The untold TRUTH -27 मंदिरों को तोड़कर बनी कुतुबमीनार का असली सच -5 बड़े कारण कि वह तो कुतुब मीनार है ही नहीं

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15मई 2022/ बैसाख शुक्ल चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
अयोध्या के श्रीराम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद, इस समय काशी मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की चर्चा सब और है और इस कड़ी में 17 मई को सुनवाई होनी है कि यह कुतुब मीनार है या फिर कुछ और ।

इसी पर, आपको चिंतन के लिए आज चैनल महालक्ष्मी बताना चाहते हैं, क्योंकि सरकार भी मानती है कि यह मीनार परिसर 27 जैन हिंदू मंदिर को तोड़ कर , उनकी वस्तुओं से बनाया गया है। इस पर प्रश्न लगाने के कई कारण हैं।

हमारे सामने पहला कारण, जब कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली में रहता ही नहीं था , तो वह इस कुतुब मीनार को दिल्ली में क्यों बना रहा था । आपको बता दे कि कुतुबद्दीन ऐबक का घर, दिल्ली से 375 किलोमीटर दूर, लाहौर में था। तो उसने अपने महल के पास, यह मीनार बनवाने की बजाए, 73 मीटर ऊंची, दिल्ली में क्यों बनवाई।

दूसरा कारण , इसकी वास्त कला, जो कहीं से भी इस्लामिक नहीं है। जहां भी दिखती है , वास्तव में वह ऊपर से जोड़ी गई है । यहां 1981 में 4 दिसंबर को बिजली चली जाने से मीनार के अंदर भगदड़ मच गई।

Window arch of the ornate tomb in archeaological complex Quitab Minar in Delhi, India

घबराहट में लोग उतरे , जिसमें जिसमें अनेक छात्र दबकर , बुरी तरह कुचले गए। तब वहां पर बनी कई सेंड स्टोन की प्लास्टर की जगह झड़ गई और सूत्र कहते हैं तब कुछ तीर्थंकर प्रतिमाएं जो दबी हुई थी, वहां से निकली , जिससे लगता है कि इस मीनार के अंदर कई तीर्थंकर प्रतिमायें जो मूल रूप में थी, उसमें अभी भी दबी हुई है।

तीसरा बड़ा कारण यह कि इस्लाम में घंटियों को शैतानी माना जाता है। कहा जाता है खुद शैतान का यह वाद्य यंत्र है। इसलिए आज भी मुस्लिम लोग मंदिर की घंटियों की आवाज से थोड़ा चीढ़ते हैं। पर यहां घंटियों के मीनार में आज भी अनेक सबूत दिखते हैं।
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चौथा बड़ा कारण, आज भी अगर कुतुब मीनार परिसर में ध्यान से देखें, तो जगह-जगह आपको तीर्थंकर प्रतिमाएं, देवियां ,अंबिका देवी, पद्मावती देवी और जैन चिन्ह आसानी से नजर आ जाएंगे । कई जगह , आपको क्षतिग्रस्त करने की बर्बरता भी स्पष्ट नजर आएगी।
Decorative window at Qutub Minar complex, Delhi, India

पांचवा बड़ा कारण, यहां पर कई वेदी स्थानों को पत्थरों से बंद भी किया गया है , जो आज भी देखे जा सकते हैं, जैसे वहां से प्रतिमा को हटा दिया गया और उस वेदी स्थल को बंद कर दिया गया। इसके कुछ नमूने आज भी आसानी से देखी जा सकते हैं।
Decorative window at Qutub Minar complex, Delhi, India

दो सरकारी प्रमाण भी स्पष्ट दिखते हैं। पहला कुव्वत-उल- इस्लाम मस्जिद के बाहर लगा यह शिलालेख, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि इसके लिए सामग्री 27 हिंदू जैन मंदिरों को तोड़कर बनी। दूसरा सरकारी सबूत, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण द्वारा 1992 93 में यह एक तीर्थंकर खड़गासन प्रतिमा के पैर व चरण जारी किए गए। जो कहा गया कि यह पक्की मिट्टी से बने हैं।

डॉ अनेकांत जैन ने इसी प्राधिकरण में एक गोष्ठी के लिए, एक शोध पत्र लिखा ,जिसमें उन्होंने कई प्रमाण प्रस्तुत किए हैं । उनके अनुसार 12वीं 13वीं सदी में यानी कुतुबुद्दीन ऐबक से पूर्व, हरियाणा के जैन कवि बुध श्रीधर यहां अपने घुमक्कड़ प्रकृति के कारण, आए थे। तब दिल्ली को ढिल्ली कहा जाता था । उन्हें नत्थल साहू ने बताया कि मैंने यहां विशाल नाभेय यानी आदिनाथ जी का मंदिर बनवा कर, शिखर के ऊपर पंचरंगी झंडा भी फहराया है। उन्होंने तीर्थंकर चंद्रप्रभु स्वामी जी की मूर्ति भी स्थापना करवाई थी । प्रोफेसर राजाराम जैन जी ने लिखा है कि गगनचुंबी सालू यानी कीर्ति स्तंभ है। नत्थल साहू ने इस मंदिर को शास्त्रोक्त विधि से निर्मित करवाया था और सभी जानते हैं कि जैन मंदिर वास्तुकला में मान स्तंभ मंदिर के द्वार पर अनिवार्य रूप से बनाया जाता है। तो कुतुबमीनार ही अनंगपाल तोमर द्वारा निर्मित कीर्ति स्तंभ है, जो कुतुबुद्दीन ऐबक से कम से कम 500 साल पहले भी विद्यमान थी।

चैनल महालक्ष्मी ने इस पर, मौके पर जांच भी की और यह उसने अपनी जांच के अनुसार रिपोर्ट तैयार की है , जिससे इस बात की गुंजाइश बनती है कि ज्ञानवापी मस्जिद की तरह, यहां भी एक बार पूरी जांच होनी चाहिए और फिर एक निष्पक्ष राय के साथ , यहां का सही इतिहास दर्ज करना चाहिए, क्योंकि इस समय जो इतिहास दिखाया जा रहा है , वह बहुत भ्रामक और गलत प्रतीत होता है । इस बारे में चैनल महालक्ष्मी ने एक एपिसोड भी जारी किया है, जिसको आप देख सकते हैं।

आप इस बारे में और भी, जो भी जांच या टिप्पणी देना चाहे , तो हमें ईमेल info@channelmahalaxmi.com पर अपडेट कर सकते हैं। उद्देश्य सिर्फ यही कि इतिहास को सही रूप से दिखाया जाए । जैन संस्कृति ,अगर कहीं थी, उसको सही रूप में उजागर किया जाए।
-चिंतन व् लेखांकन : शरद जैन, चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
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