24 मार्च 2022//चैत्र कृष्णा सप्तमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
नई दिल्ली के दिल में बना जंतर-मंतर का मैदान, जहां से मुनि श्री प्रबल सागरजी पर साल 2013 के पहले दिन गिरनार जी की पांचवीं टोंक पर किये गये चाकू से हमले के विरोध में इकट्ठा हुए थे, जहां से सल्लेखना-संथारा को आत्महत्या का जामा पहनाने के विरोध का शंखनाद किया, उसी जंतर-मंतर से एक बार फिर शिखरजी बचाने का शंखनाद करना है।
दिन है शनिवार 26 मार्च, समय प्रात: 11 बजे। ये धरना-प्रदर्शन किसी राष्ट्रीय कमेटी या समिति के आह्वान पर नहीं, यह आवाज हर जैन बच्चे, युवा, प्रौढ़, वृद्ध, पुरुष-महिला के मुख से निकल रही है, हर के हृदय में एक पीड़ा है कि हमारे शाश्वत तीर्थ को भी क्यों हमारा नहीं कहा जाएगा।
घोषित करो श्री सम्मेद शिखरजी जैनों का तीर्थ है, धार्मिक जैन स्थल है, पावन क्षेत्र है। यह ना कोई पर्यटन स्थल है और ना ही कोई वन्य जीव अभ्यारण। समय-समय पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिये जैनों के इस शाश्वत तीर्थ पर अपनी-अपनी रोटी सेंकी जाती रही हैं। क्यों नहीं अन्य धार्मिक समुदायों के तीर्थों की तरह यहां कड़ी चौकस सुरक्षा की व्यवस्था की जाती?
क्यों नहीं यहां पर बैरिकेडिंग लगाई जाती? क्यों नहीं यहां पर मांस-मदिरा निषेध क्षेत्र घोषित किया जाता? क्यों इसे वन्य जीव अभ्यारण घोषित कर दिया गया? क्यों इसे धार्मिक स्थल की बजाय पर्यटक स्थल घोषित कर दिया? क्या जैनों के हर तीर्थ को मिटाने की रुक-रुक कर साजिशें होती रहेंगी। जब-जब हम चुप हो जाते हैं, तो दूसरा आकर अपना अधिकार जमाने लगता है। आइये सभी 26 मार्च 2022 को प्रात: 11 बजे जंतर-मंतर, अपने तीर्थ की सुरक्षा के लिये।
जो बंधु इस क्षेत्र से दूर हैं, वे अपने-अपने क्षेत्र के बड़े मंदिर में सामूहिक रूप से बैठक आयोजित करें, एक शांति जुलूस निकालें, एक ज्ञापन, अपने तीर्थ की सुरक्षा, जैन धार्मिक स्थल घोषित करने का जरूर दें।
बैनर लगायें, पोस्टर लगायें
‘शिखरजी पवित्रता का हनन अब नहीं होगा सहन’, ‘जैनों को प्राणों से प्यारा, शिखरजी तीर्थ हमारा’
अब भी अगर आवाज नहीं उठाई, नहीं बोलें, तो ध्यान रखना, हमारी आने वाली पीढ़ी गूंगी ही पैदा होगी। आवाज नहीं निकलेगी। अहिंसा के नाम पर कमजोर और कायर तो नहीं हो रहे हम। आज जब सभी बड़ी संस्थायें हमारे सबसे बड़े तीर्थ पर चुप्पी साधे बैठी हैं, पूछें तो यही जवाब – अंदर ही अंदर सबकुछ हो रहा है, जल्द पता चलेगा।
पर कब, जब चिड़िया चुुग गई खेत। गिरनार आज हमारे हाथों से खिसका तो उसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी राष्ट्रीय समितियों का आंखें मूंदें रहना, कर्तव्यहीनता और ढुलमुल रवैया रहा। कहीं न कहीं समाज भी नहीं जागा, पर अब नहीं। आज नहीं, तो कभी नहीं, श्री सम्मेदशिखरजी के लिए सर्वस्व अर्पण है, यही हमारा तन-मन-धन है।
-शरद जैन /