13 दिसंबर 2022/ पौष कृष्णा पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद् की सार्वजनिक अपील
महानुभाव, यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कुछ स्थानों की जैन समाज अपनी परंपराओं तथा आगम को भूल कर लीक से हटकर कुछ नया करने की चाह में जैन धर्म के अवर्णवाद को सरेआम स्वर दे रही है। सम्मेद शिखरजी जैसे शाश्वत तीर्थराज पर बीसपंथी कोठी में सप्तमुखी प्रतिमा प्रतिष्ठित कर विराजमान कर दी गई और जब विरोध हुआ तो कहा गया कि यह संग्रहालय में रखी जाएगी किंतु वह मूर्ति आज भी वेदी पर विराजमान है। कभी उसे बंद कर देते हैं और कभी उसे खोल देते हैं ।मैं विगत 3 माह से उस प्रतिमा को तराशकर एक मुखी प्रतिमा बनाने की बात कर रहा हूं किंतु समाज सोई हुई है और तथाकथित कमेटियां अपने प्रेरकों के दबाव में हैं।
सम्मेद शिखरजी की पुनरावृति दुर्ग में करने की कोशिश की गई।यहां सप्तमुखी प्रतिमा बन गई, उस पर प्रशस्ति भी लिखी गई किंतु प्रतिष्ठा के 1 दिन पूर्व ही उसे वेदी से उखाड़ कर अन्यत्र ले जाया गया। वह प्रतिमा कहां और कैसी अवस्था में है? इसका पता नहीं चल सका है ;फिर भी दुर्ग जैन समाज के पदाधिकारी एवं सदस्यगण धन्यवाद के पात्र हैं कि वहां वह सप्तमुखी प्रतिमा स्थापित प्रतिष्ठित नहीं हो सकी ।
आज ही पता चला है कि अब सम्मेद शिखर, दुर्ग के बाद एक सप्तमुखी प्रतिमा श्री दिगंबर जैन तीर्थ खंदारगिरी में प्रतिष्ठित होने के लिए बनवाई गई है ,जिसका यह चित्र संलग्न है ।यहां फरवरी माह में मुनि श्री अभय सागर जी महाराज के सानिध्य में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव प्रस्तावित है ।मुझे पता नहीं है कि इस सप्तमुखी प्रतिमा के निर्माण एवं प्रतिष्ठा में मुनि श्री अभय सागर जी महाराज का आशीर्वाद है या नहीं किंतु जिस तरह परम पूज्य निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधा सागर जी महाराज, मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज ,मुनि श्री अजित सागर जी महाराज आदि ने सप्तमुखी प्रतिमा की प्रतिष्ठा के विरोध में अपने विचार रखे हैं उससे ऐसा नहीं लगता कि परम पूज्य मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ऐसा कोई कार्य करेंगे जो जैन आगम के ,प्रतिष्ठा शास्त्र के विरूद्ध हो अतः मेरी मंदारगिरी दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी विशेष रूप से दिगंबर जैन समाज चंदेरी से निवेदन है कि वह इस सप्तमुखी प्रतिमा को तत्काल एक मुखी प्रतिमा के रूप में गढ़वा कर प्रतिष्ठित करने की योजना बनाएं। ऐसा करना उन हजारों ,लाखों मूर्तियों का संरक्षण करना होगा जो जैन धर्म अनुसार पूज्य हैं तथा जैन समाज के द्वारा निर्मित जिनालयों में प्रतिष्ठित हैं।
हमारी अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद का किसी भी साधु विशेष या, आचार्य विशेष के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है किंतु हम ऐसा किए जाने के विरुद्ध हैं जिससे भविष्य में जैन धर्म और जिनालय संकट में आए।अतः अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद् संपूर्ण भारतवर्ष की जैन समाज तथा संबंधित स्थानीय कमेटियों से निवेदन करती है कि वह ऐसी मूर्तियों को तत्काल एक मुखी प्रतिमा के रूप में बनवाकर प्रतिष्ठित करें या इन्हें तुड़वा कर समाप्त करें ।
अपील कर्ता
डॉ सुरेन्द्र कुमार जैन भारती
उपाध्यक्ष -अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद्