08 दिसंबर 2022/ पौष कृष्णा एकम /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
श्री सम्मेद शिखरजी सबको प्राणों से प्यारा है आपको भी होगा , है ना। इसके लिए सबको आगे आना होगा और हम सबको मिलकर योगदान करना होगा । अपने-अपने मंदिर से हस्ताक्षर अभियान शुरू करना है । सभी बंधुवर, चाहे कार्यकारिणी में हो या ना हो, आप सब योगदान दीजिए ।
संकल्प पत्र तैयार कीजिए जिसका प्रारूप यहां दिया जा रहा है । मंदिर में, उनके परिवार से जुड़े हर व्यक्ति का, नाम, पता, मोबाइल नंबर और हस्ताक्षर करवाइए और अपने जिला अधिकारी को वह संकल्प पत्र दीजिए । उसकी प्रति आप व्हाट्सएप नंबर 991069 0823 पर भेज दीजिए । ध्यान रहे, आप सबका यह सहयोग 18 दिसंबर को, अब तक के सबसे बड़े संकल्पित हस्ताक्षर अभियान का साक्षी बनेगा। पहली बार सबसे बड़े जनबल के सामने, संकल्प की घोषणा होगी और विश्वास कीजिए, आप यह कह सकेंगे कि श्री सम्मेद शिखरजी जैनों का था, जैनों का है और सदा जैनों का रहेगा। हर मंदिर में इस अभियान को चलाइए हस्ताक्षर कर आइए।
इतना तो कर ही सकते हैं ना और यह है उस का प्रारूप।
माननीय श्री भूपेंद्र यादव जी
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री
9, मोती लाल नेहरु मार्ग, मान सिंह रोड, नई दिल्ली – 110001
माननीय श्री हेमंत सोरेन जी
मुख्यमंत्री, झारखंड राज्य सरकार
मुख्यमंत्री कार्यालय, प्रथम मंजिल, प्रोजेक्ट बिल्डिंग, रांची (झारखण्ड)-834004
माननीय महोदय
सादर जय जिनेंद्र
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आज जैन समाज अपने को असुरक्षित समझ रहा है , क्योंकि उसे जिस श्री सम्मेद शिखरजी पर नाज़ रहा है और आज उस पर कुछ अपवित्रता की अंगुलियां उठ रही है।
तीर्थराज सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। तीर्थराज सम्मेदशिखर झारखण्ड प्रदेश में पारसनाथ स्टेशन से 23 किलोमीटर मधुवन में स्थित है। तीर्थराज सम्मेदशिखर पर्वत की उँचाई 4,579 फीट है। इसका क्षेत्रफल 25 वर्गमील में है एवं 27 किलोमीटर की पर्वतीय वन्दना है। सम्पूर्ण भूमण्डल पर इस शाश्वत निर्वाणक्षेत्र से पावन, पवित्र और अलौकिक कोई भी तीर्थक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र, सिद्धक्षेत्र और निर्वाणक्षेत्र नहीं है। इस तीर्थराज के कण—कण में अनन्त विशुद्ध आत्माओं की पवित्रता व्याप्त है अत: इसका एक—एक कण पूज्यनीय है, वन्दनीय है। कहा भी है—एक बार वन्दे जो कोई, ताहि नरक पशुगति नहीं होई।
एक बार जो इस पावन पवित्र सिद्धक्षेत्र की वन्दना श्रद्धापूर्वक करते हैं। उसकी नरक और तिर्यञ्चगति छूट जाती है अर्थात् वो नरकगति में और तिर्यञ्चगति में जन्म नहीं लेता है। इस तीर्थराज सम्मेदशिखर से वर्तमानकालसम्बन्धी चौबीसी के बीस तीर्थंकरों के साथ—साथ 86 अरब, 488 कोड़ाकोड़ी, 140 कोड़ी, 1027 करोड़, 38 लाख, 70 हजार, 323 मुनियों ने कर्मों का नाश कर मोक्ष प्राप्त किया है।इस कारण इस भूमि का कण-कण पूजनीय एवं वंदनीय है। सभी पापों का संहार करने वाले तीर्थराज की वंदना महान् पुण्य का कारण है। सम्मेदशिखर का अस्तित्व कभी नष्ट नहीं होगा, अनन्तकाल तक रहेगा, अत: ये शाश्वत है। एक बार इस तीर्थ की वन्दना करने से 33 कोटि, 234 करोड़, 64 लाख उपवास का फल मिलता है। इस सिद्धक्षेत्र की भूमि के स्पर्शमात्र से संसार ताप नष्ट हो जाता है। आचार्यों ने आगम ग्रंथों में लिखा है कि इस 12 योजन (96 मील) प्रमाण विस्तार वाले सिद्धक्षेत्र में भव्य राशि कैसी भी हो, अत्यन्त पापी जीव भी इसमें रहता हो/जन्म लेता हो तो भी 49 जन्मों के बीच में कर्म नाश कर बंधन मुक्त हो जाता है। परिणाम निर्मल, ज्ञान उज्जवल, बुद्धि स्थिर, मस्तिष्क शांत और मन पवित्र हो जाता है। पूर्वबद्ध पाप तथा अशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं। दु:खी प्राणी को आत्मशांति प्राप्त होती है। ऐसे निर्वाण क्षेत्र की वन्दना करने से उन महापुरुषों के आदर्श से अनुप्रेरित होकर आत्मकल्याण की भावना उत्पन्न होती है।
आपसे पूरा जैन समाज अनुरोध करता है कि इसकी अधिकारिक घोषणा की जाए कि श्री सम्मेद शिखरजी अहिंसक, शाकाहारी, पवित्र जैन तीर्थ क्षेत्र सदा से रहा है और इसकी सुरक्षा , संरक्षण, संवर्धन के लिए सरकार पूरी तरह संकल्प शील है ।
हमारे क्षेत्र के अनेक जैन भाइयों ने इसको हस्ताक्षरित कर आप तक पहुंचाने का अनुरोध किया है।
आशा है कि आप संज्ञान लेकर तुरंत कार्यवाही करने के आदेश जारी कर अल्पसंख्यक जैन समाज के साथ न्याय करेंगे!
धन्यवाद और अतिशीघ्र कार्यवाही की आशा में,
निवेदक
आप सब से विनम्र अनुरोध, उसके गवाह बनने के लिए 18 दिसंबर को लाल किला मैदान में जरूर आना और साक्षात जानिए कि श्री सम्मेद शिखरजी कहीं नहीं गया, ना गिरनार बनेगा, सुरक्षित रहेगा । बस आइएगा जरूर, पूरे परिवार के साथ।