सामायिक- कितने काल, कितनी सामायिक, सर्वश्रेष्ठ काल, कौन-सी शुद्धि, कितने दोष

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1) सामायिक के कितने काल  कहे  गए है ?

सामायिक के तीन काल तो कहे ही गए है प्रातः दोपहर सायं । बाकि 24 घंटे में किसी भी समय कर सकते हैं।

2) कितनी सामायिक प्रतिदिन करनी चाहिएं ?

 कम से कम एक तो अवश्य करनी चाहिए। अधिक जितनी कर सकें। तीन तो कही ही गई हैं।

3) क्या रात्रि में भी सामायिक करनी चाहिए ?

रात्रि में धर्म जागरण करके ज्ञान आराधना करने से ज्ञान स्थिर रहता है बढ़ता है ।

4) सामायिक का सर्वश्रेष्ठ काल कौन सा है ?

जब सब तरफ़ शान्ति होती है शोर नहीं होता।

5) सामायिक में चार प्रकार की शुद्धि कौन सी है ?

द्रव्य क्षेत्र काल भाव की शुद्धि। सामायिक के अर्थ के अनुकूल द्रव्य धारण करना, शान्त एकान्त अशुचि रहित क्षेत्र जहां चित्त आसानी से सामायिक में लग सके और व्याख्यान I मन की चिंता रहित काल, मन को चिंता मुक्त रख सकें। भावों को धर्म में मोड़ा जोड़ा जा सके व सामायिक में केवल धर्म आराधना करना।

6) सामायिक के कितने दोष कहे गए हैं?

सामायिक के 32 दोष कहे गए हैं … 10 मन के 10 वचन के 12 काय के। सभी 32 दोष टाल कर सामायिक करनी चाहिए।

7) श्रेष्ठ सामायिक किसने की ? राजा चन्द्रावतंसकजी ने, पूनिया श्रावक जी ने और भी बहुतों ने।

8) सामायिक में आयु का बंध हो तो कौन सा होता है ?

सामायिक की आराधना में वैमानिक आयु का बंध होता है और दोष सहित विराधना में भवनवासी व्यंतर ज्योतिष का बंध हो सकता है।

9) दोष लगे कोई बात नहीं देव तो बन ही जाऊंगा ऐसा विचार क्या लाभकारी है ?

नहीं। जन्म मरण बढ़ सकता है। आराधना में आयुबंध हो तो 7 देव के और 7 मनुष्य के भव से ज्यादा जन्म मरण नहीं होता अवश्य केवल ज्ञान हो जाता है। परिणाम उच्च हों तो तीर्थंकर गोत्र का भी बंध हो सकता है।

10) सामायिक में धर्म ध्यान ही तो करना है फिर पाठ पढ़कर लेने की क्या आवश्यकता है ? क्या ऐसी सोच उचित है ?

नहीं। सामायिक सदा विधि से ही लेनी पारनी चाहिए। सामायिक की जो विधि कही गई है वही करनी चाहिए अपने मन की नहीं। यही सामायिक की विनय है।

11) क्या सामायिक सुलभ है ?

नहीं। दुर्लभ ही नहीं महादुर्लभ है।. जब मनुष्य जन्म ही दुर्लभ है जैन कुल जैन धर्म तो और भी दुर्लभ हैं फिर सामायिक सुलभ कैसे कही जा सकती है ?