वृत्ति परिसंख्यान तप: विधि न मिलने से चार दिन नहीं आहार : धन्य है ऐसे संत

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कुचामन सिटी राजस्थान ,पंचम काल में भी चतुर्थ काल की चर्या का पालन करने वाले संत भी आज इस धरा पर विराजमान है।
परम् पूज्य वात्सल्य रत्नाकर समाधिस्थ आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज( दक्षिण) के शिष्य
ओर परम् पूज्य बालयति मुनिवर श्री विद्यासागर जी महाराज के संघस्थ मुनि श्री शांति सागर जी महाराज चार दिनों से विधि ना मिल पाने से वृत्ति परिसंख्यान तप कर रहे और फिर पांचवे दिन जाकर आहार हुआ

धन्य है चरित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी महाराज की परंपरा और उनके नाम को सार्थक करने वाले संत
नमन है नमन है नमन है

क्या होता है वृत्ति परिसंख्यान तप
भोजन, भाजन, घर, बार (मुहल्ला) और दाता, इनकी वृत्ति संज्ञा है। उस वृत्ति का परिसंख्यान अर्थात् ग्रहण करना वृत्तिपरिसंख्यान है। इस वृत्तिपरिसंख्यान में प्रतिबद्ध जो अवग्रह अर्थात् परिमाण नियंत्रण होता है,वह वृत्तिपरिसंख्यान नाम का तप है।

आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शब्दों में क्या है वृत्ति परिसंख्यान तप
वृत्तिपरिसंख्यान किसको बोलते हैं? आँकड़ी लेकर निकलना यही वृत्तिपरिसंख्यान है।
विधि ऐसी नहीं लेना चाहिए जो हँसी का कारण बने । विधि लेकर विद्युत् के समान साधु निकले, उतने में उसे विधि दिख जाए, विधि ऐसे लेना चाहिए।
वृत्ति परिसंख्यान का अर्थ आहार के लिए उठते समय कोई नियम लेना। उसके मिलने पर ही आहार करूँगा। लेकिन जो नियम आज लिया है, वो ही कल रहे, यह नियम नहीं है। कुछ लोग कहते हैं जब तक वो नियम न मिलेगा तब तक आहार नहीं करेंगे। ऐसा नहीं है। हाँ, हमें अपनी परीक्षा करना है, तो वह नियम २-३ दिन तक रख सकते हैं । वृत्ति परिसंख्यान तप गुरु की आज्ञा से लेना चाहिए।
अपने कर्म कैसे उदय में चल रहे हैं? इसका संधान करने के लिए वृत्ति परिसंख्यान तप किया जाता है।तीर्थंकर को भी विधि नहीं मिली।
लाभ-अलाभ में अडिग- विधि लेने वाले को स्थिर वृत्ति वाला होना चाहिए। अलाभ में भी लाभवत् समझकर हँसता हुआ आना चाहिए। दाता के मन में तो अलाभ होने पर क्षोभ होता है, लेकिन पात्र के लिए क्षोभ नहीं करना चाहिए। सच्चा साधक भी वही है, जो विभिन्न संकल्प विकल्पों के बावजूद भी अपनी मुक्ति मंजिल की ओर अग्रसर रहता है। यही एक मात्र इसकी परीक्षा है, परख है। जैसे सच्चा पथिक तो वही है, जो पथ में काँटे आने पर भी नहीं रुकता। सच्चा नाविक भी वही है, जो प्रतिकूल धारा के बीच से नाव को निकालकर गन्तव्य तक ले जाता है। इसी प्रकार सच्चा साधक लाभ-अलाभ में विकल्प नहीं करता।
पुण्योदय विद्यासंघ