क्षपक मुनिराज 85 वर्षीय मुनि श्री परमानंद सागर जी ने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर, यम सल्लेखना की ओर अग्रसर होकर संस्तरारोहण किया

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आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी संघस्थ शिष्य 85 वर्षीय मुनि श्री परमानंद सागर जी ने आज चारों प्रकार के आहार का त्याग किया और यम सल्लेखना की ओर अग्रसर

85 वर्षीय मुनि श्री परमानंद सागर जी ने वात्सलय वारिधि के समक्ष आज दिनांक 13 जनवरी 2022 को कोपरगाँव महाराष्ट्र में चारो प्रकार के आहार त्याग कर सलेखना लेते हुए संस्तारोहण किया

वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी संघस्थ शिष्य 85 वर्षीय मुनि श्री परमानंद सागर जी ने आज आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज के समक्ष चारों प्रकार के आहार का त्याग किया और यम सल्लेखना की ओर अग्रसर होकर संस्तरारोहण किया।

*संस्तरारोहण का आशय*

संस्तर से आशय क्षपक साधु जहाँ बैठते है लेटते है उस स्थान का आरोहण करना अर्थात उसे स्वीकार करना
संस्तारारोहण कहलाता है।

सल्लेखना एक चिंतन
जैन समाज मे धर्मात्मा जीव जीवन को नश्वर समझ कर समय पर आचार्यों के समीप जाकर अणुव्रत महाव्रत धारण कर जीवन को सफल बनाते है
प्रथमाचार्य चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी गुरुदेव की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टा धीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का संघ सहित वर्ष 2022 में श्री महावीर स्वामी जी के महामस्तकाभिषेक के लिए राजस्थान की ओर विहार चल रहा है

विगत 13 अगस्त 2021 को कोल्हापुर के अलास नगर के 85 वर्षीय श्री अप्पा जी अलासे आचार्य श्री के समक्ष दीक्षा लेकर समाधि की भावना प्रगट की
13 जनवरी 2022 को कोपरगाँव महाराष्ट्र में वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री ने मुनि श्री की भावना अनुरूप संस्तरा रोहण की क्रिया कराई यम सल्लेखना अंतर्गत मुनि श्री ने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया है

दया मूर्ति आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी जिनके सानिध्य मार्ग दर्शन में निवापकाचार्य होकर विगत 53 वर्षो के साधु जीवन और 33 वर्ष के आचार्य पद पर लगभग 55 से अधिक दीक्षा गुरु सहित मुनिराजों आर्यिका माताजी सहित साधुओ श्रावक श्राविकाओं की उत्कृष्ट समाधियां कराई है चाहे क्षपक साधु T B क्षय रोग या कैंसर या अन्य असाध्य रोग का मरीज हो पूर्ण मनोयोग समर्पण भाव से उनकी समाधियां करवाई है यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अच्छी उत्कृष्ट समाधि होने पर भव्य जीव अगले 2 भव से 8 भव में सिद्ध शीला पर विराजित होता है किसी साधु की समाधि सल्लेखना देखना भी तीर्थ यात्राओं से कई गुणा पूण्य दायीं है

आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी क्षपक मुनिराज को आत्म तत्व का संबोधन देकर उन्हें आत्मा से परमात्मा की और अग्रसर करने का सम्यक पुरुषार्थ करते हुए।
धन्य है ऐसे क्षपक मुनिराज और उनके गुरु ,सौभग्यशाली है हम सभी जो इस पंचम काल में सम्यक समाधि देखने का सौभाग्य प्राप्त कर पा रहे है।

राजेश पंचोलिया इंदौर