यहां जिनमंदिर नहीं है फिर भी यह वीतरागी प्रभु के प्रति आस्था-यह हैं वीतरागता से जुड़ाव-सच्ची श्रद्धा – यही है सम्यग्दर्शन का मार्ग

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यह हैं वीतरागता से जुड़ाव-सच्ची श्रद्धा – यही है सम्यग्दर्शन का मार्ग

यह पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले का हांडिभाड़ा गांव है,गांव में जिनालय नहीं है,पर संस्कार मौजूद हैं,आज भी गांव वासी दशलक्षण पर्व मनाते हैं,मंदिर ना सही स्कूल में ही मना ले।

यह सराक है,वहीं सराक जिनके पूर्वजों ने पारसनाथ स्वामी और महावीर स्वामी को विहार कराया था,भगवान के संयम काल में उन्हें आहार दिया था,और गगनचुंबी जिनालय बनवाए थे,यह दिगंबरत्व की शान है,मौर्य काल से लगातार 2000 सालों तक हुई धार्मिक उथल-पुथल के बावजूद इनने धर्म को अपने में जीवित रखा है।

आइए इनका हाथ थामें, इन्हें सम्यग्दर्शन का सच्चा मार्ग बताए,सराक क्षेत्र में शिविर लगाए,अगर स्वयं तन से सहयोग नहीं दे सकते तो मन से दे,धन से दे,सराको के गांवों में जिनमंदिर बनाए,इनकी संस्कृति को जयवंत करें तभी वीतराग संस्कृति जयवंत होगी,यह सराक हमारे जैन-धर्म रूपी विशाल वृक्ष की जड़ है आइए जड़ की सींचे ताकि जैन-धर्म रुपी वृक्ष की पावन छाया, मीठे फल,फूल हमे प्राप्त हो।

एक और विशेष

हम इनसे प्रेरणा ले कि इनके यहां जिनमंदिर नहीं है फिर भी यह वीतरागी प्रभु के प्रति आस्था रखते हैं फोटो रखकर पूर्ण शुद्ध वस्त्रों में पूजा कर रहे हैं,और हमारे मंदिर है फिर भी हम जिनदर्शन-पूजन-वंदन से वंचित हैं।