आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ने प्रवचन मे कहा
भैया ! मेरे पास एक सज्जन आये , बोले -महाराज ! आशीर्वाद दे दो , बहुत दु:खी हूँ । मैंने कहा क्या हो गया ? न बेटा बात मानता , न पत्नी बात मानती ।
मैंने कहा – आज पूछने आया है । उस दिन पूछने क्यों नहीं आया था , जब तू घोड़े पर बैठकर जा रहा था आज पूछ रहा है ।
अरे ! मुझे तो पहले से ही मालूम था , सो अपन ने पहले से ही छोड़ दिया । ऐसा ही तू कर लेता
वे पूर्व के तपस्वी लोग हैं , जिनके घर में पत्नी भी धर्मात्मा हो , पुत्र भी धर्मात्मा हो , पिता भी धर्मात्मा हो , पूरा परिवार ही धर्मात्मा हो ये विश्वास रखना , ये पूर्वभव के तपस्वी का संयोग होता है । पूर्व के पुण्यात्मा जीव इकट्ठे हुये हैं ।
चन्दन की लकड़ी में भी धुंआ निकलता है , बबूल की लकड़ी में भी धुंआ निकलता है और बेशरम की लकड़ी में भी धुंआ निकलता है जलाने पर , लेकिन शेष धुंआ – ही – धुंआ देते हैं , पर चन्दन की लकड़ी खुशबू के साथ धुंआ निकालती है ।
ऐसे – ही धर्मात्मा पुरुष के घर से आवाज भी निकलती है तो धर्म की खुशबू की निकलती है और पापियों के घर से आवाज निकलती है , तो नरक के नारकियों के जैसे लड़ने की निकलती है ।
मंदिर की घंटियों से पता चल जाता है कि ये जैनमंदिर की घंटियों की आवाज आ रही है । ऐसे ही किसी घर से निकलो , काटो – मारो
इसलिए सुबह से भैया ! अच्छी आवाजें निकाला करो । वे घर धन्य हों , जिनके द्वारे से निकले , ‘ भो स्वामी ! नमोऽस्तु । ‘ शब्द गूंज रहे हैं और एक अभागे का घर है , बोले , ‘ भगाओ – भगाओ । ‘ किसको भगा रहा था ? बोले पिताजी को भगा रहा था ।
भैया ! ठीक है ? इतना नियम तो ले लो कि अपने बूढ़े माँ – बाप को घर से बाहर नहीं निकालोगे । अपने घर के किसी भी सदस्य को भगायेंगे नहीं ।