आगरा, बटेश्वर, शौरीपुर, करहल, इटावा, बरई, एटा जिनमंदिरों के दर्शनों के साथ मिला आचार्य-मुनिवृंदों का आशीर्वाद

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सान्ध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी टीम का तूफानी दौरा
आगरा, बटेश्वर, शौरीपुर, करहल, इटावा, बरई, एटा
जिनमंदिरों के दर्शनों के साथ मिला आचार्य-मुनिवृंदों का आशीर्वाद

सान्ध्य महालक्ष्मी / 08 अक्टूबर 2021
अखिल भारतीय जैन संपादक संघ के 16वें स्थापना दिवस पर आयोजित त्रिदिवसीय अधिवेशन 02 से 04 अक्टूबर 2021 तक सम्पन्न हुआ, जिसमें प्रथम दो दिवसों पर चैनल महालक्ष्मी के संपादक श्री शरद जैन एवं सान्ध्य महालक्ष्मी के सिटी संपादक प्रवीन कुमार जैन को भाग लेने का अवसर मिला और उसी दौरान आगरा, इटावा, एटा आदि जगहों के अनेक मंदिरों तथा वहां चातुर्मास कर रहे दिगंबर जैन संतों के दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ तथा जैन समाज की आज की ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा हुई, साथ ही मंगल आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ।

दो दिन के तूफानी दौरा आगरा के श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, सिकंदरा, सेक्टर-7 से प्रारंभ हुआ जहां मुनि श्री प्रणम्य सागरजी महाराज के दर्शन हुए। उनसे गिरनार जी पर विशेष चर्चा हुई जिसमें उन्होंने कहा कि देश की 4-5 जो भी प्रमुख केन्द्रीय संस्थाएं हैं, वे इस समस्या का मिलकर समाधान करें और उनके प्रतिनिधि जाकर आचार्य श्री विद्यासागर जी से चर्चा करेंगे तो समाधान निकल सकता है। वहीं पर मुनि श्री प्रणम्य सागरजी-चन्द्र सागरजी का मुनि श्री वीरसागरजी, धवल सागरजी के साथ वात्सल्य मिलन का अनुपम दृश्य देखने को प्राप्त हुआ।

एम.डी. कॉलेज, हरिपर्वत के आॅडिटोरियम में अ.भा. जैन संपादक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन में संस्थापक श्री प्रदीप जैन (पीएनसी) ने दीप प्रज्ज्वलन कर अधिवेशन का शुभारंभ किया। स्वागताध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद जैन ने आगरा जैन समाज के मंदिरों की संक्षिप्त जानकारी के साथ संपादक संघ के सभी पदाधिकारियों, अतिथियों एवं सदस्यों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि आगरा पावन बृज भूमि है जहां आचार्य महावीर कीर्ति एवं आचार्य विमल सागरजी जैसे दैदीप्यमान आचार्यों की पावन जन्मभूमि रही है और जैन जगत के सुप्रसिद्ध कविगण स्व. पं. दौलतरामजी, स्व. पं. द्यानतरायजी, स्व. पं. भूधरदासजी एवं स्व. पं. श्री बनारसीदासजी की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी यह पावन क्षेत्र रहा है।

श्री शरद जैन (चैनल महालक्ष्मी) : पत्रकार सत्य के लिये लिखें, पंथवाद में न बंटे।

पं. सुरेन्द्र भारती (कार्याध्यक्ष, संपादक संघ): 15-16 वर्षों में संघ ने प्रतिष्ठा, यश को अर्जित किया है। समाज की स्थिति आज दर्द भरी है, उसमें से हमें सुख का रास्ता निकालना है। हमारा दोहरा कार्य है – एक तरफ संस्कृति की रक्षा, दूसरा समाज के अंदर पनप रही विकृतियों से अगाहा करना। हमारे समर्थक कम, विरोधी ज्यादा हैं। प्रदीप जी एवं जगदीशजी आगरा में हमारे दो स्तंभ हैं।

