गिरनार चला गया, कैसे चला गया, कहां चला गया, वहीं है, था और सदा रहेगा- कौन रोकता है तीर्थंकर नेमिनाथ की जय बोलने से- कभी ग्रुप में जाओ ओर जुझारुपना भी दिखाओ- हथियार डालने से जीत नहीं मिलती, कायरता झलकती है

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30 सितम्बर 2023/ अश्विन कृष्ण एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /शरद जैन/EXCLUSIVE

‘हम तो इतने हताश किस्म के लोग हैं कि जरा सी विपरीत स्थिति बनी कि लड़ने से पहले ही हथियार डाल देते हैं। गिरनार चला गया, कहां चला गया, आज भी वहां है, जाकर दर्शन कीजिए, देखिये कौन आपको मना करता है, अगर कुछ हो, तो जूझने के लिये तैयार रहिए’ – आचार्य श्री सुनील सागर जी द्वारा ऋषभ विहार धर्मसभा में कहे ये शब्द आज भी दिलो दिमाग में चिर अंकित हैं।

20 सालों में बदल गया गिरनार
आज गिरनार सिद्ध क्षेत्र की यात्रा करने में वैसे ही हम किंतु-परंतु करते हैं, वे सौभाग्यशाली हैं जो वो वहां की तीर्थयात्रा करते हैं, पुण्य अर्जन करते हैं और तीर्थ संरक्षण में हमें सहयोग देते हैं।
2002-03 तक जैसा हमारे वरिष्ठजन कहते हैं, हम तो बड़ी भक्ति से 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के चरणों तक उर्जयंत शिखर तक पहुंचने के लिए, 10 हजार सीढ़िया चढ़ते। दूसरी टोंक पर अनिरुद्ध मुनिराज, तीसरी टोंक पर शम्भु कुमार स्वामी और टेढ़ी खीर बने चौथी टोंक पर मुनिराज श्री प्रद्युम्न स्वामी के चरणों के साथ और वहां उकेरी तीर्थंकर प्रतिमा के बाद जयकारे बोलते, सारे रास्ते, रुकते, हांफते, बढ़ते पहुंच जाते हैं, उस पावन टोंक पर जहां से तीर्थंकर श्री नेमिनाथ बने, राजुल की बजाय मोक्ष रूपी दुल्हन के गले में वरमाला डाल, उस स्थान से मोक्ष रूपी महल में जा पहुंचे। वहां जाकर हम लोग गदगद हो जाते थे। अर्घ बोलते, कण्ठ में मानों अमृत झरता है, चरणों पर अर्घ समर्पण और प्रतिमा का वंदन कर्मों की असंख्यात निर्जरा करते रहो।

अनंत स्त्रोत ऊर्जा क्षेत्र बना दिया नोटों की कामधेनु

फिर किसकी नजर लगी, बड़ी मछली आज छोटी मछली को निगलने को तैयार हो गई। वह तीर्थ तो श्रद्धा और कर्म निर्जरा का अनंत स्त्रोत है, उसे नोटों की कामधेनु समझकर मठाधीश बनकर जम गये। आंखें तरेरने लगे, हम घिघियाने लगे, फिर उन्होंने खों-खों करना शुरु किया, हमने भागना शुरु किया। मुनि श्री प्रबल सागर जी की छाती में, हत्या के लिये, चाकू घोंपना, पर यहां की ऊर्जा वर्गणाओं द्वारा, असमय आये यमराज को भी वापस भेजना किसी से नहीं छुपा। कई बार मार पिटाई की खबरें भी आई, बात पूरे जैन समाज को डराने और कमेटियों की आंख-मुंह बंद करने के लिये काफी थी।
रावण जैसा अभिमान भी चूर-चूर हो गया

‘आप कोई मोम के पुतले नहीं हो, अगर ऐसे ही हथियार डालने लगे, निश्चित ही जिंदगी की किसी लड़ाई में जीत नहीं प्राप्त कर सकते। अगर आज नहीं जागे, तो मिट जायेगें खुद ही। दास्तां तक नहीं होगी, हमारी दास्तानों में…..’ कहते हुये आचार्य श्री सुनील सागर जी ने गिरनार जी की अपने संघ के साथ जनवरी 2019 में वहां के प्रवास में तत्कालीन मठाधीश के आने के बारे में बताया। वह दो-तीन बार आये, पहली बार तो आचार्य श्री के शब्दों में – ‘उसमें रावण से भी ज्यादा अभिमान था। उसने बहुत अपशब्द भी कहे। पर फिर ढीला पड़ गया उसने माना कि यह तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी मोक्षस्थली है, उन्हीं के वहां चरण हैं, पर यह भी कहा हम इसको छोड़ नहीं सकते, यह हमारे लिये कामधेनु है। यहां से मोटी राशि बटोरी जाती है। इसलिए नहीं दूंगा। यानि उनका अधिकार का लक्ष्य, कथित दत्तात्रेय चरण नहीं, बरसते नोटों का लालच है।’

