पुष्पगिरि तीर्थ पर विशेष संयोग… मुनिश्री प्रज्ञासागरजी व अरुणसागरजी ने एक ही दिन धारण किया था ब्रह्मचर्य व्रत, मुनि और अब आचार्य भी एक साथ बने

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मुझ से किसी ने पूछा आचार्य गुरुदेव आप संघ में सब साधु डबल हैं पर आप सिंगल एक क्यों हो। मैंने कहा बीज पतला अाैर फल हमेशा मोटा ही होता है। आज इन फलों से अाने वाले समय में फिर बीज उत्पन्न होंगे। आज मैंने जो दिया है आने वाले समय में ये आपको देंगे।

यह बात पुष्पगिरि तीर्थ के प्रणेता गणाचार्य पुष्पदंतसागरजी महाराज ने अपने शिष्य आचार्य प्रणामसागरजी, आचार्य धर्मभूषणजी, मुनि प्रज्ञासागरजी, सौरभसागरजी, अरुणसागरजी, प्रतीकसागरजी, प्रगल्पसागरजी व क्षुल्लक पर्वसागरजी के साथ रविवार काे आचार्य पदारोहण, संस्कार विधि महोत्सव व क्षुल्लक दीक्षा समारोह में उपस्थित भक्तों से कही। उन्होंने कहा कि जीवन को पतन की ओर जाने से रोकने के लिए मन से जन्मी इच्छाअाें को समाप्त करना ही सम्यक साधना, वास्तविक संयम व पवित्र संयम है। मैं आज इस भरी सभा में प्रशासन, विद्वानों, पंडितों, समाज, भक्त व संघ के सभी व्रतियों की आज्ञा लेकर अपने दो और पुत्रों को आचार्य पद देना चाहता हूं।

वाह गुरुदेव क्या ताेहफा दिया, मुनि से मुझे आज आचार्य बना दिया : प्रज्ञासागरजी
संस्कार महोत्सव को शुरू कर आचार्य पुष्पदंतसागरजी महाराज ने चौकपुराव की मांगलिक क्रियाएं करवाई। मुनिश्री प्रज्ञासागरजी व अरुणसागरजी को चौकी पर बैठाकर गणाचार्य ने मंत्रोच्चार के साथ अपने शिष्यों के आचार्य पद के संस्कार करवाते हुए भरी सभा में उन्हें आचार्य की पदवी से विभूषित किया। इसके बाद पूरा पंडाल आचार्य बने मुनियों की जय-जयकार से गूंज उठा। सभी मुनियों को नई लकड़ी की चौकियों पर बैठाकर पिच्छी कमंडल सौंपकर आचार्य पद आसान ग्रहण करवाया।

मुनिश्री प्रज्ञासागरजी ने अपने आचार्य पद लेने के बाद गुरु चरणों में अपना मस्तक रख अपने अंदाज में कहा कि बुझा दिया जला दिया, दूर था बहुत अपने पास बुला लिया। वाह पुष्पदंतसागरजी गुरुदेव क्या तोहफा दिया। मुनि से मुझे आज आचार्य बना दिया। वहीं मुनिश्री अरुणसागरजी ने कहा कि आपने जो हमारे अंदर संस्कार का बीज बोया है। धर्म मार्ग पर चलते हुए हम उन संस्कारों को अाैर ऊर्जा प्रदान करेंगे।

तीर्थ पर दिखा विशेष संयोग… दोनों ने एक ही दिन धारण किया था ब्रह्मचर्य व्रत, मुनि-आचार्य भी एक साथ बने
तीर्थ पर आज एक विशेष संयोग देखने को मिला। अरुणसागरजी व प्रज्ञासागरजी ने गृहस्थ जीवन त्याग कर एक साथ ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था। इतना ही नहीं पुष्पदंतसागरजी ने दोनों काे एक साथ 18 अप्रैल 1989 में प्रतापपुर में मुनि दीक्षा दी थी। वहीं रविवार को पुष्पगिरि तीर्थ पर दोनों ही मुनियाें को एक साथ आचार्य की भी दीक्षा दी गई।

आचार्य संघ काे बैंडबाजाें व धर्म-ध्वजा के साथ लाए कार्यक्रम स्थल
क्षुल्लक दीक्षा के पूर्व गणाचार्य ने कहा कि देखो मेरी गोदी में खेलने वाला बच्चा आज मेरे से संस्कार करा रहा है। गणाचार्य ने संघस्थ आचार्य प्रज्ञासागरजी व आचार्य प्रणामसागरजी के साथ ब्रह्मचारी संजीव भैया के क्षुल्लक दीक्षा के संस्कार किए। ब्रह्मचारी भैया का क्षुल्लक दीक्षा का नाम प्रमयसागरजी महाराज घोषित किया। कार्यक्रम से पूर्व सुबह भगवान के कलशाभिषेक, शांतिधारा के बाद बैंडबाजों व धर्म-ध्वजा के साथ आचार्य संघ को कार्यक्रम स्थल लाया गया। जानकारी प्रवक्ता रोमिल जैन ने दी।
– भास्कर से साभार
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