आर्टिफिशियल ज्वैलरी की बढ़ती मांग की तरह, अब आर्टिफिशियल, दिखावटी हो गई है क्षमावाणी
॰ दुनिया का सबसे अनोखा, अद्वितीय पर्व 4 कारणों से –
पहला – बिना भेद के, सभी के द्वारा मनाया जाने वाला
दूसरा – इसको हर कोई कभी भी प्रकट करता
तीसरा – मित्रों से ज्यादा शत्रु के साथ मनाना अर्थपूर्ण
चौथा – ऐसा पर्व जो कहीं भी मनाओ।
॰ आजकल क्षमा को वाणी से प्रकट कर, फिर जैसे कम्प्यूटर पर कंट्रोल एस से सेव करने की बजाय कन्ट्रोल जेड कर वापिस वहीं पहुंच जाते हैं
16 सितंबर 2024/ भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
क्षमावाणी जिस पर्व की नींव जैन-श्रमण धर्म से जुड़ी है, पर उस महल में प्रवेश के लिये धर्म की परिधियां निष्क्रिय हो जाती है। इसलिये इस पर्व को मनाने के लिए किसी धर्म की परिधि में जाने की जरूरत नहीं है और दुनिया का यही पर्व एकमात्र उदाहरण है, जिसे हर व्यक्ति, बिना लिंग भेद के, बिना धर्म भेद के, बिना सम्प्रदाय भेद के, बिना देश भेद के, आस्तिक हो नास्तिक हो, अपना सकता है। यह त्यौहार नहीं है, धूम धड़ाका नहीं है, आत्म मंथन और आत्म चिंतन से अपने भीतर के स्वभाव को प्रकट करना, बस यही है वचन रूप में आने वाली क्षमा।
यह हर घर के द्वार से निकलती है, हर जुबान पर खिलती, बच्चों में भी मचलती है, अनायास उछलती भी है। विश्वास नहीं होता – अरे गलती हो गई, भाई जरा माफ करना, स्वत: मुख से निकल जाना – उई, सॉरी, ओ माई गॉड, इसी के परिभाषित शब्द तो नहीं, पर इसी क्षमावाणी से जुड़े दूर के रिश्तेदार जरूर हैं। यह आश्विन माह की पहली तारीख को ही नहीं अपनाया जाता, साल में तीन बार क्षमावाणी पर्व के रूप में ही नहीं, यह तो रोज ही, कभी भी, कहीं भी, कैसे भी, किसी के द्वारा अपना लिया जाता है। इस तरह का दुनिया का सबसे अनोखा पर्व है। दूसरे के प्रति अपनी गलती का सुधार और दोबारा उस गलती, भूल का ना करने का संकल्प, यही है वास्तविक क्षमावाणी।
और तीसरा कारण, जो हमें सबसे अनोखा बनाता है, अद्वितीय बनाता है, वह है कि यह अपने से ज्यादा, शत्रुओं के संग मनाया जाये, तो अर्थपूर्ण होता है। आज तक नहीं सुना होगा कि कोई पर्व अपनों की बजाय अलगाव, शत्रु, बैरी के साथ मनाया जाये, तो अर्थपूर्ण बन जायें। और चौथी बात, जो बनाती खास यह है कि इसको मनाने के लिये न मंदिर की जरूरत है, न पूजा सामाग्री की, न घर की, न दुकान की, न किसी मंच की, न किसी पण्डाल की। ये चिंतन आपको सान्ध्य महालक्ष्मी दे रहा है, अनोखे रूप में, चिंतन की सीमाओं को भी लांघते हुए। शब्दों से ऊपर भावों को रखते हुए। क्षमावाणी सबसे अनोखी, इन चार कारणों से, आप सोच सकते हैं इस अभिव्यक्ति को, पर प्रदर्शित नहीं कर पाये, बस एक अलग रूप में, आपके भीतर बैठी ‘क्षमा ’ सुगंध को प्रकट करने के लिये, आत्मसात करने के लिये परिभाषित कर रहा है चैनल महालक्ष्मी।
हां, जैन समुदाय इसे, सम्प्रदाय की खाई को पाटते हुये, पंथवाद-संतवाद को हटाकर भेदभाव मिटाकर प्रकट करता है, अभिव्यक्त करता है। इजरायल भी इसे अलग रूप में मनाता है। अरे नहीं, नहीं। हर कोई इसे अभिव्यक्त करता है, कोई रोज, कोई कभी, बिना निश्चित तिथि के, कोई निश्चित समय पर। गजब का पर्व है क्षमावाणी। आचार्य श्री विद्यानंद जी कहते थे इसे क्षमावाणी यानि दशलक्षण पर्व के पहले दिन क्षमा स्वभाव को जागृत तो कर लिया, अब उस पर्व के बाद वाणी से भी समाहित करो।
इस पर्व की महानता के चलते जैन समाज इसे इंटरनेशनल रूप देने की लगातार मांग करता रहा है, क्योंकि यह धर्म की, देश की, परिधि से नहीं बंधा, हर के द्वारा, कभी भी प्रकट करने वाले क्षमावाणी को इंटरनेशनल डे के रूप में स्वीकार किया जाये और अंग्रेजी में ही अन्य इंटननेशनल डे की तरह परिभाषित करना है तो इसे ‘इंटरनेशनल फॉरगिवनेस डे’ के नाम से मनाया जाये।
आज आर्टिफिशियल ज्वैलरी की तरह हो गई क्षमावाणी
पहले मन में फिर वचन-काय से मुखरित होती है क्षमावाणी। एक बार जो गड्ढा भर दिया, उसे दोबारा खाली नहीं करना। एक बार किसी भी गलती, भूल के लिये दूसरे को क्षमा कर दिया, फिर कभी उसे दोहराना नहीं, कभी नहीं कहना, याद है ना, मैंने तुझे क्षमा किया था। क्षमा का एहसान ऐसा हो कि फिर वह शत्रुता खत्म कर, मैत्री में आपको मस्तक पर रखे। शत्रुता की गांठ में एक तरफ क्षमा, दूसरी तरफ बदला लेना होता है। कहा है ना –
मारना है गर किसी को, मार दो एहसान से, क्या मिलेगा तुमको, जो मार दोगे जान से?
