कभी आपने सोचा है, कि आज जो तीर्थंकरों की जिस चिह्न से पहचान होती है, वो कैसे और किसके द्वारा जानकारी में आया

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18 दिसंबर : मंगसिर पूर्णिमा : तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ जी का तप कल्याणक

कभी आपने सोचा है, कि आज जो तीर्थंकरों की जिस चिह्न से पहचान होती है, वो कैसे और किसके द्वारा जानकारी में आया। ऋषभनाथ भगवान की पहचान वृषभ, अजितनाथ जी की हाथी से और जिन सम्भवनाथ जी का बात कर रहे हैं, उनकी घोड़े से पहचान किसने और कब की? आप में से कई को नहीं मामूम होगा। यह पहचान करता है सौधमेन्द्र, जब वह मेरुपर्वत पर तीर्थंकर बालक का न्हवन करता है, तो जो चिह्न उनके दायें पैर के अंगूठें में होता है, वही चिह्न उनकी प्रतिमा की पहचान बनता है।

क्योंकि सभी तीर्थंकर गुणों में तो समान होते हैं, पर रंग-कद-आयु से अलग-अलग होते हैं। 20 तीर्थंकरों का जन्म और तप कल्याणक एक ही दिन आता है। केवल चार – संभवनाथ जी, सुमतिनाथ जी, अरनाथ जी और महावीर स्वामी का अलग-अलग दिन आता है। इनमें सबसे पहले हैं तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ जी, जिनका तप कल्याणक आ रहा है शनिवार 18 दिसम्बर यानि मंगसिर माह का अंतिम दिन पूर्णिमा।

अजितनाथ भगवान जी के मोक्ष जाने के 10 लाख कोटि सागर बीतने के बाद, अधोग्रेवेयक विमान में अपनी आयु पूर्ण कर श्रावस्ती के तत्कालीन महाराज जितारी की महारानी सुसेना के गर्भ से आपका जन्म होता है। 60 लाख वर्ष पूर्व की आयु, जिसमें 15 लाख वर्ष का कुमार काल और फिर 44 लाख वर्ष पूर्व चार पूर्वांग आपने राज्य किया।

आपका कद था 2400 फुट ऊंचा और दमकते सोने की तरह आकर्षित काया। एक दिन राजमहल की छत से बादलों को उमड़ते घुमड़ते और फिर विलीन होते देखा तो मन में वैराग्य की भावना बलवती हो गई।

बस अपना राजपाट सौंप सिद्धार्थ पालकी से सहेतुक वन पहुंच गये। आपको तप की ओर बढ़ते देख एक हजार और राजा आपके साथ हो लिये। अपराह्न काल में, ज्येष्ठ नक्षत्र में आप पंचमुष्टि केशलोंच कर तप में लीन हो गये। गाय के दूध की खीर के रूप में महामुनिराज के रूप में पहला आहार देने का सौभाग्य श्री सुरेन्द्र दत्तजी को मिला।

14 वर्ष तक की कठोर तपस्या के बाद आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
मंगसिर-सित-पून्यो तप धार, सकल संग-तजि जिन अनगार।
ध्यानादिक-बल जीते कर्म, चचौं चरण देहु शिव-शर्म।।

बोलिए तीसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी के तप कल्याणक की जय-जय-जय।