भव सागर से तारने वाले पूज्यवर आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुराज के श्री चरणों मे, चतुर्विध संघ की उपस्थिति ,गुरु मुख से आत्म धर्म सम्बोधन पूर्वक क्षपक महामुनि श्री जंयन्तसागर जी गुरुदेव की आज दिनांक 16 जून को प्रातः11 बजे वीर समाधिमरण हुआ।
अंकलिकर परम्परा के चतुर्थ पट्टनायक संयम भूषण आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुराज के संघस्थ मुनि श्री जयंतसागर जी गुरुदेव का संक्षिप्त परिचय
पूर्व नाम-कैलाश जी झांझरी,जन्म 24.11.1941 जयपुर,
शिक्षा मेट्रिक
धार्मिक व आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार के मुखिया श्रीमान कैलाश जी ने गृहस्थ जीवन के सम्पूर्ण दायित्वों का कुशल पूर्वक निर्वहन के पश्चात आत्मकल्याण के उद्देश्य से विश्व वन्दनीय महागुरु श्री सुनीलसागर जी भगवन्त के वरदानदायी हस्तकमलो से दिनांक 23.10.2015 को प्रतापगढ़ कीय धरा पर क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की, नाम पाया पूज्य क्षुल्लक श्री जंयन्त सागर जी
उम्र की जटिलताओं को दरकिनार करते हुए आप गुरु चरणो में आगमनुकूल संयम की कठोर साधना करते रहे
आपने विगत कुछ महीनों से अपने तारणहार गुरु के समक्ष मुनि दीक्षा का निवेदन किया
जिस पर आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरुराज ने आपको इसी जून माह में नयागांव में मुनिदिक्षा देकर मुनिश्री जयंतसागर बनाकर पूज्य कर दिया।
आपने मुनि दीक्षा के साथ ही कृष हो चुके देह को त्यागने वीर समाधि मरण को प्राप्त करने के महान लक्ष्य के साथ गुरु आज्ञा-आशीष व निर्देशन में सल्लेखना की महान साधना पर अग्रसर हो गए है
किसी भी जैन मुनि के जीवन का अंतिम आवश्यक लक्ष्य उत्तम समाधि मरण होता है। समाधि की साधना करने वाला क्षपक कहलाता है और ऐसे क्षपक की।समाधिमरण तक सेवा-वैयावृत्ति-सम्बोधन व आत्मोपदेश करना संघस्थ या निकटस्थ साधुओं का परम कर्तव्य होता है
आचार्य भगवन्त श्री सुनीलसागर जी गुरुराज स्वयं क्षपक मुनि श्री जयंतसागर जी की वैयावृत्ति करते हुए श्रेष्ठ निर्देशो के साथ संघ के वरिष्ठ साधुओं को क्षपक मुनि की समाधि सल्लेखना महोत्सव को उत्तम बनाने के लिए नियुक्त कर दिया।
पूरा संघ क्षपक मुनि की इस अंतिम आवश्यक महान साधना में सेवारत रहे
-शाह मधोक जैन चितरी