प.पू.सर्वोदयी महाश्रमण राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री 108 विरागसागर जी मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य श्रमण श्री विशल्यसागर जी मुनिराज का आ. श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज के बाद 28 साल बाद सराकक्षेत्र नोड़ी में भव्य मंगल प्रवेश हुआ।
इसी विषय पर मुनि श्री ने कहा कि हमें जैन होने का गर्व होना चाहिए।क्योंकि जैनत्व से ही सर्वोत्कृष्ट व्यक्तित्व का निर्माण होता है और उसी से निर्वाण होता है।उन्होंने कहा कि हमें हमेशा जैनत्व के सूत्रों का आचरण करना चाहिए। नित्य देवदर्शन करना,रात्रि भोजन नही करना,पानी छानकर पीना ये जैनधर्म के तीन महानसूत्र है,ये ही जैनाचार है।दान और पूजा करने वाला ही श्रावक होता है।जिस प्रकार रक्त रंजित वस्त्र जल से धुल जाते है उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में अर्जित पाप कर्म दान और पूजा से धुल जाते है।