रविवार, 24 अक्टूबर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी- तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी का ज्ञानकल्याणक

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हुण्डा अवसर्पिणी काल के कारण अयोध्या में नहीं जन्में पहले तीर्थंकर, श्री संभवनाथ जी, श्रावस्ती नगरी में जन्म, 60 लाख वर्ष पूर्व की आयु और 1600 हाथ ऊंचा कर, 44 लाख पूर्व 4 पूर्वांग राज करने के बाद एक दिन राजमहल की छत पर खड़े थे और आसमान में बादलों को बनते, फिर मिटते देखा और वैराग्य की भावना उमड़ पड़ी,

फिर मंगसिर पूर्णिमा को सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा के लिए पहुंच गये, पंचमुष्टि केशलोंच कर श्रावास्ती के ही उद्यान में तप में लीन हो गये।

14 वर्ष तक की कठोर तपस्या के बाद शालवृक्ष के नीचे कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को संध्या के समय केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने तुरंत 11 योजन लम्बे समोशरण की रचना की जिसमें, चारदत्त प्रमुख गणधर सहित 105 गणधरों ने उनकी दिव्य ध्वनि को ऋषि मुनिराजों तक पहुंचाया।

आपका केवलीकाल एक लाख श्राविकाओं के साथ दो लाख ऋषिराज, 2150 पूर्वधर मुनि, 1,29,300 शिक्षक मुनि, 9400 अवधिज्ञानी, 15 हजार केवली, 29,800 विक्रियाधारी, 12,100 विपुल ज्ञानधारक, 12 हजारवादी मुनि और 3.30 लाख आर्यिकायें भी तीर्थंकर संभवनाथजी की दिव्यध्वनि का अमृतपान करती थीं।

यह ज्ञानकल्याणक 24 अक्टूबर को आ रहा है, बोलिए तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथजी के ज्ञानकल्याणक की जय-जय-जय।