जान का मारा हुआ, दुश्मन बनेगा जान का, सर उठा सकता नहीं, मारा हुआ एहसान का।
जी हां, क्षमा का व्यवहार, शत्रुता को जड़ से समूल नाश करता है, बशर्ते यू-टर्न ना हो, पर आज जैसे असली सोने-चांदी की असली ज्वैलरी पर आर्टिफीशियल ज्वैलरी ज्यादा लोकप्रिय हो गई है, उसी तरह अब असली की जगह आर्टिफीशियल, दिखावटी क्षमावाणी का बोलबाला है।
कोई नहीं मनाता असली क्षमावाणी…
जी हां, कोई नहीं मतलब 99 फीसदी। एक फीसदी जरूर होंगे मनाने वाले। क्षमावाणी केवल प्रवचनों, उद्बोधनों, लेखों, कागजों, सोशल मीडिया पोस्टों में सीमित रह गई है। जैन संत हो या कमेटियां, कोई मंच साझा नहीं करना चाहती। हकीकत यह है आज एक नगर के सभी साधु एक मंच साझा करने में कई किंतु, परंतु लगाते हैं या फिर कोई ऐसा बहाना, जिसके आगे आपकी नहीं चलती। यही हाल हमारी कमेटियों का है। संतवाद, पंथवाद, सम्प्रदायवाद की जड़े, इतनी गहरी हैं, कि इस पेड़ पर फल भी दूर लगता है और छाया भी नहीं मिलती।
क्षमावाणी के अवसर पर बड़े ऊंचे प्रवचन जोर-शोर से कहे जाएंगे, पर क्या मजाल किसी के भीतर उतर जायें। कहां गलती है, वैसे बात उसी की असर करती है, जिसके आचरण में हो। सौ-सौ सालों से दिगम्बर-श्वेताम्बर भाई आमने-सामने हैं। पर क्या मजाल मिल जायें। आज नाक की, मूंछ की ही लड़ाई है, और क्षमावाणी उसके सामने आज फीकी पड़ गई है, जबकि उसकी ताकत कई गुना है। कहा भी – क्षमा वीरस्य भूषणम्। जो काम गोला-बारूद, नहीं कर सकता, वो एक क्षमा कर सकती है।
आज क्षमावाणी के बाद कंट्रोल S सेव की बजाय कंट्रोल Z (किसी एक्शन को अनडू करना. यानी) आखिरी काम पूर्ववत हो जाता है, तुरंत दबाते हैं
कम्प्यूटर पर तो आप काम करते ही होंगे, कोई भी काम जब (कार्य) करते हैं, तो उसे सुरक्षित रखने के लिए कंट्रोल ‘एस’ दबाते हैं, सेव हो जाये। पर आज कंट्रोल एस नहीं, कंट्रोल ‘जेड’ दबाते हैं। कंट्रोल जेड यानि जो कुछ किया, वो सब रिमूव, वापस पुरानी स्थिति पर। आज यही शर्मोलिहाज में, दबाव में, पारिवारिक या समाज के, क्षमा के भाव तो कभी प्रकट कर देते हैं, पर वो केवल बाहरी नकाब की तरह होते हैं। इधर नकाब उतरा, असली चेहरा सामने आ गया। अब हमने शास्त्रों की, संतों की वाणी को भी महत्वहीन कर दिया, केवल अपने अहंकार में। आज क्षमापना का भाव ना होना 90 फीसदी अंहकार, ऊंच-नीच के कारण ही हैं। और अगर, बुरा ना माने, तो ऊपर (संतों में) ज्यादा है। अगर हमारे संतों में और हमारी कमेटियों ने एक बार अंहकार ऊंच-नीच को खत्म कर दिया, उस दिन पूरे विश्व में आर्थिक-सामाजिक रूप से जो ख्याति यानि जैन समाज की होगी, वह अनेक बहुसंख्यक सम्प्रदायों से कहीं अधिक होगी। क्या प्रयास करेंगे।
शुरूआत स्वयं से ही करनी होगी। सभी के सामने, हम कलम की स्याही से सान्ध्य महालक्ष्मी व चैनल महालक्ष्मी, अपनी जाने-अनजाने में ज्ञात व अज्ञात सभी गल्तियों – भूलों के लिये आप सभी से हृदय से क्षमा मांगता है, पूरे विनय के साथ और स्पष्ट रूप से प्रकट करता है कि किसी के प्रति कोई बैर नहीं, कोई विरोध नहीं। आइये ऐसी एक नई शुरूआत करें।