2 जनवरी 2022/ पौष शुक्ल एकादशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
णमो सम्मेयसिहरस्स
तीर्थराज सम्मेद शिखर शाश्वत तीर्थ है । यह जैन परंपरा के 20 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है । जैन प्राकृत आगम साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं ।
प्रथम शती में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं –
वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्वकिलेसा।
संमेदे गिरिसिहरे, णिव्वाणगया णमो तेसिं।।२।।
अर्थात् जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्होंने समस्त क्लेशों को नष्ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं, उन सबको नमस्कार हो।(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,1st A.D )
दूसरी – तीसरी शताब्दी में आचार्य यतिवृषभ लिखते हैं –
चेत्तस्स सुद्ध-पंचमि-पुव्वण्हे भरणि-णाम-णक्खत्ते ।
सम्मेदे अजियजिणो,मुत्तिं पत्तो सहस्स-समं ।।
अर्थात् द्वितीय तीर्थंकर अजित जिनेन्द्र चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन पूर्वाह्न में भरणी नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए ।
(आचार्य यतिवृषभ,तिलोयपण्णत्ति,4/1197, 2-3rd A.D )
चेत्तस्स सुक्क-छट्ठी-अवरण्हे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
संपत्तो अपवग्गं,संभवसामी सहस्स-जुदो ।।
अर्थात् तीर्थंकर सम्भवनाथ स्वामी चैत्र शुक्ल षष्ठी के दिन अपराह्न में जन्म (ज्येष्ठा)नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए हैं । (वही ,4/1198)
वइसाह-सुक्क-सत्तमि,पुव्वण्हे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
दस-सय-महस्सि-सहिदो,णंदणदेवो गदो मोक्खं ।।
अर्थात् तीर्थंकर अभिनंदन देव वैशाख शुक्ला सप्तमी के पूर्वाह्न में अपने जन्म (पुनर्वसु) नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार महर्षियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए ।
(वही ,4/1199)
चेत्तस्स सुक्क-दसमी पुव्वण्हे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
दस-सय-रिसि-संजुत्तो ,सुमई णिव्वाणमावण्णो ।।
अर्थात् तीर्थंकर सुमति जिनेन्द्र चैत्र शुक्ला दसमी के पूर्वाह्न में अपने जन्म (मघा )नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार महर्षियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए ।(वही,4/1200)
फग्गुण-किण्ह-चउत्थी-अवरण्हे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
चउवीसाहिय-तिय-सय-सहिदो पउमप्पहो देवो ।।
अर्थात् तीर्थंकर पद्मप्रभदेव फ़ाल्गुन कृष्णा चतुर्थी को अपराह्न अपने जन्म(चित्रा) नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से तीन सौ चौबीस मुनियों के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए । (वही ,4/1201)
फग्गुण-बहुलच्छट्ठी -पुव्वण्हे पवदम्मि सम्मेदे ।
अणुराहाए पण-सय-जुत्तो मुत्तो सुपास-जिणो ।।
अर्थात् तीर्थंकर सुपार्श्व जिनेन्द्र फाल्गुन कृष्णा षष्ठी के पूर्वाह्न में अनुराधा नक्षत्र के रहते सम्मेद पर्वत से पांच सौ मुनियों सहित मुक्ति को प्राप्त हुए हैं ।(वही ,4/1202)
सिद-सत्तमि पुव्वण्हे , भद्दपदे मुणि सहस्स -संजुत्तो ।
जेट्ठेसुं सम्मेदे ,चंदप्पह-जिणवरो सिद्धो ।।
अर्थात् तीर्थंकर चंद्रप्रभ जिनेन्द्र भाद्रपद शुक्ला सप्तमी के पूर्वाह्न में ज्येष्ठा नक्षत्र के रहते एक हज़ार मुनियों सहित सम्मेद शिखर से मुक्त हुए हैं ।(वही ,4/1203)
अस्सजुद-सुक्क-अट्ठमि-अवरण्हे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
मुणिवर सहस्स सहिदो,सिद्धि-गदो पुप्फदंत-जिणो।।
तीर्थंकर पुष्पदंत जिनेन्द्र आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन अपराह्न में अपने जन्म (मूल) नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ सिद्धि को प्राप्त हुए हैं । (वही ,4/1204)
कत्तिय-सुक्के पंचमि – पुव्वण्हे जम्म – भम्मि सम्मेदे ।
णिव्वाणं संपत्तो , सीयलदेवो सहस्स – जुदो ।।
तीर्थंकर शीतलनाथ जिनेन्द्र कार्तिक-शुक्ला पंचमी के पूर्वाह्न में अपने जन्म (पूर्वाषाढा) नक्षत्र के रहते सम्मेदशिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए हैं ।
(वही ,4/1205)
सावणय-पुण्णिमाए,पुवण्हे मुणि-सहस्स-संजुत्तो ।
सम्मेदे सेयंतो,सिद्धिं पत्तो धणिट्ठासुं ।।
तीर्थंकर श्रेयांशनाथ श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के पूर्वाह्न में धनिष्ठा नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ सिद्धि को प्राप्त हुए हैं । (वही ,4/1206)