श्री शैलन्द्र जैन (अध्यक्ष) : अनेक गुरुभगवंतों का हमें आशीर्वाद प्राप्त है। डार्विन थ्यौरी – सर्वाइवल आॅफ दि फिटेस्ट के अनुसार अगर हमें अपना वजूद रखना है तो पंथवाद, जातिवाद से बाहर निकलकर, एक होकर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना होगा।

श्री प्रदीप जैन (पीएनसी) संरक्षक : पत्रकारों का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। जैन पत्रकारों को धर्म और राष्ट्र दोनों की ही सुरक्षा देखनी है। तोड़ो मत, जोड़कर चलो – यह नीति अपनानी होगी। नेगेटिव खबरें, जितनी जरूरत है उतनी ही प्रसार करें। अंत में उन्होंने कहा कैंची मत बनो, सुई-धागे का काम करो।
श्री मनोज जैन : हमें समाज में केवल लिखकर नहीं, बल्कि उनके बीच जाकर काम करना है। लीडर वो है, जो समय के हिसाब से निर्णय करें और कार्य करे।

आज हमने दूसरों को कोसना सीख लिया है, उसे छोड़कर स्वयं कार्य करना सीखना होगा। हमें वो व्यक्ति चाहिये, जो संस्था के लिये कार्य करें, पदों को पाने के लिये नहीं। हमारी पत्रकारिता में दोनों पक्ष की जानकारी लेने के बाद कलम चलनी चाहिए। यह एक ब्लेड के समान है, गलत लिखने से खुद कटेंगे और समाज को भी काटेंगे।

पं. बनारसीदास का ताजगंज जैन मंदिर
ताजमहल के पास ताजगंज, आगरा में स्थित श्री 1008 पार्श्वनाथ दि. जैन मंदिर के दर्शन हुए जहां 1100 से 2 हजार प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं। पं. बनारसी दास ने श्वेतांबर परम्परा में जन्म लिया, लेकिन समयसार का अध्ययन, 12 वर्षों तक अनेक कवितायें लिखीं, गोम्मट्सार ग्रंथ का वाचन सुना तो उन्हें स्याद्वाद का सच्चा ज्ञान हुआ और उसी के बाद उन्होंने जाना कि निर्ग्रन्थ अवस्था से ही मोक्ष संभव है और उस आध्यात्मिक पंथ का नाम तेरापंथ रखा गया।

मुगल शासनकाल में आगरा के सुल्तानपुर नामक कस्बे में दि. जैन मंदिर स्थित था, जिसमें श्री 1008 पार्श्वनाथ की लगभग 1100 वर्ष पुरानी 9 फणी पदमासन काले पाषाण की मूलनायक प्रतिमा विराजमान थी। मंदिर नष्ट होने पर आज से करीब 400 वर्ष पूर्व पं. बनारसी दास जी द्वारा वह प्रतिमा ताजगंज जिनालय में मूलनायक के रूप में स्थापित की गई। इस मंदिरजी में समाधिस्थ सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागरजी की प्रेरणा से एक हाल का गत दो वर्ष पहले निर्माण पूरा हुआ जिसमें पं.बनारसी दास के जीवन को दीवार पर सुंदरता से उकेरा गया है। उनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ आदि पांडुलिपियां सुरक्षित हैं। यहां पर पं. बनारसीदास और राजा शहंशाह द्वारा खेली जाने वाली चौसर भी सुरक्षित है।

