की प्रतिमा और चरण थे और आज वहां पर उनको हटाकर, दत्तात्रेय टोंक बना दिया गया है।
भोज ग्राम के श्रीमती सत्यवती जी श्री भीमगोड़ा जी पाटिल के यहां सन 18 72 में 1008 श्री वासु पूज्य भगवान के गर्भ कल्याणक दिवस आषाढ़ कृष्णा 6 विक्रम संवत 1929 एक महा मना का जन्म हुआ जिनका नाम सात गोंडा जी रखा गया आपसे बड़े 2 भाई तथा एक भाई छोटा तथा एक बहन भी थी
आपमें बचपन से ही धार्मिक संस्कार रहे 18 वर्ष की उम्र में अपने बिस्तर का त्याग कर दिया
आजीवन ब्रहचर्य व्रत
आपने 18 वर्ष की अल्पायु में श्री सिद्ध सागर जी से आजीवन ब्रहचर्य व्रत लिया
25 वर्ष की उम्र में जूते चप्पल का त्याग कर दिया
32 वर्ष की उम्र में अपने सम्मेद शिखर जी की यात्रा की घी और तेल का आजीवन त्याग कर दिया
शिखर जी की यात्रा के बाद 32 वर्ष की उम्र में ही एक समय भोजन का नियम ले लिया जीवन आपने एक समय ही भोजन किया
एक आत्मा जो पुण्यात्मा बन कर धर्मात्मा बन कर परमात्मा बनने की राह पर है उनका गुणानुवाद
सन् 1915 में आपने उत्तर ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा श्री देवेंद्र कीर्ति जी स्वामी से ली
ऐलक दीक्षा
आपने गिरनार यात्रा सन 1918 में 1008 श्री नेमिनाथ भगवान की 5 वी टोंक पर स्वयम ने ऐलक दीक्षा ली
सन 1920 यरनाल कर्नाटक में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की
आपको सन 1924 में आचार्य पद दिया गया
सन 1925 में श्री श्रवण बेलगोला महामस्तकाभिषेक के बाद गुरुणा गुरु की उपाधि दी गई
आपने दीक्षा गुरु श्री देवेंद्र कीर्ति जी को पुनः मुनि दीक्षा दी इसलिए भी गुरुणा गुरु कहा जाता है
सन् 1937 में आपको चारित्र चक्रवर्ती पद दिया गया
जिनवाणी संरक्षण
आपकी प्रेरणा से धवल जय धवल टीका वाले षटखंडागम महाबंध कषाय पाहुड ग्रन्थ त्रय को 50 मन तांबे पर 2664 पत्रों पर अंकित कराया यह ग्रंथ आज भी फलटण में सुशोभित विराजित है
उपसर्ग
आपके जीवन मे सर्प के कोंगनोली गोकाक कौंनुर शेडवाल आदि 5 से अधिक अनेक उपसर्ग
सिंह के गोकाक मुक्तागिर जंगल श्रवण बेलगोला यात्रा सोनागिर बावनगजा द्रोण गिरीसिद्ध क्षेत्रो 6 से अधिक उपसर्ग से अधिक मकोड़े के चींटी के मानव जन्य उपसर्ग हुए है आपने नाम अनुरूप शांति के सागर बन कर उपसर्ग सहन किये
आपने अपने जीवन के साधु जीवन के 40 वर्षों में 9938 उपवास किए
आपने 26 मुनि दीक्षा
प्रथम मुनि शिष्य श्री वीरसागरजी
4 आर्यिका दीक्षा
प्रथम आ श्री चन्द्रमती जी
16 ऐलक दीक्षा
प्रथम ऐलक श्री पारीस सागर जी
28 क्षुल्लकदीक्षा
प्रथम क्षुल्लक श्री नेमकीर्ति जी
14 क्षुल्लिका दीक्षा
प्रथम क्षुल्लिका श्री शांति मति जी
कुल 88 आपने दीक्षाएं दी
आपके बड़े भाई ने भी आपसे मुनि दीक्षा लेकर मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी बने।
1105 दिन तक अनाज का त्याग विधर्मियो के मंदिर प्रवेश के विरोध में किया
8 वर्षो तक श्रावको ने केवल दूध चावल पानी दिया
8 दिन तक आहार में पानी ही नही दिया
ललितपुर चातुर्मास सन 1929 में सभी रसों का आजीवन त्याग किया
24 अक्टूम्बर 1951 में गजपंथा जी मे 12 वर्ष की नियम सल्लेखना ली
26 अगस्त 1955 को लिखित पत्र से मुनि श्री वीर सागर जी को आचार्य पद दिया
36 दिन की सल्लेखना में 18 सितम्बर 1955 को आपकी उत्कृष्ट समाधि हुई