विश्व के आश्चर्यों में से एक-रणकपुर मंदिर में 76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, 1,444 खंभे , सभी अनोखे और अलग-अलग कलाकृतियों से निर्मित,

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रणकपुर का निर्माण कैसे हुआ- इस मंदिर का निर्माण 4 श्रद्धालुओं- आचार्य श्यामसुंदरजी, धरन शाह, कुंभा राणा तथा देपा ने कराया था। आचार्य सोमसुंदर एक धार्मिक नेता थे जबकि कुंभा राणा मलगढ़ के राजा तथा धरन शाह उनके मंत्री थे। धरन शाह ने धार्मिक प्रवृत्तियों से प्रेरित होकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया था।

कहा जाता है कि एक रात उन्हें स्वप्न में ‘नलिनीगुल्मा विमान’ के दर्शन हुए, जो पवित्र विमानों में सर्वाधिक सुंदर माना जाता है। इसी विमान की तर्ज पर धरन शाह ने मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। मंदिर निर्माण के लिए धरन शाह ने कई वास्तुकारों को आमंत्रित किया। इनके द्वारा प्रस्तुत कोई भी योजना उन्हें पसंद नहीं आई। अंततः मुंदारा से आए एक साधारण से वास्तुकार दीपक की योजना से वे संतुष्ट हो गए।

मंदिर निर्माण के लिए धरन शाह को मलगढ़ नरेश कुंभा राणा ने जमीन दी। उन्होंने मंदिर के समीप एक नगर बसाने का भी सुझाव दिया। मंदिर के समीप मदगी नामक गांव को इसके लिए चुना गया तथा मंदिर एवं नगर का निर्माण साथ ही प्रारंभ हुआ। राजा कुंभा राणा के नाम पर इसे ‘रणपुर’ कहा गया, जो बाद में ‘रणकपुर’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज का रणकपुर पुरानी विरासत और इसे सहेजकर रखने वालों के बारे में भी संदेश देता है जिनके कारण रणकपुर मात्र एक विचार से वास्तविकता में बदल सका

इसके अलावा मंदिर में 76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थान, 4 बड़े प्रार्थना कक्ष तथा 4 बड़े पूजन स्थल हैं। ये मनुष्य को जीवन-मृत्यु की 84 योनियों से मुक्ति प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।

इस मंदिर की प्रमुख विशेषता इसके सैकड़ों खंभे हैं जिनकी संख्या करीब 1,444 है। यहां आप जिस तरफ भी नजर घुमाएंगे आपको छोटे-बड़े आकारों के खंभे दिखाई देते हैं, परंतु ये खंभे इस प्रकार बनाए गए हैं कि कहीं से भी देखने पर मुख्य पवित्र स्थल के ‘दर्शन’ में बाधा नहीं पहुंचती है। इन खंभों पर अतिसुंदर नक्काशी की गई है। इन खंभों की खास विशेषता यह है कि ये सभी अनोखे और अलग-अलग कलाकृतियों से निर्मित हैं। मंदिर की छत पर की गई नक्काशी इसकी उत्कृष्टता का प्रतीक है।

मंदिर के निर्माताओं ने जहां कलात्मक दोमंजिला भवन का निर्माण किया है, वहीं भविष्य में किसी संकट का अनुमान लगाते हुए कई तहखाने भी बनाए गए हैं। इन तहखानों में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। ये तहखाने मंदिर के निर्माताओं की निर्माण संबंधी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं।

विक्रम संवत 1953 में इस मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी एक ट्रस्ट को दे दी गई थी। उसने मंदिर के पुनरुद्धार कार्य को कुशलतापूर्वक कर इसे एक नया रूप दिया। पत्थरों पर की गई नक्काशी इतनी भव्य है कि कई विख्यात शिल्पकार इसे विश्व के आश्चर्यों में से एक बताते हैं। हर वर्ष हजारों कलाप्रेमी इस मंदिर को देखने आते हैं। इसके अलावा यहां संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्न भी हैं। ये भगवान ऋषभदेव तथा शत्रुंजय की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।

कैसे पहुंचें :-
सड़क मार्ग- उदयपुर देश के प्रमुख शहरों से सड़कों के जरिए जुड़ा हुआ है। उदयपुर से यहां के लिए प्राइवेट बसें तथा टैक्सियां उपलब्ध रहती हैं। आप यहां अपने निजी वाहन से भी जा सकते हैं।

रेलवे- यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्‍टेशन उदयपुर ही है, साथ ही रणकपुर के लिए सभी प्रमुख शहरों से रेलगाड़‍ियां उपलब्‍ध हैं।

वायु मार्ग- रणकपुर पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर है। दिल्‍ली, मुंबई से यहां के लिए नियमित उड़ानें हैं।