अब गिड़गिड़ाने, सोने या चुप्पी का समय नहीं, दहाड़ने-भिड़ने का जुनून हो, कहीं सत्ता, कहीं प्रशासन, कहीं पुलिस, कहीं अन्य समाज के बदले तेवर

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03 अगस्त 2023/ श्रावण कृष्ण दौज /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
॰ यह तन रहे या ना रहे, जिन धर्म रहना चाहिए

॰ कहीं साधु की हत्या, तो कहीं अपशब्द, बेशर्मी

॰ कपड़ा लपेट, पत्थर रंग बदलते तीर्थ
॰ हाइकोर्ट आदेशों की अवमानना, सत्ता-प्रशासन चुप

दिल्ली के ऋषभ विहार में वर्तमान के सबसे बड़े संघ की अगुवाई करते हुये वर्षायोग के दौरान आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज ने जैसे सोते समाज को जगाने का, एक करने का बीड़ा उठाने का संकल्प ही कर लिया है। आज उन्हीं के आह्वान से सुप्त समाज में कुछ चेतनता देखी जा रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि यह तन रहे या ना रहे, पर जिनधर्म रहना चाहिये।

ठान लीजिये, भिड़ जाइये, ठान लो तो कुछ तो अपने हाथ आएगा। अभी कुछ गया है, कल सब कुछ चला जाएगा।

इसी सप्ताह में एक बहुसंख्यक सम्प्रदाय के कथावाचक दिंगबर संतों के प्रति शर्मसार टिप्पणी कर, फोन उठाना बंद कर देते हैं। कटनी में जैन मुनि के प्रवचन में मुस्लिम महिला आकर अपशब्द बोल जाती है। सोशल मीडिया पर मुनि विरोधी पोस्ट की जाती है, जैन सरपंच का अपहरण हो जाता है। हजारों करोड़ रुपये जीर्णोद्धार के लिये सरकार मंदिरों को देती है, पर जैन मंदिर को अछूता रखा जाता है।

कहीं सत्ता अपने नशे में है, कहीं प्रशासन अपनी नाक ऊंचा करे बैठा है, कहीं पुलिस का डंडा चल रहा है, और कहीं चोर ही कोतवाल को डांटे जैसा हाल हो रहा है, क्या आज जैन समाज के लिये अंधेरी नगरी, चौपट राजा जैसा शासन है। हजार-बारह सौ वर्ष पहले तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन हो रहा था, हजारों को मारा-काटा जा रहा था, आज वोट के नाम पर चोट मिल रही है। बड़ी मछली का निवाला बनाया जा रहा है।

अब वक्त है, एक होने का, हर रूप में। हर को भागीदारी में आगे आना होगा, अपना पार्ट अदा करना होगा। अहिंसा के नाम पर कायर, डरपोक, कमजोर, असहाय के मिले तमगों से निकलकर धर्म के लिये हाथ जोड़कर, आंख से आंख मिलानी होगी, ललकार की गूंज, और सुरक्षा के लिये कमर कसकर तैयार रहना होगा।

तीर्थों पर अपनी उपस्थिति मजबूत करनी होगी। चल-अचल तीर्थों को सुरक्षा कवच में लाना होगा। यह सब एकता के बिना संभव नहीं। जियो और जीने दो के साथ अब लुटेंगे नहीं, जवाब देंगे। हां, जैन किसी को छेड़ते नहीं, पर अब कोई हमारे चल-अचल तीर्थ को छेड़ेगा, तो उसे छोड़ेंगे नहीं, यही संकल्प लेकर, सिर पर कफन बांध कुछ को तो आगे आना ही होगा।