काल के थपेड़ों से शिखरजी सिकुड़ गया कई गुणा

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 16 अप्रैल 2021
शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी पर चैत्र शुक्ल पंचमी को आज से करोड़ों – करोड़ों साल पहले इस पावन धरा पर पहले तीर्थंकर मोक्ष गये, यह वही कूट है सिद्धवर कूट जहां से, इस हुण्डा अवसर्पिणी काल में दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी सिद्धालय विराजे।
एक लाख पूर्व वर्ष तक समोशरण रूपी धर्मसभा में ज्ञानगंगा की बरखा के बाद यहीं आपने एक माह का निरोध धारण किया और चैत्र शुक्ल पंचमी को प्रात:काल में एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष पधारें, इस कूट के निर्मल भावों से दर्शन करने से 32 करोड़ उपवास का फल मिलता है। इसी कूट से एक अरब 84 करोड़ 45 लाख महामुनिराज मोक्ष गये हैं।

हम शीर्षक पर आते हैं, कि वर्तमान में 37 वर्ग किमी में फैला यह पावन तीर्थक्षेत्र अनादि निधन है, शाश्वत है, पर क्या वैसा ही, जैसा पहले था। इस पर कोई संशय तो नहीं होना चाहिये। यह सवाल मन में यूं ही नहीं उठता, लोहाचार्य जी ने ‘श्री सम्मेदशिखरजी महात्मय’ में जो लिखा है, उससे इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके ज्ञान पर संशय हो ही नहीं सकता।
श्री सम्मेदशिखर महात्म्य में लिखा है दूसरे पाठ की 79-80 गाथा में कि इस शाश्वत तीर्थ की वंदना करने, जैसे हम और आप लोग आते हैं, ऐसे ही सबसे पहले यहां सगर चक्रवर्ती आये, पर हमारी तरह अकेले नहीं, अनेक मुनिराजों, आर्यिकायें, श्रावक-श्राविकाओं के साथ यानि पूरे चतुर्विध संघ के साथ। पहले कुछ इसी तरह यहां दर्शन के लिये आते थे। यह बात है तीर्थंकर अजितनाथ जी के काल की है।
इसी की 81-82 गाथा पढ़कर दिमाग की घंटियां बजती हैं – उनके साथ 84 लाख हाथी, 18 करोड़ घोड़े, 84 लाख पैदल यात्री, अनेक विद्याधर भी साथ थे, और एक-एक करोड़ नगाड़े बजाने वाले, ध्वजा फहराने वाले साथ थे। आगे बढ़ने से पहले यह भी जान लें कि तब मनुष्य कद 450 धनुष होता था, यानि 675 फीट, तब हाथी कितने हजार फीट के होंगे, इसकी भी कल्पना जरा कर लें। अब इस 37 किमी के परिसर में इतने विशाल लोग – हाथी घोड़े इतनी बड़ी संख्या तो आ ही नहीं सकते। फिर इसका मतलब, समय के साथ यह पावन पर्वत संकुचित होता जा रहा है। ऐसा होता भी है। अरावली रेंज गुजरात से राजस्थान, हरियाणा होते हुए दिल्ली तक पहुंचती है। लगभग 700 किमी की है। इसका इतिहास 57 करोड़ वर्ष का कहा जाता है, एक समय इसमें बहुत ऊंची-ऊंची चोटियां थीं, अब सबसे ऊंची 1700 मीटर की है।
इस सिद्धवर कूट पर एक साथ हजार मुनिराज मोक्ष गये, तो यहां तो आज 1000 के खड़े होने की जगह भी नहीं है और उनका कद था प्रत्येक का 450 धनुष यानि हमारे कद से 100 गुना ज्यादा।
समय के साथ यह घटता गया होगा, यहां पर पहले विशाल मदिर भी थे, वे भी नष्ट हो गये। बाद में यहां इन टोंकों का स्वरूप दिया गया। अब इन्हें तो हमें संभालना ही होगा। पर कल्पना कीजिये, उतने ऊंचे कद वाले तीर्थंकर जब यहां आये होंगे तो यह शिखरजी कितना विशाल होगा, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आप भी एक बार चिंतन कीजिये श्री सम्मेदशिखरजी की भव्यता, विशालता, सौन्दर्यता जिसकी आज कल्पना भी नहीं कर सकते। जय हो पावन शाश्वत श्री सम्मेद शिखरजी की जय हो।