आचार्य कामकुमार नंदी की हुई क्रूरतम हत्या॰ यमराज भी देखकर कांप उठे होंगे, नहीं था पैसे का लेनदेन, CID रिपोर्ट में कई खुलासे

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14 दिसंबर 2023 / मार्गशीर्ष शुक्ल दौज /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन/EXCLUSIVE

॰ आजाद भारत में किसी संत की सबसे खौफनाक हत्या
॰ बिजली के करंट से ही क्यों मारने की कोशिश, तब भी नहीं मरने पर क्या किया?

57वें अवतरण दिवस के ठीक एक महीने बाद, अंधेरा घिरते ही आचार्य श्री कामकुमार नंदी को उसी माली ने बार-बार करंट लगाया, अपने गोल टोपी वाले दोस्त के साथ, ऐसा वीभत्स षड्यंत्र स्वतंत्र भारत के इतिहास में क्रूरतम हत्या का, जिसे देखकर दरवाजे तक पहुंचे यमराज जी की आंखों में भी खून के आंसू आ गये होंगे।

पूरे मीडिया में, यहां तक कि जैन समाज का, वह वर्ग जो अपने को ‘प्रबुद्ध’ के साथ महामंडित करता है, उसका भी यही कहना था कि महाराज ब्याज के लिये पैसे का लेनदेन करते थे, पैसा ब्याज पर देते थे, चंद हजार के लिये। शायद यह सोचने से पहले, उनका थोड़ा अतीत देख लेना होगा।

06 जून 1967 को बेलगाम के ही खेवत कप्पा में जन्मे ब्रह्मप्पा (गृहस्थ नाम) के पास अकूट सम्पत्ति थी। सिविल इंजीनियरिंग के बढ़ते हुए एम.टेक किया। 40 एकड़ की विशाल जमीन और 40-50 करोड़ की सम्पत्ति, उनके मन को संसार में नहीं लगा सकी।

21 साल की उम्र में ही श्री सम्मेदशिखरजी में गणाचार्य श्री कुंथुसागरजी के द्वारा 21 फरवरी 1988 को दीक्षा दी गई, आचार्य श्री श्रुतसागरजी, (तब मुनि कनकोज्जवल जी), सहित 4 और दीक्षायें हुर्इं। आपको केवल हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़, संस्कृति, प्राकृत में ही निपुणता नहीं, बल्कि कई विदेशी भाषाओं का भी ज्ञान था।

पिछले 15 वर्षों से आप बेलगाम के ही चिकाड़ी के पास हीरे कुड़ी गांव में नंदी पर्वत पर कार्य कर रहे थे। (बीच-बीच में कई जगह विहार भी किया जिसमें 2018 में वे श्रवण बेल भी गये) आपको पाषाण से भगवान बनाने से ज्यादा, बच्चों को अच्छा इंसान बनाना ज्यादा अच्छा लगता था। ऐसे अनेक गरीब परिवार थे, जो अपने बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा मजबूरी में दो वक्त की सूखी रोटी ही देने में पहल कर पाते थे। उनके लिये एक अच्छा विद्यालय बनाने के लिये, उन्होंने ध्यान केन्द्रित किया और वहां कामकुमार नंदी चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हुई।

वहां पर पारस प्रभु की पहले खड्गासन प्रतिमा विराजित कर धार्मिक संस्कार अंकुरित करने का लक्ष्य रखा। फिर स्कूल का निर्माण शुरू किया। अतीत में प्रबुद्ध सिविल इंजीनियर रहने के अनुभव का बखूबी इस्तेमाल किया। निर्माण में क्या समान, कैसे, कितना लगता है, अच्छे – अच्छे कारीगर उनके सामने पानी भरते थे।

सीआईडी द्वारा दी गई रिपोर्ट के दस्तावेज में, कई डायरी के पन्ने सान्ध्य महालक्ष्मी के पास भी हैं, जिनसे कई ऐसे खुलासे हुए जो चौंकाने वाले हैं। माली नारायण 2-3 साल से, यहां काम कर रहा था, आचार्य श्री ने भरोसा करके उसे ही निर्माण सामग्री में लगा दिया। आचार्य श्री द्वारा लिखी गई डायरी में कई पन्नों पर निर्माण सामग्री का उल्लेख। यह एक महत्वपूर्ण पृष्ठ उसी डायरी का यहां दिखाया गया है, जिसमें सबसे ऊपर नारायण का नाम व मोबाइल नं. लिखा है, और इसी के सहारे सारी परतें खुलती चली गई।

डायरी के 17 नं. पन्ने के अनुसार, उसे डस्ट – रेत की जिम्मेदारी थी, जिसके लिये 21 नवम्बर को 03 लाख, 12 दिसम्बर 2022 को 5 लाख, 23 मार्च 2023 को 20 लाख, – कुल 28 लाख रुपये की राशि दी गई। यह ट्राले रात में ही आते थे। शुरू के कुछ दिन के बाद नारायण ने 2 की जगह 3 ट्राले आना कहकर गड़बड़ी शुरू कर दी। आचार्य श्री सिविल इंजीनियर रह चुके थे, पूरा हिसाब खोलकर बता दिया कि निर्माण सामाग्री 20 लाख की ही आई है।