वंदना से पहले ही शेर को बकरी बना देते हैं
आचार्य श्री ने उसके स्वभाव को देखते हुए स्थानीय विधायक की मौजूदगी में कहा कि यह ज्यादा नहीं चलेगा, और जैन संत केप्रति ऐसे दुर्व्यवहार की सजा प्रकृति भी देती है। साल-डेढ़ साल में यमराज उसे ले गये।
वहां पर जाने से पूर्व, हमारे भीतर इतना डर पहले ही भर दिया जाता है कि ऊपर-ऊपर चढ़ते, शेर से बकरी बन जाते हैं और उनकी मैं -मैं से ही हमारी हालत ऐसी हो जाती है, जैसे निहत्थे के ऊपर शेर दहाड़ रहा हो। धर्मशाला में ही टोंको पर दर्शन के अघोषित नियम बता दिये जाते हैं, सारे रटा दिये जाते हैं। अपनी टोंकों पर जाकर जयकारा नहीं बोलना, अर्घ नहीं चढ़ाना यानि उन्हें पता नहीं चले कि जैन भक्त आये हैं।

अदालत को अंतिम निर्णय अभी बताना है, पर हमने तो पहले ही हथियार डाल जैन ध्वज की बजाय, श्वेत ध्वजा पकड़कर नेमि चरणों में तो धोक नहीं लगाते, पर उन (पण्डों) केआगे जरूर लोट जाते हैं। यानि अदालत से पहले, सत्य कोे झूठ के आगे, हम जैनों ने नतमस्तक कर दिया। अदालत ने तो 2004 में ही स्टे देते हुए जैनों को वहां पर दर्शन पूजा का समान अधिकार दिया, पर उन तीर्थंकर के वंशज, अपने-अपने घरों में सीमित रहकर कमजोर होते चले गये। ठीक उसी शेर की तरह जिसको पिजड़े में बंद कर, बकरियों के साथ पलने-बढ़ने के लिये छोड़ दिया। हां, वह हिंसा नहीं करता, पर उसमें एक विरोधी हिंसा पर भी प्रतिक्रिया करना भूल गया। हां, महावीर स्वामी के वंशजों में रहने वालों को सांप की तरह काटने, शेर की तरह दहाड़ने, हाथी की तरह तहस-नहस करना निषेध है, पर सांप को फुफकारने, शेर को दहाड़ने, हाथी को चिंघाड़ने के लिए महावीर स्वामी ने कभी मना नहीं किया, यही कारण सामने है कि आज जैन समाज खों-खों पर चूहें की तरह बिल में छिपता रहा। उनके नेता भी मानो अपना कर्तव्य बोध भूल गये। अब बंदर भी डंडा लेकर शेर की गुफा पर कब्जा करके बैठ गया।

सांप काटे नहीं, पर फुफकारना मत छोड़ना
शेर शिकार न करे, पर दहाड़ना बंद ना करे

बस अब दशलक्षण पर्व को मनाने के साथ डरपोकपने के विभाव से अपने स्वभाव में लौट आना होगा। मांसाहार छोड़ने का उपदेश दें, पर दहाड़ने की मनाई नहीं। बकरीपना कबूलने से बाहर निकलना होगा। डरपोक, कायर, कमजोर, बनकर सिंह प्रवृति वाले कब तक चूहों के बिल में बैठे रहेंगे। अगर ऐसे ही रहना है तो जंगल में सियार गीदड़ों की सत्ता बैठ जाती है और शेरों की गुफाओं पर उनका कब्जा हो जाता है। अभी भी वक्त है दहाड़ना होगा शेरों को, जागना होगा कुंभकरणी नींद से।

चींटीं न मारने की सौंगंध खाने वाले, पानी छानकर पीने वाले, हमेशा शांत प्रिय रहकर ‘परस्परोग्रहो जीवानाम्’ का पूरे जग में संदेश फैलाने वालों को तीर्थंकरों ने, आगम ने, विरोधी हिंसा कर त्याग नहीं कहा।
ऊर्जयंत शिखर यानि पांचवी टोंक से श्री कृष्ण जी के चचेरे भाई, तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी, चौथी टोंक से प्रद्युम्न कुमार महामुनिराज, तीसरी टोंक से शम्भू स्वामी मुनिराज, दूसरी टोंक से अनिरुद्ध स्वामी जी मोक्ष गये। तीनों ही श्रीकृष्ण जी परिवार के, फिर भी उन्हीं चारों की निर्वाण स्थली पर कब्जे कर लिये, कथित दत्तात्रेय के नाम से।

त्रिशूल है तो मस्जिद नहीं,
तीर्थंकर प्रतिमा तो जैन मंदिर क्यों नहीं?

अगर किसी स्थान पर त्रिशूल या शिवलिंग हो तो वह मस्जिद नहीं हो सकती है, तो फिर जहां अरिहंत प्रतिमा हो वो जैन मंदिर के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। अगर अयोध्या में श्री राम जी के तथ्यों के लिये सैकड़ों फुट खुदाई हो सकती है। यह बात अलग है कि वहां खुदाई में निकली जैन प्रतिमायें ही (टाइम्स अॉफ इंडिंया) के अनुसार खुदाई को प्रमाण माने तो, अयोध्या में पहला अधिकार जैनों का लगता है। तो यहां गिरनार में तो साक्षात प्रतिमायें, आज खुदाई की भी जरूरत नहीं। डेटिंग की जाये वहां लगाई गई प्रतिमाओं की, और उकेरी हुई प्रतिमाओं की, दूध का दूध और पानी का पानी होने में चंद दिन नहीं लगेंगे। पर नोटों की लालची सत्ता अपने आंख-कान खोलकर कुछ न्याय करने की कोशिश करें तभी तो होगा।