सुक्कट्ठमी-पदोसे,आसाढ़े जम्म – भम्मि सम्मेदे ।
छस्सय-मुणि-संजुत्तो,मुत्तिं पत्तो विमलसामी ।।
अर्थात् तीर्थंकर विमलनाथ स्वामी आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को प्रदोषकाल (दिन और रात्रि के संधि काल ) में अपने जन्म (पूर्व भाद्र पद ) नक्षत्र के रहते छह सौ मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से मुक्त हुए । (वही ,4/1208)
चेत्तस्स किण्ह -पच्छिम-दिणप्पदोसम्मि जम्म-णक्खत्ते ।
सम्मेदम्मि अणंतो,सत्त-सहस्सेहि संपत्तो ।।
अर्थात् तीर्थंकर अनंतनाथ स्वामी चैत्रमास के कृष्ण पक्ष संबंधी पश्चिम दिन (अमावस्या)के प्रदोषकाल में अपने जन्म (रेवती) नक्षत्र में सम्मेद शिखर से सात हज़ार मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए हैं (वही ,4/1209)
जेट्ठस्स किण्ह-चोद्दसि-पज्जूसे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
सिद्धो धम्म-जिणिंदो,रूवाहिय-अड-सएहि जुदो ।।
अर्थात् तीर्थंकर धर्मनाथ जिनेन्द्र ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को प्रत्यूष (रात्रि के अंतिम भाग -प्रभात ) काल में अपने जन्म (पुष्य) नक्षत्र के रहते आठ सौ एक मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से मुक्त हुए हैं । (वही ,4/1210)
जेट्ठस्स किण्ह-चोद्दसि-पदोस-समयम्मि जम्म-णक्खत्ते ।
सम्मेदे संति-जिणो ,णय सय मुणि-संजुदो सिद्धो ।।
अर्थात् तीर्थंकर शांतिनाथ जिनेन्द्र ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को प्रदोष काल में अपने जन्म (भरणि) नक्षत्र के रहते नौ सौ मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से सिद्ध हुए हैं ।(वही ,4/1211)
वइसाह-सुक्क-पाडिव-पदोस-समयम्हि जम्म-णक्खत्ते ।
सम्मेदे कुंथु-जिणो,सहस्स-सहिदो गदो सिद्धिं ।।
अर्थात् तीर्थंकर कुंथु जिनेन्द्र वैशाख शुक्ला प्रतिपदा को प्रदोष काल में अपने जन्म(कृतिका)नक्षत्र के रहते हुए एक हज़ार मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से मुक्ति को प्राप्त हुए । (वही ,4/1212)
चेत्तस्स बहुल-चरिमे,दिणम्मि णिय जम्मि-भम्मि पज्जूसे ।
सम्मेदे अर-देओ,सहस्स-सहिदो गदो मोक्खं ।।
अर्थात् तीर्थंकर अरनाथ भगवान ने चैत्र कृष्णा अमावस्या को प्रत्यूष काल में अपने जन्म (रोहिणी) नक्षत्र के रहते एक हज़ार मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्त किया है । (वही ,4/1213)
पंचमि-पदोस-समए,फग्गुण-बहुलम्मि भरणि-णक्खत्ते ।
सम्मेदे मल्लिजिणो,पंच-सय-समं गदो मोक्खं ।।
अर्थात् तीर्थंकर मल्लिनाथ फाल्गुन कृष्णा पंचमी को प्रदोष समय में भरणी नक्षत्र के रहते सम्मेदशिखर से पांच सौ मुनियों के साथ मोक्ष गए । (वही ,4/1214)
फग्गुण-किण्हे बारसि-पदोस-समयम्मि जम्म-णक्खत्ते ।
सम्मेदम्मि विमुक्को,सुव्वद-देवो सहस्स जुत्तो ।।
अर्थात् तीर्थंकर मुनिसुव्रत जिनेन्द्र फाल्गुन कृष्णा बारस को प्रदोष समय में अपने जन्म (श्रवण)नक्षत्र के रहते एक हज़ार मुनियों के साथ सम्मेद शिखर से सिद्धि को प्राप्त हुए हैं । (वही ,4/1215)
वइसाह-किण्ह-चोद्दसि,पज्जूसे जम्म-भम्मि सम्मेदे ।
णिस्सेयसं पवण्णो,समं सहस्सेण णमि-सामि ।।
अर्थात् तीर्थकर नमिनाथ स्वामि वैशाख कृष्णा चतुर्दशी के प्रत्यूष काल में अपने जन्म (अश्विनी)नक्षत्र के रहते सम्मेद शिखर से एक हज़ार मुनियों के साथ निःश्रेयस पद को प्राप्त हुए हैं । (वही ,4/1216)
सिद-सत्तमी-पदोसे,सावण-मासम्मि जम्म – णक्खत्ते ।
सम्मेदे पासजिणो,छत्तीस-जुदो गदो मोक्खं ।।
अर्थात् तीर्थंकर पार्श्वनाथ जिनेन्द्र श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के प्रदोष काल में अपने जन्म (विशाखा) नक्षत्र के रहते छत्तीस मुनियों सहित सम्मेद शिखर से मोक्ष को प्राप्त हुए । (वही ,4/1218)
इन प्रमाणों के अलावा अनेक दिगंबर और श्वेताम्बर प्राकृत ,संस्कृत और अपभ्रंश,हिंदी साहित्य में अनेक स्थलों पर सम्मेद शिखर का निर्वाण भूमि के रूप में स्पष्ट उल्लेख आया है । अतः हमारा निवेदन है –
सिद्धपूयणतवणाणं,अत्थि य सिरिसम्मेयसिहरमूलो।
ण तित्थपज्जटणथलं णत्थि विसयभोयवावारो ।।
अर्थात् श्री सम्मेद शिखर का मूल है – तीर्थंकर सिद्धों की पूजन,तप-ध्यान और ज्ञान । (यह पवित्र तीर्थ है )और तीर्थ न पर्यटनस्थल है और न विषय भोग का व्यापार ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,आचार्य – जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली