जीवन में शरीर को पसीना निकले, निकल जाने देना ,लेकिन भावो की विशुद्ध बाहर ना निकालना, उसे भीतर रखना : आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी

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आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने प्रवचन मे कहा
सबके दिन एक से नही होते है
समझो
जिनवाणी कहने आये थे, दुनिया की निंदा में लग गए, क्या करने आये थे, क्या करने लग गए,
यह सूत्र सारे विश्व के लिए
मनुष्य बने अच्छे काम करने के लिए ,अनीति अनाचार करने लगे,अभक्ष्य खाने में लग गए, क्या करने आये थे ,क्या करने लग गए
मित्र!! आये थे हरि भजन को, घोटन लगे कपास
ज्ञानी!! क्या करने आए थे क्या करने लग गए, क्या सुनने आए थे क्या सुनने लग गए
जीवन में शरीर को पसीना निकले, निकल जाने देना ,लेकिन भावो की विशुद्ध बाहर ना निकालना, उसे भीतर रखना,
जहां पुण्य पाप के विकल्प का भी अभाव हो चुका है ,ऐसे योगी का चारित्र कर्म रहित निर्विकल्प चारित्र होता है, ऐसा जानना चाहिए,
सर्वार्थ सागर जी तेल निकालते थे, तेल निकलने लग गया, क्या करने आये थे ,क्या करने लग गए

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