श्री बटेश्वर अतिशय क्षेत्र
यहां भगवान अजितनाथ की अतिश्यकारी महामनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है, जिसके वक्ष स्थल के नीचे शिवलिंग-सा आभास होता है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा महोबा से पालकी में विराजमान होकर आकाश मार्ग से यहां पधारी थी। यह भी कहा जाता है कि रात में यहां कई बार घंटा आदि बजने की आवाजें सुनाई देती हैं, और मंदिरजी खोलकर देखने पर कोई वहां दिखाई नहीं देता। भगवान श्री शांतिनाथ की सं. 1150 की प्रतिष्ठित खड्गासन प्रतिमा भी यहां विराजमान है। एक अन्य वेदी में 108 प्रतिमायें विराजमान हैं जिनमें से एक लाल पाषाण की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि उसकी शांतिधारा का गंधोदक कोई लगा लें तो जहरीले जीव का काटा हुआ जहर का असर दूर हो जाता है। यहां आचार्य श्री चैत्यसागरजी. के दर्शन हुए। उन्होंने कहा विद्वान-पत्रकार-साधु जोड़ी एक सी मिल जाएं तो निश्चित रूप से धर्म की पताका खूब फहराएगी। हमें अपनी चर्या से दूसरों की आंखें खोलनी चाहिए। अच्छे कार्यों का प्रसार करें। हमारी कलम से कभी देव-शास्त्र-गुरु की निंदा न हो।
संपादक संघ की एक लघु अधिवेशन आचार्य श्री के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ जिसमें कुछ वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखें।

श्री शौरीपुर सिद्धक्षेत्र
प्रकृति की रम्य गोद में बसे शौरीपुर सिद्धक्षेत्र में आदि मंदिर (बरुवा -मठ) तथा शंखध्वज जिनालय में विराजमान श्री नेमिनाथ, श्री वृषभनाथ, श्री विमलनाथ, श्री चन्द्रप्रभु के महा-मनोज्ञ जिनबिम्ब हैं। इस अवसर पर पत्रकार-विद्वानों का सामूहिक चित्र नीचे देखें।

करहल – अतिशयकारी पावन वर्षायोग 2021
मेडिटेशन गुरु विहंसत सागरजी मुनिराज एवं विश्वसूरि सागरजी महाराज का 2021 का अतिश्यकारी पावन वर्षायोग यहां चल रहा है। करीब 250 जैन घर हैं और 19 साल बाद यहां किसी मुनि का चातुर्मास हुआ है। द्वय मुनियों की तप साधना और समाज कल्याण का अद्भुत संगम यहां देखने को मिला। 100 मंदिरों के जीर्णोद्धार के संकल्प में यह 49वां पायदान है और 50वां मंदिर मैनपुरी का होगा। मुनि श्री ने यहां विषमताओं में भी समता से कैसे जियें, यह सिखाया। इस चातुर्मास में सुंदर समाज का निर्माण हुआ। भक्तामर की सुंदर आराधना चल रही है, छोटे-छोटे बच्चे संस्कृत भक्तामर का शुद्ध उच्चारण करते हैं। यहां सुंदर वाचनालय बनाकर घरों में धूल खा रही जिनवाणियां और ग्रंथों को सुंदर तरीके से विराजमान किया गया। औषधालय खुलवाया, जिसमें 10 रुपये में दवाई मिलती है, पचासों लोग उसका प्रतिदिन लाभ उठा रहे हैं। खाली ग्राउंड जहां कूड़ा-कबाड़ पड़ा रहता था, उसे तीर्थंकर वाटिका के रूप में विकसित किया। दसलक्षण पर्व में 90 श्रावकों जिनमें अनेक छोटे बच्चे शामिल थे, उपवास रखे। क्षमावाणी पर मुनिश्री के प्रवचन सुनकर एक परिवार में सालों से चला आ रहा वैर समाप्त हो गया और वो दोनों भाई गले मिले। इस अवसर पर बड़ौत के एक ऐसे जैन परिवार की करहल समाज ने एक लाख रुपये की राशि और जरूरत का सामान देकर मदद की, जो कोरोना काल में चारों तरफ से आर्थिक रूप और अस्वस्थता के संकट से बुरी तरह घिर गया था। इस मानव सेवा के कार्य में संपादक संघ के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र जैन (अलीगढ़) ने अपनी संस्था और उत्तरांचल तीर्थक्षेत्र इकाई की ओर से इस परिवार को 11-11 हजार की राशि प्रदान की।

