सभी जैनियों के लिये एक ढाल का काम कर सके “राष्ट्रीय जैन बोर्ड” , सिर्फ़ सोचना ही नहीं करके दिखाना है

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जब कभी कोई जैनी आधुनिक social मिडिया के युग में, जैनियों की लड़ाई लड़ते हुए किसी मुसीबत में फँस जाता है, किसी कानूनी पचड़े में फँस जाता है या अधर्मियों के हाथों शिकार हो जाता है तो वह सहायता के लिये किसे पुकारे? क्या कोई ऐसी संस्था है या कोई हेल्पलाइन है जिसे वह अपनी रक्षा के लिये गुहार लगाये, या फिर वह अनूप मण्डल के लोगों के अत्याचारों की तरह चुपचाप मरता कटता रहे!

आज़ हर जैन मीडिया पर jainism की पोस्ट डालते हुए कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना रखता है, कहीं वह या उसका परिवार किसी भयंकर आपदा में फँस गया तो कौन सहायता करेगा? अपने अपने स्तर पर सभी लोग धर्म के युद्ध में अकेले लड़ाई लड़ रहें हैं,
क्या उनकी सुरक्षा की गारंटी कोई state गवर्नमेंट या सेंट्रल गवर्नमेंट लेती है?

जबकि दूसरे धर्मों में उनका “ईसाई मिशनरी, वक्फ बोर्ड अथवा गुरुद्वारा कमेटी” अपने समुदायो के लोगों के लिये संगठित होकर आगे आते हैं और ऐसा आन्दोलन छेड़ते हैं कि प्रसाशन एवं मिडिया के कान के परदे तक हिल जायें, उदाहरण के लिये देश भर में प्रतिदिन सैकड़ों लड़कियों को जिहादियों द्वारा उठा लिया जाता हैं, उनका बलात्कार किया जाता हैं, उनका धर्म परिवर्तन किया जाता है और हम social मिडिया पर कुछेक पोस्ट डालकर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं और भूल जाते हैं,
मगर पंजाब में 2 सिख लड़कियों के मामले को लीजिये, देशभर के सभी सिक्खों ने एकत्र होकर एक ऐसा आन्दोलन छेड़ दिया कि जिहादियों द्वारा उन लड़कियों को छोड़ना पड़ा जबकि निकाह भी हो गया था, जिहादी न तो कोर्ट का सहारा ले पाये और न थाने पुलिस का

जानते हो ऐसा कैसे संभव हो सका, कैसे सारे सिख एक साथ एक मंच पर अपने सभी काम धंधों को छोड़कर एक हो गये
क्योंकि सभी सिक्खों को एकत्र करने और संचालन करने वाली उनकी “गुरुद्वारा कमेटी” है, जिसका चुनाव स्वयं सिक्ख समुदाय अपने वोट देकर करता है, उसी प्रकार जिहादिओं का बचाव उनका “मुस्लिम वक्फ बोर्ड” करता है, यहाँ तक कि उनके दोषी होने पर भी उनका साथ देता है, उसी तरह ईसाई पादरियों पर बलात्कार का चार्ज तक होने पर भी उन्हें उनकी ईसाई मिशनरी बचा ले जाती है!

और दूसरी तरफ हम बेचारे जैन
क्या जैनियों में इतना विवेक नहीं है कि वो भी अपने लिये एक “राष्ट्रीय जैन बोर्ड” जैसी संस्था का गठन कर सके, जो सभी जैनियों के लिये एक ढाल का काम कर सके, उन्हें जिहादियों, प्रशासन और दूसरी बाह्य शक्तियों से लड़ने की शक्ति दें सके

बिलकुल बना सकते हैं, किन्तु समस्या यह है कि हममें से कुछ बुद्धिजीवी जिन्हें हम अपना मार्गदर्शक समझने लगते हैं, वे लोग किसी न किसी राजनैतिक हित से जुड़े होते हैं, फलस्वरूप वे न तो इस विषय में खुद कुछ सोचते हैं और न किसी और के विचारों को सुनने की क्षमता रखते हैं, उन्हें ऐसा लगता हैं कि इस तरह किसी और कि बातें सुनने और मानने लगे तो उनकी क्या हैसियत रह जायेगी

अब सोचना किसको है, सोचना हमें और आपको है, सिर्फ़ सोचना ही नहीं करके दिखाना है
तो आइये एक साथ आगे बढिये और अपने लिये “राष्ट्रीय जैन बोर्ड” बनाने की मांग कीजिए जिसके मेंबर्स का चुनाव प्रत्येक 2 वर्षों के लिये प्रत्येक साधारण जैन जो 18+ का हो अपने वोट डालकर करें!

इस बोर्ड के गठन के लिये प्रधानमंत्री द्वारा किसी अध्यादेश लाने की आवश्यकता नहीं होगी, और न संसद के किसी सदन में कोई बिल पारित करना होगा, बल्कि प्रधानमंत्री महोदय अपने सरकारी गजट में इसे छपवा देंगे और हो गया काम

किन्तु प्रधानमंत्री इसे करेंगे तभी जब देश के करीब 60 लाख जैन अपने पत्र द्वारा उन्हें ऐसा करने के लिये बाध्य करें
यदि एक बार यह लागू हो गया तो देश के सभी प्रमुख मंदिरों की धन-संपत्तियों और करोड़ों अरबों रूपए के चंदे से सरकार का अधिपत्य हट कर जैन -बोर्ड के हाथों में आ जायें, जिसे वे अपने धर्म के लोगों की भलाई के लिये खर्च कर सकेंगे, नाकि किसी जिहादी समुदायो को फ्री की सब्सिडी और उनके मौलवीओ की तनख्वाह पर खर्च करेंगे!

इससे समस्त जैन समाज एक सूत्र में बंध जायेगा और अन्य सम्प्र्दायों की तरह जाति पाती को भुलाकर स्वयं को सिर्फ़ जैन कहलाना पसंद करेगा!
जैन एक सशक्त वोट बैंक होगा, उसे अपने हित के लिये किसी राजनैतिक दल पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, बल्कि सभी राजनैतिक दल कोट पर नवकार मंत्र का बिल्ला डालें के तलवे चाटते नज़र आयेंगे

– अजित कोठारी