कमेटियों की लापरवाही, नियमावली नहीं बनाई….
शिखरजी की पवित्रता अक्षिण्णु बनी रहेगी
आज तक किसी ने हमारी नहीं सुनी, हमें नहीं बुलाया.. पहली बार हम आये हैं… हम कोई मंदिर नहीं बनाते… किसी मूर्ति को नहीं पूजते… हम मांस मदिरा का सेवन नहीं करते… हम पर्वत की पवित्रता का संकल्प लेते हैं …. शरारती तत्वों को इसकी पवित्रता भंग नहीं करने देंगे… कुछ ये शब्द थे, जो आज तक जैन समाज के कानों तक नहीं पहुंचे संथाल समाज के।
48 घंटे के अथक परिश्रम में मुनि श्री प्रमाण सागरजी ने वो कर दिखाया, जो दशकों से हमारी कमेटियों ने करने का प्रयास ही नहीं किया। मधुबन क्षेत्र में सबसे बड़ा आदिवासी समाज संथाल के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव आदि सभी प्रमुख ने मुनि श्री प्रमाण सागरजी से गहन चर्चा के बाद संकल्प लिया कि पर्वत की पावनता के लिये वे सदा तैयार थे और रहेंगे।
अफसोस इस बात का है, कि हमारी कमेटियों ने आज तक कोई नियम ही नहीं बनाये, कोड आॅफ कंडक्ट ही वंदना के लिये नहीं बनाया, जिसकी सूचना जगह-जगह पर लगे और बिना नियम के ही वो हश्र हुआ, जिसे कोई जैन बंधु नहीं देखना चाहता।
20 जनवरी 2022 को ‘शंका समाधान’ कार्यक्रम को मुनि श्री ने पर्वत पावनता को बरकार रखने के लिये समर्पित करते हुये, यहां के स्थानीय प्रमुख आदिवासी समाज के संथाल वर्ग को मंच पर आमंत्रित किया और उन कई गलतफहमियों से पर्दा उठा जो जैन समाज चाहता था।
2200 से ज्यादा गांव वाला 5000 वर्ग किमी में फैले गिरिडीह में संथाल सबसे बड़ा आदिवासी वर्ग है, इनके अलावा मुण्डा, हो, आरोन, भूमिज, असुर, बिरहोर कोरवा, सावर, माल पहाड़िया, सोरिया पहाड़िया आदि भी आदिवासी हैं। वैसे संथाल आदिवासी अभ्रक खनन में ज्यादा लगे हैं और शेष खेती में। पर मधुबन में जैनों की सेवा – डोली मेें – दस बारह हजार लगे हैं।
सभी संथाल प्रमुखों की सुनने के बाद मुनि श्री प्रमाण सागरजी ने कहा कि वर्तमान का समय बोलने का नहीं, करने का है। समाज का उद्वेलन इसलिये कि यह सबका प्राण है। अपवित्रता से समाज उद्वेलित हो जाता है। कुछ घटनायें ऐसी घटी, हर के पास कैमरा है, अवांछित दिखते ही तकलीफ होती है। इस घटनाक्रम को आदिवासी समाज से जोड़ना गलत है। आदिवासी समाज भी इस क्षेत्र की पावनता को बरकरार रखना चाहती है। समाज में भय है, क्योंकि उसके अस्तित्व पर संकट लगता है, चिंता है। यहां की पावनता को अक्षुण्ण बनाने के लिये आदिवासी समाज ने स्पष्ट रूप से प्रकट किया। आदिवासी समाज की नीयत साफ है, न कब्जा, न अपवित्रता। यह सबकी जन आस्था का केन्द्र है। यहां जो गड़बड़ी की जिम्मेदार प्रबंध व्यवस्था वाले हैं। क्यों नियमावली नहीं बनाते? वंदना के लिये तीर्थ की पावनता, जैन विधि के अनुसार करें। गुरुद्वारे में अरदास, मस्जिद में नमाज, चर्च में प्रार्थना और मंदिर में पूजा की जाती है। नीचे से ऊपर तक पर्वक की पावनता बरकार रखें।
यह तीर्थस्थल है, धर्मस्थल है, पर्यटन स्थल नहीं, केवल धर्म भाव से यहां आयें। शिखरजी में कब्जा हो जाएगा, दिमाग से निकाल दीजिये। इसका आदिवासी समाज सुनिश्चित करते हैं। समाज के सभी पदाधिकारी, सब बैठकर एक रास्ता निकाले। क्षेत्र में शांति को मेनटेन करें। पर्वत की पवित्रता को बरकरार रखने का आदिवासी समाज आश्वासन देता है। इनका मंदिर नहीं, पेड़ प्रकृति की पूजा करते हैं। जैनों का क्षेत्र सुरक्षित है और सुरक्षित रहेगा। मूल स्वरूप को खंडित नहीं होने देंगे।
इससे पूर्व संथाल समाज के उपाध्यक्ष बुद्धन जी ने अपने पूजा स्थान, वहां हुए निर्माण का खुलासा करते हुए कहा कि मैं श्री धर्म मंगल विद्यापीठ में 36 साल पढ़ा लिखा, रहा हूं। इस शिखरजी से बचपन से जुड़ा हूं। धर्म का उल्लंघन करना अच्छी बात नहीं है। हमारे गर्भगृह नहीं होता। गर्भगृह का मतलब पूजा पाठ का स्थान, सिर्फ शेड होता है, 4 फीट की दीवार होती है, ग्रिल होती है, बस जानवर प्रवेश ना करें। पवित्र भूमि को दूषित ना करें। आज बॉडीगार्ड का काम भी आदिवासी समाज करते हैं, 10-12 हजार डोली वाले, हमारे आदिवासी समाज के हैं। दोपहिया वाहन से जैन भाई वंदना न करें। गिरिडीह जिला के आदिवासी समाज मांस-मदिरा की खरीदारी नहीं करता।
मधुबन पंचायत के प्रमुख व संथाल आदिवासी समाज के सचिव सिकंदर ने कहा कि एक-दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रवैया शुरू से चलता आ रहा है। पारसनाथ की पावनता पूरी दुनिया में है और बना रहेगा। आदिवासियों का गर्भगृह – धर्मशाला बनेगा, मांस मदिरा बनेगा, गिरनार की तरह छिन्न-भिन्न कर देगा। हमारा मंदिर अप्राकृतिक मानव निर्मित की पूजा नहीं होती।
हम गीता पुराण नहीं, प्राकृतिक की ओर चलते हैं मारंग गुरु को पूजते हैं, पर पत्थर के आकार को नहीं पूजते। आदिवासी समाज सम्मेद शिखरजी की पावनता को ध्यान में रखते हैं। इस पर्वत पर जैन आस्थाओें की, पूजनीयता है, वह धरा हमारे लिये भी पूजनीय है। इसके स्वरूप से छेड़छाड़ करने वाले किसी जैन या अजैन को बर्दाश्त नहीं करेंगे। शालीनतापूर्वक प्राकृतिकता को संजोेये रखें। जियो और जीने दो, की धरती से, आदिवासी की रहन-सहन में ना मांसाहार है, न मदिरा है, पूर्ण तरह प्रकृति के उपासक हैं। चार कार्यक्रम इस पर्वत पर करते हैं, जैनों का सहयोग होगा। 04 मार्च को महासरूल होगा। उसके लिये जैनों को आमंत्रित करते हुये, आप हमारे रीति रिवाज देखिये। यहां पर बेसिक मेटिरियल निर्माण के लिये हमारे गांव चम्पापुर से आता है। अहिंसा परमो धर्म की धरा से मानवता का संदेश जाए।
आज तक किसी ने हमें नहीं बुलाया, केवल प्रशासन के पास जाकर दिग्भ्रमित करते हैं। बाहर से आते शरारती तत्वों पर रोक लगे। शिखरजी की पावनता को बनाये रखने के लिये एक कानून बने, जो सभी कमेटियों में और बाहर भी लगायें, सभी आप और हम उस कानून के दायरे में रहें। स्थानीय बंधुओं के साथ सहयोग किया है। किसी भी दुर्घटना में, दुख में आदिवासी समाज ही खड़ा होता है। आग बुझाने में स्थानीय समाज ही आगे आता है। इसकी पावनता की जिम्मेदारी हमारी भी है।
जैन उच्च विद्यालय में पढ़े और बीसपंथी कोठी में कार्यरत अर्जुन ने कहा कि पावन तीर्थ शिखरजी का कण-कण पूजनीय, जैन के साथ आदिवासी समाज के लिये भी यह सिद्ध भूमि है, आस्था का प्रतीक है। पिछले कुछ दिनों से पारसनाथ पर्वत की चर्चा में केन्द्रबिंदु आदिवासी समाज को रखा गया। हमने काफी गहनता से जांचा, यह आस्था का स्थल है। मुनि श्री प्रमाण सागरजीके पास आकर चर्चा की। हमारा आदिवासी समाज, प्रकृति की पूजा करता है, मूर्ति या आकार की पूजा नहीं, वृक्षों, पर्वतों, जलस्त्रोतों, पत्थरों की पूजा करता है। इस सिद्धक्षेत्र में आदिवासी समाज द्वारा किसी की आस्था पर कभी आघात नहीं किया है।
बाहर से आये सभी लोगों को लोटे से भरे जलपात्र से स्वागत करते हैं। मैं जैन उच्च विद्यालय में पढ़ा और बीसपंथी में कार्य करता हूं। सेहराव, सेन्थरा, करम पर्व प्राकृतिक रूप से मनाते हैं। आदिवासी समाज इस पर्वत को मरांग गुरु मानते हैं। मरांग यानि पहाड़ जैसे विशाल आकार वाले गुरु। एक दाना पहले धरती को देकर, जल देकर, अर्पण कर भोजन ग्रहण करते हैं। आदिवासी लोगों ने डोली लेकर तीर्थयात्रियों की सेवा की है। अपशब्द नहीं कहते। आदिवासी समाज का किसी के प्रति घृणा, द्वेष नहीं रहा है। साल में एक बार देश-विदेश से आकर यहां दर्शन करते हैं।
पूरे संथाल समाज की ओर से, सभी ने मुनि श्री प्रमाण सागरजी के समक्ष संकल्प लिया कि पावन धरती की पवित्रता को बनाये रखने के लिये जैन समाज के साथ कटिबद्ध है, शरारती तत्वों के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग देंगे, नियम कानून बने, जिसको जैन-अजैन सभी को मान्य हो।
निश्चित ही, जैन समाज की समस्या का एक बहुत बड़ा समाधान हुआ है, पर यह अंत नहीं, बड़ी शुरूआत है। मुनि श्री की इस पहल पर उनका सादर वंदन और कमेटियों को अब इस ओर तैयारी करनी चाहिये। पर्वत की पावन पवित्रता व शाकाहार क्षेत्र के बोर्ड जगह-जगह लगायें, वंदना के नियम बने और वे जैन – अजैन सभी के लिये समान रूप से लागू हो, शरारती तत्वों पर कड़ी निगरानी व कार्रवाई हो। सान्ध्य महालक्ष्मी व चैनल महालक्ष्मी इस पहल के लिये संथाल समाज का भी हार्दिक अभिनंदन करता है।