कुनैरा सैफई रोड, इटावा
आचार्य श्री प्रमुख सागर जी ससंघ यहां विराजमान थे। आचार्य श्री ने संपादक संघ के पत्रकारों और विद्वानों से आह्वान किया कि वे समाज के श्रेष्ठीजन एवं बुद्धिजीवियों से मिलकर स्कूलों के पाठ्यक्रमों में जैन सिद्धांतों एवं संस्कारों का प्रवेश करायें। जैन धर्म की अहिंसा-शाकाहार-स्याद्वाद का प्रचार-प्रसार हो। इसके साथ ही जैन एकता कैसे स्थापित हो, इस पर विद्वानों के विचारों को आमंत्रित किया, जिससे निष्कर्ष निकला कि इसकी पहल संत समुदाय को अपनी ओर से करनी पड़ेगी।

आचार्य श्री के सान्निध्य में यहां अ. भा. सम्पादक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन के तीसरे चरण में दो सत्रों में पत्रकार और विद्वानों ने मीडिया की भूमिका और जैन समाज की एकता क्यों और कैसे? पर अपने-अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।
डॉ. अनेकांत जैन : आज व्यक्तिवाद, नाम-ख्याति से ऊपर उठना होगा। जैन एकता के लिये दो बिन्दुओं पर गहराई से चिंतन करना होगा।
1. जैन एकता के बाधक तत्वों पर विचार करें। कुन्द कुन्द आचार्य की परंपरा में अनेक आचार्य हुए, उन्होंने आचार्य कुंद-कुंद की भक्ति नहीं लिखी, बल्कि तीर्थंकरों की भक्ति की। जैन दर्शन, जैन धर्म में व्यक्तिवाद को प्रधानता नहीं दी, लेकिन आज व्यक्तिवाद ही जैन एकता में सबसे बड़ी बाधा है। तीर्थंकरों के एक से चेहरे प्रतिमाओं में दिखाये जाते हैं, लेकिन आज एक व्यक्ति के नाम पर सौ-सौ संस्थाएं खड़ी हो जाती है। हर व्यक्ति-अध्यक्ष-मंत्री पद की होड़ में लगा है।

2. आज मिथ्यात्व की नई परिभाषा बन गई है कि जो मुझे मानता है, वह सम्यक्दृष्टि और जो नहीं मानते वे सारे मिथ्यादृष्टि। सबको एक मानने के लिये समन्वय दृष्टि रखनी होगी। हम सभी आत्मा है, शुद्धात्मा हैं ऐसा सोचेंगे तो जैन एकता दिखाई देगी। एकता के लिये अभेद्य दृष्टि अपनानी होगी। कहां पर कैसे, क्या बोलना है, यह हमें समझना होगा।
जैन मीडिया कर्मी के लिये जैन दर्शन का अध्ययन जरूरी है। उन्हें हर चीज का प्रशिक्षण मिलना चाहिए, जिससे उनकी कलम से जैन धर्म की अप्रभावना न हो जाए। संपादक मंडल में विद्वान भी रखने चाहिए।

डॉ. राजीव प्रचंडिया जैन (अलीगढ़) : आज हमारे में मनभेद-मतभेद अज्ञानता भरी पड़ी है। अहंकार को मिटाइये, अपेक्षाओं-उपेक्षाओं से दूर रहें। सहिष्णु-सहनशील बनिये। कोई भी क्रिया ज्ञान के साथ करें। बिना ज्ञान के क्रिया रूढ़िवाद को जन्म देती है और ज्ञान के साथ क्रिया करना साधना कहलाता है। हमारे अंदर केकड़ा संस्कृति पनप रही है। इसमें हम एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। हमारे सिद्धांत, हमारे आचरण में नजर आने चाहिए। चर्चा-चर्या में समन्वय होना चाहिए। जब तक जीवन में आचरण का कमल खिलेगा नहीं, तब तक जैन एकता आ नहीं सकती।

