#कुतुबमीनार का अब हो रहा निरीक्षण, एक माह में पता चल जाएगा की यह कुतुब मीनार है या मंदिरों का समूह यहां से मिटाया गया

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22 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने निर्देश दे दिए हैं कि कुतुब मीनार पर, जो विवाद सामने आ रहा है , उसकी जांच के लिए ऐतिहासिक परिसर की खुदाई की जाए और कुतुब मीनार परिसर में मूर्तियों की आइकोनोग्राफी की जाए। इसके लिए शनिवार को खुदाई के निर्णय से पहले, संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने 12 लोगों की टीम के साथ निरीक्षण किया। इस टीम में तीन इतिहासकार, 4 एसआई के अधिकारी और एक रिसर्च मौजूद थे। जैसा सभी जानते हैं और वहां पर शिलालेख भी लगा है की यह कुतुब मीनार परिसर 27 जैन हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाया गया , जिनमें से अधिकांश जैन मंदिर ही थे ।पर केंद्र के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बनाई गई 12 की टीम में जैनों का ना जोड़ना , यह सचमुच जैन समाज के प्रति एक अन्याय होगा। जब वहां पर जैनों के इतिहास की जानकारी ढूंढनी है , तो उसमें अधिकांश जैन इतिहासकारों व जानकारों का जोड़ना ही सही रूप से जांच को दिशा दे सकता है। आपको यहां बता दें कि पिछले 30 साल से यानी 1991 के बाद कुतुब मीनार में यहां कभी खुदाई का काम नहीं हुआ है। चैनल महालक्ष्मी इस पर एक पूरी रिपोर्ट आपको अपने सोमवार, 23 मई 2022 रात्रि 8:00 बजे के एपिसोड में बताएगा कि सरकार का कदम कितना सही, कितना अधूरा।

12वीं 13वीं सदी में यानी कुतुबुद्दीन ऐबक से पूर्व, हरियाणा के जैन कवि बुध श्रीधर यहां अपने घुमक्कड़ प्रकृति के कारण, आए थे। तब दिल्ली को ढिल्ली कहा जाता था । उन्हें नत्थल साहू ने बताया कि मैंने यहां विशाल नाभेय यानी आदिनाथ जी का मंदिर बनवा कर, शिखर के ऊपर पंचरंगी झंडा भी फहराया है। उन्होंने तीर्थंकर चंद्रप्रभु स्वामी जी की मूर्ति भी स्थापना करवाई थी । प्रोफेसर राजाराम जैन जी ने लिखा है कि गगनचुंबी सालू यानी कीर्ति स्तंभ है। नत्थल साहू ने इस मंदिर को शास्त्रोक्त विधि से निर्मित करवाया था और सभी जानते हैं कि जैन मंदिर वास्तुकला में मान स्तंभ मंदिर के द्वार पर अनिवार्य रूप से बनाया जाता है। तो कुतुबमीनार ही अनंगपाल तोमर द्वारा निर्मित कीर्ति स्तंभ है, जो कुतुबुद्दीन ऐबक से कम से कम 500 साल पहले भी विद्यमान थी।

दिल्ली सात बार बसी और उजड़ी और उसके पहले क्रम में दिल्ली को राजा अनंगपाल ने बसाया था और तब यहां पर जैन मंदिरों के बारे में हरियाणा के जैन कवि ने विशेष उल्लेख किया था । उनके द्वारा बनाए गए सरोवर अनंगताल के अवशेषों के आसपास भी खुदाई की जाएगी और साथ ही उसी दौर के दिल्ली की कहानी कह रहे , लालकोट के अवशेषों के आसपास और नीचे भी खुदाई कर , इतिहास को जानने की कोशिश की जाएगी। इस प्रकार यह खुदाई , तीन जगह करी जाने की संभावना है। अब आपको सबसे पहले आइकोनोग्राफी के बारे में बता दें। इसका मतलब है प्रतिमा का विज्ञान, यानी वहां कोई महावीर स्वामी की मूर्ति दिखती है , तो उनके बैठने , पद्मासन मुद्रा, नेत्रों की, पैरों की कैसी है पहचान , क्या उस पर कोई वस्त्र है , इस तरीके से उनकी मूर्ति को पहचाना जाता है ।

