14 अक्टूबर 2023/ अश्विन कृष्ण अमावस/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / ऋषभ विहार।
ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से होड़।
मेरी अपनी मंजिल, मेरी अपनी दौड़।।
आचार्य श्री सुनील सागरजी ने 11 अक्टूबर की धर्मसभा में कहा प्रत्येक श्रावक इस पंक्ति को साकार करने की कोशिश करते हैं। इसी में सार्थकता है, और आपस का प्रेम नजर आता है। एक-दूसरे से ईर्ष्या, जलन करते हैं तो आपस में क्लेश होते हैं।
लोग पूछते हैं- आप हिंदू हैं, कि जैन? तो हम कहते हैं हम हिंदू भी हैं और जैन भी। हिंदुस्तान में पैदा हुये, इसलिये हिंदू और जिन्होंने इंद्रियों को जीत लिया,उनकी हम पूजा आराधना करने वाले होने से ‘जैन’ कहलाये।
वैदिक 18 पुराणों में, अग्निपुराण, विष्णुपुराण, वराहपुराण, शिवपुराण, स्कंध पुराण, कर्मपुराण आदि ऐसे 11 पुराणों में इस देश का नाम अजनाभ वर्ष नाम से प्रसिद्ध था, तदनंतर वृषभदेव जब तपस्या करने के लिये वन में गये, तब राज्य चक्रवर्ती भरत को सौंपा। उनका पराक्रम देखकर उनके नाम से इस देश का नाम ‘भारत पड़ा’। परंतु कुछ लोग कहते हैं दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र के नाम से देश का नाम भारत पड़ा, लेकिन ये सत्य नहीं है। दुष्यंत के पुत्र के नाम से कुल का नाम भारत पड़ा और उसी से वह महाभारत कहलाया।
गिरनारजी का भी यही हो रहा है, जिसकी लाठी उसकी भैंस। हम अल्पसंख्यक और कमजोर हो गये, हम अपने संकल्प, अहिंसा धर्म को लेकर चलते हैं। कठिनता में भी हम अपने रास्ते चलते हैं। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, पांचवीं टोंक पर कहते हैं कि दत्तात्रेय हमारे आराध्य हैं, यहां जैनी नहीं आ सकते, अगर आ गये तो पांचवीं से तीसरी टोंक तक आने नहीं देंगे। साधु के भेष में गाली-गलौच क्या उन्हें शोभा देता है? उनसे पूछो, दत्तात्रेय की बड़ी मूर्ति कबसे विराजित है। कुछ ही वर्षों से उन्होंने वहां कब्जा कर लिया है, परंतु पहाड़ पर भगवान नेमिनाथ की मूर्ति हजारों वर्षों से है, जैनियों में ही चरणों की पूजा होती है। वह नेमिनाथ के चरण कई काल से हैं।
श्री कृष्णजी के चचेरे भाई थे नेमिनाथ, इतिहास सबको पता है फिर भी मौन लिये बैठे हैं। गिरनार की पांच टोंकें हैं। पहली टोंक पर मंदिर बने हुये हैं। 3500 सीढ़ियों के बाद सुंदर जिनालय बना है। हथियार उठाने वाला धर्मात्मा कैसे हो सकता है? गोमुखी गंगा जिसे कहते हैं, वहां 24 तीर्थंकर के सुंदर चरण चिह्न बने हैं, दूसरी टोंक पर अनिरुद्धजी के चरण हैं, जिसे अंबिका की टोंक कहते हैं।
30 अक्टूबर 1960 में सरकार ने घोषणा की थी, गिरनारजी की पांचों टोंक दिगंबर जैनियों की हैं। अब तो अति हो गई है कि जैनियों को ही अब दर्शन के लिए मना किया जाता है। पहले जैन साधु पर हमला, उसके बाद श्रावकों के साथ बुरा बर्ताव का सिलसिला जारी है। हमारे तीर्थों को हम ही संभाल नहीं पा रहे हैं। कोई सिक्योरिटी नहीं है।
ना कोई शत्रु है, न कोई मित्र। जिनके परिणाम मिलें वे मित्र कहलाये और जिनके परिणाम ना मिले वे शत्रु बन गये। आपस में सामंजस्य बिठाना चाहिए। गिरनार तीर्थ और वहां का कण-कण सुरक्षित रहे, यही मंगल भावना है।
शस्त्रों से हिंसा, शास्त्रों से विवेक व ज्ञान होता है।