खण्डित प्राचीन मूर्तियों पर अपूजनीय कह कर कब्जा नहीं छोडना, बल्कि मन्दिर के बगल के किसी भी कक्ष मे इस तरह से विनय पूर्वक विराजित कर दे

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24 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
अक्सर स्थान स्थान पर प्राचीन दिगम्बर जैन तीर्थंकर की मूर्तियां खुदाई मे प्राप्त होने के समाचार प्राप्त होते हैं, और जहां भी ऐसे समाचार आते हैं, वहां की स्थानीय दिगम्बर जैन समाज पहुंचकर उन मूर्तियों को लेने का प्रयास करतीं भीं हैं, परन्तु मुश्किल तब आती है जब वे मूर्तियों खण्डित अवस्था मे होतीं हैं, क्योकि अपने यहां खण्डित मूर्ती अपूजनीय होती है तो उसके बाद स्थानिय समाज का उत्साह ठण्डा पड जाता है और फिर खानापूर्ति ही होती रहती है!

बस यहां से ही ट्विस्ट आता है, जब स्थानीय दिगम्बर जैन समाज खास उत्साह नहीं दिखाती तो अक्सर गांव वाले इन मुर्तीयो को अपने यहां रखकर और उसका कुछ स्वरूप बदल कर पूजा पाठ करने लगते हैं, आस्था के सामने जिला प्रशासन अथवा पुरातत्व विभाग भी चुप रहता है! इसी आड मे हमारे ही अन्य जैन भाई ऐसी आति प्राचीन प्रतिमाओं को गुपचुप तरीके से ले जाकर प्रशिक्षित कारीगरों से संरक्षण, जीर्णोद्धार और अपने मतानुसार परिवर्तन कर पुनर्प्रतिठिष्त कर देते हैं! यानी जहां हम अपना इतिहास खो देते हैं, वहीं वे अपना नवीन इतिहास गडते हैं! अब यह सिलसिला बुद्भ अनुयायी भी अपनाने लगे हैं, हाल ही मे अशोकनगर की एक घटना देखी जिसमे इसी प्रकार एक खण्डित दिगम्बर मूर्ति पर आकर बुद्ध महंतो ने कब्जा ठोक दीया है!

इसके हल के लीये, सबसे पहले हमे किसी भी तरह प्राचीन मूर्तियों पर पूजनीय कह कर कब्जा नहीं छोडना, बल्कि तुरन्त उन्हे ले जाकर स्थानीय दिगम्बर मन्दिर के बगल के किसी भी कक्ष मे इस तरह से विनय पूर्वक विराजित कर देना चाहीये कि जैसे इनकी पुनर्प्रतिष्ठा होगी ! बाद मे देखना है कि यह ठीक होकर पुनर्प्रतिष्ठित कराई जा सकतीं हैं या नहीं, और अगर नहीं तो प्रत्येक जिले मे प्रशासन कि अनुमती लेकर जैन संग्हालय एवं शोध केन्द्र खोलकर उसमे शोध हेतु ऐसी मूर्तियां स्थापित कराई जाये!

नवनिर्मित नवीन जिनालयो मे ऐसी प्राप्त प्राचीन प्रतिमायें पुनर्प्रतिष्ठित कराकर विराजित करने की जरूरत और अतिशय को भी जनसामान्य को समझाया जाये!

इस हेतु हमारी किसी राष्ट्रीय संस्था को आगे आकर जैन पुरातत्व प्रकोष्ठ की स्थापना, राष्ट्र, राज्य और जिला स्तर पर करानी चाहीये! जो कि राज्य और जिला प्रकोष्ठ को पुरातत्व नीयम एवं ऐसे मे करने योग्य गाइडलाइन की कार्यशाला लगाकर समय समय पर प्रशिक्षित करती रहे! ये मूर्तियां हमारी प्राचीनता और इतिहास की साक्ष्य हैं, ऐसा न हो कि हमारे ढिलाई की वजह से ऐसी प्राचीन संप्रदा दूसरो के हाथ मे जाती जाय और 100-200 वर्ष बाद हमारी ही परिवर्तित की हुयी मूर्तीयो के आधार पर हमारी अपनी मुर्तीयो को ही अन्य संप्रदाय अपना बताने लगे! इतिहास का संरक्षण हमारे हाथ मे है!

मनोज कुमार जैन बाकलीवाल, आगरा