सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल /01 फरवरी 2021
मन-वचन से भी हिंसा होती है। शब्द, लोभ के कारण कहे जाने वाले छल-कपट भरे शब्द, हंसी मजाक के वशीभूत कहे जाने वाले कुछ अनिष्टकारी शब्द, मान-कषाय के कारण कहे जाने वाले मर्मच्छेदि शब्द बोलकर किसी के अन्त:करण में दाह उत्पन्न कर देना भी हिंसा ही कही जाती है।
इतना ही नहीं, हिंसा के विश्वव्यापि विराट रूप में न जाने क्या-क्या तथा कैसे-कैसे अपराध भरे पड़े हैं। उन्हीं में से व्यवहार में नित्य होने वाली हिंसा के चार मुख्य कारण कहे गये हैं।
प्रथम संकल्पी हिंसा, दूसरी उद्योगी हिंसा, तीसरी आरम्भी हिंसा और चौथी विरोधी हिंसा होती है।
संकल्पी हिंसा : बिना प्रयोजन केवल मनोरंजन के अभिप्राय से अथवा कषाय के कारण की जाने वाली हिंसा संकल्पी हिंसा है। जैसे मांस के लिये पशुओं को मारना, शिकार खेलना, मछलियां पकड़ना, मनोरंजन के लिये मुर्गों को लड़ाना, जानवरों के आकार की मिठाइयों को खाना आदि सभी संकल्पी हिंसा है।
उद्योगी हिंसा – व्यापार धंधे से होने वाली हिंसा उद्योगी हिंसा है। जैसे अन्न के कारोबार में सुरसी आदि की हिंसा होती है, तेल की मिल खोलना, होटल का व्यापार करना, चमड़े के जूते-चप्पल का व्यापार करना, आटे की मिल खोलना, जानवर के आकारों के कपड़े बनवाना, खेती करना, शराब मधु की दुकानादि कार्यों में उद्योगी हिंसा होती ही है। अत: उद्योगी हिंसा पाप का कारण है।