“शील के कई अर्थ लोक प्रसिद्ध हैं लेकिन यहाँ अहिंसा आदि व्रतों की रक्षार्थ जो व्रत पाले जाते हैं, वही अर्थ प्रयोजनभूत है।
उत्साह सहित शिथिलता रहित निर्दोष पूर्वक व्रतों का पालन करना ही निरतिचारपना है ।
व्रतों का पालन सच्ची श्रद्धा और आत्म-कल्याण की भावना से करने पर ही हमारी विशुद्धि में वृद्धि होती है और वही हमें तीर्थंकर प्रकृति के आस्रव में कारण बन सकती है।