तीसरे तीर्थंकर श्री संभावनाथ जी द्वारा एक लाख पूर्व चार पूर्वांग 14 वर्षों तक, समोशरण के द्वारा, जिसमें उनकी दिव्य ध्वनि को 105 गणधर सभी तक पहुंचाते रहे।
और, जब आयु कर्म एक माह शेष रह गया। तब भोग निवृत्ति काल में वे श्री सम्मेद शिखरजी पहुंच गए , जहां चैत्र शुक्ल षष्ठी को, अपराहन काल में, ज्येष्ठा नक्षत्र में, 1000 महामुनिराजों के साथ , धवल कूट से एक क्षण में सिद्धालय पहुंच गए ।
इस धवल कूट से 9 करोड़ 72 लाख 7 हजार 147 मुनिराज भी मोक्ष गए हैं ।
कहा जाता है कि इस टोंक की निर्मल भावों से वंदना करने से 42 लाख उपवास का फल मिलता है।
तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी का तीर्थ प्रवर्तन काल दस लाख करोड़ सागर तथा चार पूर्वांग का रहा।
बोलिए तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी के मोक्ष कल्याणक की जय जय जय।