क्रोध मेरी चेतना में पित्त के समान अंतर्दाह देने वाला विकार है .यह आत्मा में क्षोभ पैदा करता है, जिससे अन्दर बाहरसब प्रदूषित हो जाता है।.करोध के अभाव में प्रकट होने वाला मेरा सहज स्वभाव क्षमा है।
भीतर बाहर जब कोई शत्रुनहीं दिखाई देता तब उत्तम क्षमा की अनुभूति होती है ।पर(दुसरे)में भूल देखने पर क्रोध उत्पन्न होता है और जब स्वयंकी भूल समझ में आती है तब क्षमा भाव उदय होता है।
– परंपराचार्यश्री प्रज्ञसागर मुनि
(पांच महान संतो के शब्दों को संलग्न फोटो में देखिये )