आखिर क्यों तपस्वी सम्राट ने मौजूद 6 आचार्य में से सबसे छोटे को चुनकर क्यों कहा कि इस विशाल अनुपम प्रतिमा पर सूरि मंत्र आप दो, ऐसा क्या देखा महावीर स्वामी ज्ञान कल्याणक के दिन ?

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17 मई 2024/ बैसाख शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
हां, वह आज ही का दिन था, वैशाख शुक्ल की दशमी थी । हां , वही दिन, जिस दिन वर्तमान जिन शासननायक श्री महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई और अगर दिन के हिसाब से देखें , तो वह दिन था 23 मई 2010, उसी दिन जब उदगांव के कुंजवन तीर्थ में तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी के सानिध्य में पंचकल्याणक महोत्सव चल रहा था। 80 पिछी, जिनमें छह आचार्य , दो उपाध्याय, 16 मुनि, 18 आर्यिकाएं, एक एलक, 9 क्षुल्लाक, और 18 क्षुल्लिकाएं विराजमान थी। उस दिन चार दीक्षाएं हो चुकी थी, तब ना मंच था, ना माइक और दीक्षाएं हो गई। तब छोटे आचार्य ने तपस्वी सम्राट जी से कहा कि आज सही मुहूर्त है, संस्कार करने चाहिए । तपस्वी सम्राट मुस्कुराए, ऊपर देखा और कहा जाओ, तुम संस्कार करो और सूरि मंत्र भी दे देना।

छोटे आचार्य के हाथ जुड गए, विनम्रता से कहा गुरुवर पूरा समाज चाहता है कि 43 फीट ऊंची अनुपम अनंतवीर्य भगवान के प्रतिमा के संस्कार और सूरि मंत्र आपके द्वारा ही होने चाहिए और वहां उसे छोटे आचार्य से कई बड़े आचार्य भी मौजूद थे, जिनमें चंद्र सागर जी, निश्चय सागर जी , सुविधि सागर जी, सुंदर सागर जी आचार्य भी उपस्थित थे। ऐसे में तपस्वी सम्राट ने उन आचार्य को चुन लिया, जिनके अभी 14 चातुर्मास ही हुए थे। आखिर क्यों ? क्या देखा? और वह आचार्य थे आचार्य श्री सुनील सागर जी, संकेत दे दिया उसे दिन कि अगले पट्टाचार्य वही बनेंगे। ऐसी दूर की सोच रखते थे, तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी।

बाल ब्रह्मचारी अहिंसा, संयम, ज्ञान, और तप के मूर्तिरूप गुरुदेव श्री 108 सन्मति सागर मुनिराज जी का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी वि.स. 1995 , सन 27 फरवरी 1938 दिन शुक्रवार को एटा जिले के फफोतू नगर में हुआ था इनके पिता पद्मावती पोरवाल जैन श्री प्यारेलाल जी एवं माता श्रीमती जयमाला देवी थी इनका गृहस्थावस्था का नाम श्री ओमप्रकाश जैन था

गुरुदेव श्री १०८ आचार्य सन्मतिसागर महामुनीराज भोजन नहीं करते थे. वे ४८ घंटो में एक बार मट्ठा और पानी लेते थे. आपने आचार्य १०८ महावीर कीर्ति जी महामुनिराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया . सन 1961 में (मेंरठ ) में आचार्य विमलसागर महामुनिराज से छुलक दीक्षा लेते ही दही,तेल व घी का त्याग कर दिया था.सन 1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शकर का भी त्याग कर दिया सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्यागकर दिया और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया. सन 1998 में उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया. सन 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी के अलावा सबका त्याग कर दिया. उन्होंने रांची में 6 माहतक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया. उन्होंने अपने एक चातुर्मासमें 120 दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया.दहोद गुजरात चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास एक आहार तीन उपवास एक आहार ………इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार ,……….. से करते करते एक उपवास एक आहार, तक पहुच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया. उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये. लगभग 28 सालो से भी अधिक उपवास किये. आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महामुनिराज ने यहाँ तक कहा है की महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है.

सन 1973 में उन्होंने शिखरजी की निरंतर 108 वंदना की थी.वे भरी सर्दियों में भी चटाई नहीं लेते थे. गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चारघंटे ही विश्राम करता थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे.उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया. अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-2010 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-2010 को आँखों से छोड़ दिए. ऐसे तपस्वी सम्राट को मेरा कोटि कोटि नमन.