श्री जिनेश जैन कोटिया : हम जैनों की छोटी सी संख्या है। संतवाद, पंथवाद खत्म करेंगे तो जैन एकता आ जाएगी। जनगणना में जैन लिखकर जैन एकता दिखायें। उन्होंने इस अवसर पर संकल्प लिया कि आज से वे अपने गौत्र ‘कोटिया’ की जगह ‘जैन’ लिखेंगे।

श्री शैलेन्द्र जैन : जैन एकता के लिये शपथ ली कि भविष्य में अ.भा. जैन पत्र संपादक संघ के सभी बैनरों में अब गौत्र से पहले जैन अवश्य लिखा जाएगा। जैसे महामंत्री ‘अखिल बंसल’ की जगह ‘अखिल जैन बंसल’ लिखेंगे।
श्री मयंक जैन : आज सबके हाथ में मोबाइल है। हमें अगर रअश्ए, ऋडफहअफऊ, फएढछ, ऊएछएळए का सही उपयोग करना समझ आ जाए तो अपने जीवन में भी किन बातों को सेव करना है, किन बातों को फारवर्ड और किन बातों का जवाब देना है तथा कौन सी बातों को हमेशा के लिये डिलीट करना है तो निश्चित रूप से हमारे में एकता आ जाएगी।

श्री संदीप जैन (बड़ागांव) : आने वाला समय जैन समाज के लिये बहुत विषम परिस्थितियों वाला होगा। आज मीडियाकर्मी या उसका परिवार किसी गलत हाथों में फंस जाता है, तो उसे बचाने वाला कोई नहीं होता। इसके लिये जैन कोर्ट बननी चाहिए। हमें राष्ट्रीय जैन बोर्ड का गठन करना चाहिए, जिसमें प्रशासन से लड़ने की शक्ति हो।

डॉ. पारुल जैन : व्हाट्सअप पर फेक न्यूज का पता कैसे लगायें, इस पर उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बिना किसी पोस्ट की जांच करें, उसे फारवर्ड नहीं करना चाहिए। आज गूगल पर बहुत सारे टूल्स है जिनसे हम इसकी जांच कर सकते हैं।

प्रदीप जैन पीएनसी अध्यक्ष मनोनीत
इस अधिवेशन के मध्य में ही श्री प्रदीप जैन पीएनसी (आगरा) को राष्ट्रीय दिगंबर जैन प्रतिनिधि महासभा संघ, जयपुर का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। गत कोरोना काल में श्री राजेन्द्र जैन गोधा की मृत्यु के बाद यह पद रिक्त पड़ा था। साथ ही श्री अखिल जैन बंसल को संस्था का महामंत्री नियुक्त किया गया। श्री अखिलजी ने कहा कि हमें अपनी संस्था की लकीर लंबी करनी है, दूसरी की टांग नहीं खींचनी है।

दूसरे सत्र के पश्चात् सान्ध्य महालक्ष्मी- चैनल महालक्ष्मी टीम 03 अक्टूबर के अपने अंतिम लक्ष्य एटा की ओर रवाना हुई और वहां पदमावती पुरवाल पंचायती बड़ा मंदिर, एटा में चातुर्मास कर रहे गणाचार्य श्री विराग सागरजी महाराज के दर्शनार्थ पहुंची। सायंकाल का समय था, आचार्य श्री के मौन से कुछ मिनट पूर्व पहुंचने से उनसे महत्वपूर्ण वार्ता होने से हमारे में नई स्फूर्ति का संचार हुआ। गिरनार समस्या पर गहन चिंतन हुआ। फिर उदयगिरि खंडगिरि की जैन गुफाओं के बारे में बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि शीघ्र ही उनकी दो पुस्तकों का प्रकाशन होगा जिनमें वहां पड़े शिलालेखों का उल्लेख और गुफाओं का विवरण होगा। उन्होंने सन् 2023 में होने वाले यति सम्मेलन की भी जानकारी प्रदान की। उनका मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त कर हम दिल्ली की ओर रवाना हो गये।