15 जनवरी 2022, प्राप्त जानकारी अनुसार झारखंड राज्य के मधुबनी में स्थित सम्मेदशिखर जी सिद्धक्षेत्र पर न शराब और न ही मांस विक्रय की अनुमति है। यह गतिविधि तलहटी में चल रही है। प्रशासन जाँच कर चुका है।
यह व्यापार तलहटी में चलता रहता है। तलहटी में यह व्यापार नहीं हो, इसके लिए संबंधित संस्थाओं की ओर से प्रदेश सरकार से तलहटी और पर्वत को पवित्र धार्मिक क्षेत्र घोषित करने की बिना विलंब पहल की जाना चाहिए। अब तक इन संस्थाओं की ओर से माँग नहीं की गई है। होना तो यह चाहिए गुजरात के पालीताना तीर्थ को जैसे धार्मिक पवित्र नगरी घोषित करने की माँग स्वीकार की जा सकी है। वैसी ही माँग नहीं अब तक क्यों नहीं की गई है ?
समाज के श्रृद्धालु सोशल मीडिया पर अधकचरी जानकारी को आधार बनाकर भावना प्रकट करते रहते हैं। जो अव्यवहारिक और अहितकर है।
इसी प्रकार से मकर संक्रांति पर शिखर जी पर्वत पर अन्य समाज के स्थानीय लोग लाखों की संख्या में शिखर जी पर्वत पर जूते-चप्पल पहन कर जाते हैं। ऐसे ही हमारे श्वेतांबर समाज के यात्रीगण भी पहाड़ पर जूते-चप्पल पहन कर जाते हैं। समझ में नहीं आता दिगंबर समाज की अधिकृत संस्थाओं की ओर से इस संबंध में श्वेतांबर समाज की संबंधित संस्थाओं/ संतगणों से सम्पर्क किया जाना चाहिए था। हम अपने जैन भाइयों को तो बिना चप्पल-जूते पहने पहाड़ पर जाने की ओर ध्यान नहीं दे सकें हैं, उनको राज़ी नहीं कर सके हैं तथा अन्य अजैन समाज लोगों की आलोचना कर रहे है।
हम यह सत्य स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं कि हमारा सम्मेद शिखर जी तीर्थराज, पर्वत और जंगल सरकारी नियम-क़ायदे से हमारा है ही नहीं। पर्वत पर अधिकार के लिए दिगंबर और श्वेतांबर समाज वाले सौ वर्ष से अधिक समय से न्यायालयों में लड़ रहे हैं।
वर्तमान में भी यह पावन तीर्थक्षेत्र सरकारी व्यवस्था अनुसार पर्यटन क्षेत्र है। इस पर कोई भी और किसी भी समाज का व्यक्ति और व्यक्ति समूह निर्बाध घुमने जा सकता है। उसे रोक नहीं सकते हैं। दिगंबर और श्वेतांबर समाज इस महान तीर्थराज पर अधिकार के लिए सर्वोच्च न्यायालय में करोड़ों रुपये खर्च कर चुके हैं और खर्च करने को तत्पर हैं। किंतु मिल बैठ कर पर्वत की पवित्रता बनी रहे इसका ध्यान रखते हुए कोई स्थायी और ठोस निर्णय करने को तत्पर दिखाई नहीं दे रहे हैं।
विचारणीय यह है हैं कि आने वाले समय में स्थानीय अजैन समाज की ओर से पहाड़ पर उनके अलग-अलग धार्मिक स्थल निर्मित कर लिए जावेंगे, तो उनको रोकने के लिए दिगंबर और श्वेतांबर समाज के पास कोई वैधानिक आधार इस पर्यटन स्थल की दशा में नहीं है।
अगर सर्वोच्च न्यायालय शिखर जी तीर्थ को सभी समाज के लिए पर्यटन स्थल घोषित कर देगा, तो हमारे परम पावन तीर्थ की परंपरागत वंदना करने की अक्षुण्णता कैसे बची रह सकेगी ?
बेहतर यही है कि दिगंबर और श्वेतांबर समाज की संबंधित संस्थाओं को अपना पूर्वाग्रह त्यागते हुए, अन्य अजैन समाज की ओर से आने वाले संभावित संकट और परिस्थितियों की गंभीरता पर ध्यान देते हुए इस शास्वत महान तीर्थ को श्रद्धालुओं की सिर्फ़ वंदना-आराधना का ध्यान रखना होगा।
हमारी अल्पसंख्यक ही नहीं अत्यल्पसंख्यक हैं। संसद और विधानसभाओं में हमारा प्रतिनिधित्व निरंतर घटता जा होता जा रहा है। धार्मिकता को आत्मसात् करने से ही हम अपने हितों को सुरक्षित रख सकेंगे ?
निर्मलकुमार पाटोदी, इंदौर