संत जब साधना करते हैं, तब वह आज से संत भगवंत से बंध जाते हैं और अरिहंत पद को प्राप्त किया करते हैं : गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी

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अहिंसा दया करुणा का ही नाम वर्षा योग है -मुनि सौरभ सागर
सान्ध्य महालक्ष्मी / 30 जुलाई 2021

पुष्पगिरि तीर्थ (सोनकच्छ)। गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज का 42वां वर्षायोग एवं संस्था प्रणिता मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज का 27वां वर्षायोग की स्थापना 23 जुलाई 2021 को संपन्न हुई। आर्यिका पूर्ण श्री माताजी, आर्यिका पवित्र श्री माताजी एवं क्षुल्लक श्री पर्व सागर जी महाराज जी के वर्षायोग की भी स्थापना हुई।

सर्व प्रथम स्थापना विधि, प्रात: कालीन मंगल आराधना के पश्चात् अभिषेक-शांतिधारा की गई। प्रथम अभिषेक करने का सौभाग्य रमेश जैन, दिल्ली तथा शांतिधारा का सौभाग्य नरेश जैन अमित जैन महिपालपुर, दिल्ली को प्राप्त हुआ। मंगलाचरण श्रीमती रेनू जैन, दिल्ली तथा चित्र अनावरण और दीप प्रज्ज्वलन उपस्थित गुरु भक्तों ने किया।
इस वर्ष पुष्पगिरी पर वर्षयोग के अंतर्गत तीन मुख्य मंगल कलश एवं 27 मंगल कलश की स्थापना की गई, जिसमें प्रथम मुख्य मंगल कलश प्राप्त करने का सौभाग्य अनन्य गुरु भक्त अशोक जैन सीए (गाजियाबाद) परिवार, द्वितीय कलश सुनील जैन, गौरव जैन, शुभम जैन रामनगर दिल्ली, तृतीय कलश नरेश जैन- अमित जैन महिपालपुर, दिल्ली एवं अन्य 27 मंगल कलश गुरु भक्तों ने प्राप्त किए।

मुनि श्री सौरभ सागर जी ने कहा कि 365 दिनों में यह चतुर्मास के दिन अत्यंत महत्वपूर्ण हुआ करते हैं क्योंकि इन्हीं दोनों में सर्वाधिक पर्व, व्रत, त्यौहार आदि आते हैं। चतुर्मास जीवों पर अहिंसा दया करुणा करने का महान पर्व होता है। वर्षा काल में जीवों की उत्पत्ति अधिक मात्रा में होती है। जाने-अनजाने में किसी जीव का विराधना न हो, इसलिए साधु साधना के लिए एक स्थान पर विराजमान होकर वर्षायोग किया करते हैं।

गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने कहा कि संत जब साधना करते हैं, तब वह आज से संत भगवंत से बंध जाते हैं और अरिहंत पद को प्राप्त किया करते हैं। आज से वर्षायोग प्रारंभ हो रहा है, संत की साधना का उत्सव प्रारंभ हो रहा है। आज से संत भगवंत से बंध जाते हैं और श्रावक संत से जुड़ जाया करते हैं, वर्षायोग श्रावक एवं संत दोनों के लिए ही अति महत्वपूर्ण हुआ करता है। जहां संत साधना और आराधना किया करते हैं, तो वहीं श्रावक व्रत नियम आदि करके अपना उत्थान किया करते हैं।
समस्त कार्यक्रम का संचालन पंडित संदीप जैन ‘सजल’ ने किया।

कार्यक्रम में गाजियाबाद, दिल्ली, सरधना, मेरठ, लखनऊ, ग्वालियर, भिंड, महाराष्ट्र, बीनागंज, इंदौर, कानपुर आदि स्थानों से गुरु भक्त पधारे। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रीमान जम्बू प्रसाद जैन गाजियाबाद, नवीन जैन इंदौर, संजय जैन पंकज जैन गाजियाबाद, विद्युत जैन लखनऊ, रमेश जैन दिल्ली, राकेश जैन गाजियाबाद आदि का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।