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पर सवाल यह उठता है कि यह महावीर स्वामी की मूर्ति किस शैली से बनी है और किस काल में बनी है , यह महत्वपूर्ण होता है । शैली का निर्धारण मूर्ति के भाव भगनी से करते हैं, मूर्ति में भाव भगनी पर ज्यादा जोर दिया जाता है । उनकी मुस्कुराहट, शारीरिक सौंदर्य , बनावट किस शैली की है। इससे पहचान की जाती है , क्योंकि हर तरह की कारीगरी एक विशेष समय में की गई है और उसी से मूर्ति के समय काल का पता चल पाता है। अगर पुराने स्टेटस की बात करें , तो दीवारों पर इंग्रेविंग होती है, वह खास तरह की होती है , जैसे कहीं पर स्वास्तिक निशान बना है, तो वह किस प्रतिमा का प्रतीक है , किस रूप में बना है । उसके आसपास किस तरह की कारीगरी है । उसका आकार, कार्विंग, कला, शैली, टाइम पीरियड को बता देती है।

आइकोनोग्राफी में सबसे बड़ी दिक्कत आती है, जो मूर्तियां खंडित होती हैं और इस कुतुब मीनार के केस में अधिकांश मूर्तियां खंडित है, जैसे महावीर स्वामी की प्रतिमा में सर को नष्ट कर दिया गया, अब उसकी मुद्रा को पहचाना कैसे जाए कि वह किसकी है , या नीचे के पैर की मुद्रा को हटा दिया है , नष्ट कर दिया है, तो वह किस भगवान की मूर्ति है । यह पहचानना थोड़ा मुश्किल हो जाता है और इसकी पहचान में काफी समय लग जाता है।
Window arch of the ornate tomb in archeaological complex Quitab Minar in Delhi, India

अब यहां पर इन खंडित मूर्तियों के पहचान के लिए लगभग एक माह से ज्यादा समय लग सकता है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अभी हाल में जारी रिपोर्ट के आधार पर संस्कृति मंत्रालय ने यह निर्देश दिए हैं कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुवत उल इस्लाम मस्जिद में मौजूद खंडित की गई मूर्तियों की , आइकोनोग्राफी तकनीक से जांच और परीक्षण कराया जाए ।

अगर सूत्रों की माने तो कुतुब मीनार के दक्षिणी भाग में कुवत उल मस्जिद से 15 से 20 मीटर दूरी पर जियोलॉजिकल तकनीक जांच के बाद जून के महीने में खुदाई शुरू हो सकती है और मानसून के आने से पहले पूरी करने का की सलाह दी गई है । किसी भी जैन कमेटी या संस्थान ने अभी तक संस्कृति मंत्रालय या पुरातत्व विभाग से यह अनुरोध नहीं किया कि क्योंकि यहां पर अधिकांश जैन मंदिर थे, इसलिए जैन विशेषज्ञों का सहयोग अवश्य लिया जाना चाहिए , क्योंकि वह उसकी शिल्प शैली के बारे में ज्यादा गंभीरता से ज्ञान रखते हैं पर ऐसा ना होना , कहीं ना कहीं जैन इतिहास को गौण कर सकता है और ऐसा अयोध्या आदि विभिन्न जगहों की खुदाई में पहले भी देखा जा चुका है। क्यों नहीं जागती, हमारी कमेटियां कि वह उचित समय पर, उचित आवाज, उचित जगह पर पहुंचा सकें।

उधर , ऐतिहासिक इमारत कुतुब मीनार के परिसर में खुदाई की खबरों के बीच केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी के रेड्डी का बयान आया है. उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स का खंडन किया है.संस्कृति मंत्री ने कहा कि कुतुब मीनार परिसर में खुदाई का कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है. बता दें कि इससे पहले रिपोर्ट्स आई थी कि कुतुब मीनार परिसर में बहुत जल्द खुदाई शुरू होगी . संस्कृति मंत्रालय ने कुतुब मीनार में मूर्तियों की Iconography कराए जाने के निर्देश दिए हैं.