25 जून को वर्तमान सदी के बेमिसाल युवामहर्षि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेब ससंघ का जैन धर्म की सबसे पवित्र भूमि सम्मेदशिखर जी से मंगलविहार निमियाघाट के लिए हुआ
जिसमे विहार से पूर्व उन्होंने वर्तमान में विद्यमान सन्तो में सबसे ज्येष्ठ,वरिष्ठ 55 वर्षों से साधनारत महाऋषि षटरस रस व आजीवन अन्न त्यागी पूज्यवर स्थिवराचार्य श्री सम्भवसागर जी महागुरुराज के चरणविन्द के शुभाशीष को प्राप्त करने पुनः दर्शनार्थ पहुचे
जहां एक दीर्घकालीन महातपस्वी वयोवृद्ध आचार्य श्री का अपने साधर्मी लघु साधक के प्रति अथाह वात्सल्य व उनके प्रति एक युवामहर्षि का विनय के इस पवित्र नजारे ने जन जन को अभिभूत कर लिया
जैन दर्शन के इन आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों के आपसी स्नेह,आदर व वात्सल्य ने सम्पूर्ण समाज को नेक प्रेरणा देते हुए आनन्दित कर दिया
आचार्य श्री सम्भवसागर जी-आचार्य विशुद्ध सागर जी गुरुराज की जय
-शाह मधोक जैन चितरी