यह समाज का पैसा है, 8 लाख वापस करना होगा। 10 मई तक लौटा दूंगा, कहते हुये पन्ने पर नारायण ने हस्ताक्षर भी किये, पैसे नहीं लौटाये। तारीख बढ़ाकर 10 जून कर दी गई और हस्ताक्षर कर दिये गये, फिर तारीख 10 जुलाई कर दी और अब उस तारीख से पहले ही उसने अपनी खराब नीयत से षड्यंत्र रच लिया।

उसे मालूम था कि शाम होते ही वहां कोई नहीं आता। (यह समस्या आज भी हमारे साधु संतों के साथ है, जहां रात में ठहरते हैं, वहां कोई सुरक्षा नहीं होती)। 06 जुलाई का दिन था। सिद्धचक्र विधान का समापन हुआ। आचार्य श्री का उपवास भी और मौन भी था। यह भी ता दें, उनको शुगर की गंभीर बीमारी थी। शुगर 500-600 के पार रहती थी।

जैसे ही रात होने लगी, उसने अपने दोस्त हसन को बुला लिया। आचार्य श्री का तख्त बीच में लकड़ी का था, और चारों तरफ लोहे का फ्रेम। वह लेटे हुये थे, दोनों ने उनको 300 वॉट का करंट देना शुरू किया। दोनों को मालूम था कि करंट से चीख नहीं निकलती। जब करंट से वो अधमरे से हो गये, तब तड़पा-तड़पा कर सवाल पूछे गये – चांदी की प्रतिमा कहां है, बस फिर तो लगातार करंट का सिलिसला चलता और कभी चांदी का समान, कभी नगदी, पूछते रहे। हैरान थे दोनों, कि इतना कमजोर खोखला शरीर प्राण नहीं छोड़ रहा। शायद यमराज भी दरवाजे के अंदर नहीं आ पा रहा होगा। उनकी तप की ऊर्जा ने खोखले शरीर को इतना मजबूत कर दिया था। बेहोश हो गये। यमराज के भी आंखों में खून के आंसू आ गये होंगे।


हसन ने बताया अब यूं ही तो छोड़ नहीं सकते। गमछे से उनका गला दबाते रहे, जब तक उन्हें लगा कि अब जान नहीं है। पर शायद तब भी सांस चल रही थी। फिर शरीर के नौ टुकड़े किये गये। दूर बोरवेल में फेंकने गये। दो बड़े अंग बोरवेल में नहीं आये, तो उन्हें अलग खेतों में गड्ढों में फेंका। सुबह नारायण ने ट्रस्टियों को खबर दी कि रात से महाराज कहीं चले गये हैं, पता नहीं कहां? शाम तक नहीं लौटे, तो ट्रस्टियों को चिंता हुई। वे सब ढूंढने में लग गये, गजब तो यह कि अगुवाई नारायण करता रहा।

खबर आचार्य श्री गुणधरनंदी जी को मिली। उन्होंने तत्काल शासन, प्रशासन, पुलिस को हाथों हाथ लिया – अगर 48 घंटे में नहीं पता चला तो उनका अनशन शुरू। हरकत में आई पुलिस और प्रशासन, खेत से दो बड़े अंग मिले। पुलिस ने बारीकी से अब दबाव में जांच आगे बढ़ाई।

आचार्य श्री गुणधरनंदीजी ने अनशन के साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री के सामने चार मांग रख दी :-
पहली – साधुओं के विहार में पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था
दूसरी – रात्रि में विहार के दौरान साधुओं के ठहरने की व्यवस्था – स्कूलों, सरकारी इमारतों आदि में।
तीसरी – जहां साधु ठहरते हैं, वहां पर पुलिस सुरक्षा
चौथी – जैन आयोग की स्थापना

इस बीच देश भर में आंदोलन हुआ और शक की सुई नारायण पर अटकी, उसने चारों तरफ से घिरा देख सच्चाई उगली, हसन भी पकड़ा गया। उसने पूरा रहस्य खोला कि किस तरह करंट लगाकर उनको तड़पाया, गला दबाकर हत्या की तथा शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके बोेरवेल में डाले और दो खेतों में फेंके।

राज्य सरकार ने चार में से कुछ मांगें मानी तथा जांच सीआईडी को सौंप दी, अब पांच दिन पहले सीआईडी ने अपनी पूरी रिपोर्ट सौंप दी, जिससे पूरे कारणों की सच्चाई सामने आ गई। (इस बारे में पूरी जानकारी यू-ट्यूब/ चैनल महालक्ष्मी पर एपिसोड नं. 2294 में देखी जा सकती है, उसका शीर्षक है ‘CID का खुलासा जैन संत की क्यों सबसे क्रूरतम…’ )