28 दिसंबर 2024/ पौष कृष्ण त्रयोदशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
न जैन समाज में तूफान उठा, न कोई भूकंप महसूस किया गया, जबकि एक साधु जैन समाज पर ऐसे विवादित बोल बोलते हैं, जिसमें सिर्फ झूठ ही झूठ है। अरूण पंडित के शो में स्वामी रामभद्राचार्य के ये शब्द आज भी आखों में खून उतार देते हैं, गुप्त काल में हमारा देश कितना विशाल था कि इसके बाद विधर्मियों के आक्रमण हुए बौद्धो के, जैनों के, खिलजियों के, मुसलमानों के, अग्रेजों के….
इस कलम की स्याही को मैं बौद्धों का नाम लेकर जैनों के लिये ही खर्च करूंगा। क्या सोच कर पदम विभूषण से सम्मानित एक साधु ने कहने की कोशिश की? साधु के मुख से निकले शब्दों से उसकी साधुता की पहचान होती है। अपने शब्दों को कलम से पिरोने से पहले आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी द्वारा विधर्मी की बताई परिभाषा से अवगत कराना चाहूंगा।
‘विधर्मी वो होते हैं, जो जीवों की हत्या करते हैं। विधर्मी वो होते हैं, जो देश का नाश करते हैं, जो संस्कृतियों का नाश करते हैं। विधर्मी वो होते हैं, जो दूसरों के तीर्थ, भूमि, क्षेत्रों पर धर्म धर्मायतनों पर, अतिक्रमण करते हैं। धर्मात्मा वो होते हैं, जो सारे विश्व को मैत्री भाव से देखते हैं। इसलिए जैन दर्शन ने एक इन्द्रिय से लेकर पंच इन्द्रिय जीवों की रक्षा की बात करते हंै। और पूरे विश्व में मैत्री का कोई सूत्र सिखाने वाला है, उसका नाम जैन धर्म है। जब-जब देश पर किसी प्रकार के उपसर्ग आये हैं, तो जैन समाज आगे खड़ी हुई थी।
शायद छोटे में बहुत कुछ समझा दिया आचार्य श्री ने, स्वामी जी आपको भी। वैसे भी आपको 22 भाषाओं का ज्ञाता कहा जाता है, 200 से ज्यादा ग्रंथों का लेखक कहा जाता है।
छठी सदी में समाप्त हुए गुप्त काल के बाद बर्बादी की कथा 8वीं सदी से शुरु हुई थी। इतिहास से अनभिज्ञ तो नहीं होंगे आप। मद्रास से मदुरै के बीच एक ही रात में 8000 जैन साधुओं का कत्ल कर दिया गया, योनि के रास्ते से सूली आर-पार कर दी गई थी। आज भी वो सूलियां कई मन्दिरों में हैं और पूजी जाती हैं। चैत्र माह में जश्न होता है। 50 हजार जैन श्रावकों के साथ भी यही हुआ। वो प्रताड़ना का रूप कौन से धर्म का, कौन से शास्त्र का पृष्ठ था। धर्म के विपरीत वह होता है।
चारों दिशाओं में कौन से तीर्थ नहीं बदले गये। आज भी वो पाषाण बोलते हैं, भगवान का रूप बदल सकते हो, पर स्वरूप नहीं बदला जा सकता। 8वीं सदी से 21वीं सदी तक जैन मंदिरों का बदलना जारी है, तीन लकीर खींची, सिंदूर, माला और कपड़ा लिपटा, इससे रूप बदल सकते हो, पर भगवान शिव कहो या शंकर, वो भी इस तरह के कुचक्र से कभी प्रसन्न नहीं होंगे, आशीर्वाद देना तो बहुत दूर की बात है। सक्षम होने के बाद असक्षता की बातें, शायद ये कुत्सित षडयंत्र है विधर्मी की पहचान बताने वाले।
अकबर के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले महाराणा प्रताप के पास जब सेना को देने के लिये वेतन तो दूर, खाने को रोटी के लिए भी पैसे नहीं थे, तब जिसने अपना खजाना खोला, वो और कोई जैन ही थे भामाशाह। गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्रों के लिये जिसने सोने के सिक्के खड़े करके मुगल सल्तनत का मुख बंद किया, वो भी एक जैन टोडरमल ही थे।
जिसे अयोध्या में राम मंदिर के प्रमाण के लिये राम भद्राचार्य जी आपको महत्वपूर्ण गवाही हुई थी, उसके लिये सबसे पहले बलिदान देने वाले भाई कोठारी भी जैन ही थे। और जिस पिता-पुत्र ने मुकदमा जिताया वो भी जैन थे।
भारत की आजादी के लिये बलिदान देने वालों में भगत सिंह, चंद्रशेखर आपको याद होगें, पर स्वतत्रता संग्राम में सबसे पहली आहुति 1857 में देने वाले जैन ही थे हुकुमचंद जैन।
और यह भी बता दें, कि दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने भी कहा था ‘मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं अथवा आश्चर्य नहीं है कि जैन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। जैन धर्म का अस्तित्व तब से है जबकि वेदों की रचना भी नहीं हुई थी।’ शायद यह आपके ज्ञान में ही होगा।
आपने तो रंग भी खूब बदला स्वामी जी। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के सामने कहा था कि मेरे सामने दो लोग हों, भगवान राम और भारत माता, तो मीदी जी, पहले मैं भारत माता को प्रणाम करूंगा, फिर भगवान राम जी को, तीन भरतों में ऋषभपुत्र भरत……..
अरुण पंडित शो में फिर अब कह दिया कि धर्म बड़ा है, धर्म श्रेष्ठ ही चलेगा। देश तो बनते बिगड़ते रहते हैं, पर धर्म सनातन है।
अब उसी चक्रवर्ती भरत के नाम पर पड़े भारत को छोटा कर दिया, भारत माता छोटी कर दी। कभी हिंदूओं का अंग बोलते, कभी विधर्मी। अफसोस तो यह है इसका विरोध जैन समाज के शीर्ष नेताओं ने किसी बड़े मंच पर नहीं उठाया। चैनल महालक्ष्मी व सांध्य महालक्ष्मी को यह सुनकर जो पीड़ा हुई, उसी कारण यह कलम आज इस तरफ मुड़ गई।
सनातन यानि अति प्राचीन अगर वैदिक धर्म है, तो श्रमण धर्म तो इससे भी प्राचीन है अनादि निधन है। पर आज हर कोई पत्थर फेंकने में, अपशब्द कहने में, छीना-छपटी करने में देर नहीं लगातें और जैन समाज जैसेआंख-कान बंद रखकर बिल्ली के सामने कबूतरी प्रवृत्ति में रह जाता है। क्या यही अंहिसा है? क्या यही आदिनाथ भगवान का क्षत्रिय धर्म है, क्या यही है असि-मसि का उपदेश?
इसकी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के 3061 एपिसोड में देख सकते हैं।